संस्कृत की पाठशाला से न्यायपालिका के शिखर तक
जितनी चर्चा इन दिनों आगामी प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की हो रही है उससे कुछ अधिक उनके पिता श्री मदन गोपाल शास्त्री की भी होनी चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत देश के आगामी प्रधान न्यायाधीश हैं और संभवत: ऐसे विलक्षण बेटे हैं जिन्होंने अपने पिता को सदा अपना मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत माना।
हरियाणा के एक स्कूल में संस्कृत अध्यापक के पद पर अवकाश प्राप्ति तक सेवारत रहे श्री मदन गोपाल शास्त्री से निजी संबंधों पर मुझे तब भी गर्व था जब चंडीगढ़ के इंडियन कॉफी हाउस में हम दोनों कॉफी और वड़ा-सांभर का आनंद लेते थे। हमारी यह बैठकें केवल कॉफी के लिए नहीं होती थीं। चर्चाएं संस्कृत साहित्य और हरियाणवी सांग संस्कृति पर केंद्रित रहती थीं। प्राय: इन कॉफी बैठकों में श्री माधव कौशिक, प्रो. हरबंस, डॉ. विजेंद्र यादव की भी शिरकत हो जाती थी।
श्री मदन गोपाल लम्बी अवधि तक पंजाब (पुनर्गठन से पूर्व) संस्कृत अध्यापक संघ के अध्यक्ष भी रहे थे और गर्व से बताते कि वह उन बचे-खुचे लोक संस्कृति साधकों में से थे जिन्होंने प्रख्यात सांगी पंडित लखमीचंद से न केवल सांग सुने थे, बल्कि सांगों की लोकगाथाओं पर कई बार चर्चाएं भी की थीं।
श्री मदन गोपाल शास्त्री को उनके विशिष्ट साहित्यिक अवदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी व हरियाणा संस्कृत अकादमी द्वारा 'महाकवि सूरदास स्मृति सम्मान’ और संस्कृति अकादमी की ओर से वरिष्ठ संस्कृत-सेवी सम्मान से अलंकृत किया गया था।
श्री मदन गोपाल से जुड़े कुछ अंतरंग संस्करण भी स्मृतियों में अब तक छाए हैं, जिन्हें याद करने का यही उपयुक्त समय है। हरियाणा साहित्य अकादमी (मेरे निदेशक काल में) का पहला साहित्यिक समारोह सिरसा में हुआ था और उसमें मुख्य अतिथि के रूप में मैंने तब के एडवोकेट जनरल सूर्यकांत को आमंत्रित किया था। श्री सूर्यकांत सबसे कम आयु के हरियाणा के एडवोकेट जनरल थे। उस प्रथम समारोह में प्रदेशभर से साहित्यकार आमंत्रित थे। मेरे लिए यह एक सुखद आश्चर्य यह भी था कि आमंत्रित साहित्यकारों में मुख्य अतिथि के पिताश्री मदन गोपाल शास्त्री भी शामिल थे। मुख्य अतिथि के साथ उनके संबंधों का सार्वजनिक खुलासा तब हुआ जब मंचासीन होने से पूर्व श्री सूर्यकांत ने उनके चरण छुए और आशीर्वाद लिया। वह आश्चर्य तब चरम तक पहुंच गया जब निदेशक के रूप में मैंने उस समारोह में मौजूद सर्वाधिक वयोवृद्ध लेखक श्री मदन गोपाल शास्त्री से आग्रह किया कि वह अकादमी की ओर से मुख्य अतिथि का स्वागत करें। एक बार वही चरण-स्पर्श की प्रक्रिया मंच पर दिखाई दी जब श्री शास्त्री ने श्री सूर्यकांत को पुष्पगुच्छ भेंट किया और मुख्यातिथि ने मंच पर एक पिता के चरण छुए।
श्री मदन गोपाल बड़े गर्व से बताया करते, 'सूर्यकांत सहित सभी बेटों ने अपने-अपने घर में एक-एक कमरा मेरे व अपनी मां के लिए सुरक्षित किया हुआ है। हम जब भी किसी बेटे के पास जाते हैं अपना कमरा पूरी तरह से तैयार मिलता है।’ शास्त्री जी के न्यायमूर्ति सूर्यकांत के अलावा एक पुत्र भिवानी में प्रख्यात चिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं जबकि एक बेटे ने गांव की खेती भी सम्भाल रखी है।
शास्त्री को अपने गृह गांव पेटवाड़ (हिसार) से गहरा लगाव था। उनका कहना था कि 'पेटवाड़’ ही सूर्यकांत सहित उनकी सभी संतानों की जन्मू भूमि है। चारों बच्चों ने अपनी बाल्यावस्था की शिक्षा कैरोसिन-लैम्प की रोशनी में पूरी की थी क्योंकि तब बिजली का प्रचलन पूरी तरह से गांवों में नहीं हो पाया था। इसलिए मेरे बेटों को भी इस गांव की मिट्टी की सोंधी गंध से जुड़ाव है। सभी बेटों (सूर्यकांत सहित) की प्राथमिक शिक्षा भी इसी गांव में हुई थी।
परंपरागत रूप से वह इसी गांव में हर वर्ष एक साहित्यकार या विद्वान शिक्षक को बुलाकर सम्मानित करते थे। एक बार उन्होंने मुझसे वहां आने का आग्रह किया और साथ ही यह भी कहा कि 'बेटा सूर्यकांत आपको स्वयं चंडीगढ़ से अपने साथ ससम्मान लेकर आएगा और मेरे लिए वह विशेष गर्व का क्षण था जब उन्होंने मंत्रोपचार के साथ गांव वालों की उपस्थिति में मेरा तिलक किया और संतानों को बारी-बारी से आशीर्वाद दिलाया।
लोक संस्कृति व संस्कृत साहित्य को समर्पित हैं श्री मदन गोपाल शास्त्री की 18 विशिष्ट कृतियां। उन्हें वर्ष 2012 में वरिष्ठ संस्कृति विद्वान सम्मान व 2013 में महाकवि सूरदास सम्मान मिला था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत के बड़े भाई ऋषिकांत ने एक बार बताया था कि 'हमारे सूर्या ने कविताएं भी लिखीं थीं। कॉलेज समय में उनकी एक कविता 'मेढ़ पर मिट्टी चढ़ा दो’ चर्चित भी रही थी। उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया था कि 'कॉलेज शिक्षा के मध्य अनेक कविताएं लिखी थीं। मगर पिता जी एक कविता-गुरु की तरह इतनी खिंचाई कर देते थे कि उन्हें कविता पढ़ाने से पहले मुझे कविता में कई बार कटाई-छंटाई करनी होती थी।’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम अनेक 'प्रोफेशनल कीर्तिमान’ भी हैं। वह लगभग 300 बैंच का एक हिस्सा बने और अनुच्छेद-370, बिहार 'एसआईआर’ वन रैंक का पेंशन, पैगासस स्पाईवेयर, समानता व भ्रष्टाचार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने आदि के निर्णय भी उनकी विशिष्ट उपलब्धियों में शामिल हैं।
उनके बड़े भाई ऋषिकांत अब भी ग्रामीण अंचल का दामन थामे हुए हैं। वैसे वह भी पूर्व शिक्षक हैं और गर्व से एक बार बताते थे कि 'हमारे सूर्या ने भी और डॉक्टर शिवकांत ने खेतों में हल भी चलाए हैं। एक विशेष बात यह भी है कि हम भाइयों की सम्पत्तियां भी साझी हैं। अनेक निजी चर्चाओं के मध्य न्यायमूर्ति ने बताया था कि उन्हें गांव की मिट्टी की सोंधी गन्ध से बेहद लगाव है। गांव के तालाब के पुनर्निर्माण में भी चारों भाइयों का कुछ योगदान है।
न्यायमूर्ति की धर्मपत्नी सविता को एक ही मलाल रहा कि वह पीएचडी नहीं कर पाई। बताती थीं कि 'पिता जी’ (शास्त्री जी) की इच्छा थी कि मैं शिक्षा के क्षेत्र में जाऊं। दो बटियां भी हैं मगर पूरा परिवार इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखता है कि न्यायमूर्ति अपने परिवार के कारण भी किसी विवाद में न पड़े।
श्री मदन गोपाल शास्त्री ने एक बार बताया था कि जब सूर्यकांत न्यायपालिका में प्रविष्ट हुए तो 'मैंने स्वयं सभी बेटों व परिवार के सदस्यों को बुलाकर सावधान किया था कि वे कभी भी किसी अनुचित कार्य के लिए न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम का प्रयोग या उन पर कोई दबाव न डालें।’
पारदर्शिता, स्पष्टवादिता और संतुलित एवं विचारशील जिंदगी इस संस्कृत अध्यापक के विशेष मंत्र थे जो उन्होंने न्यायमूर्ति सूर्यकांत व तीनों अन्य बेटों को दिए थे।

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