Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

मौत के गैस चैम्बर : उठते सवाल

देखने में तो ऐसा लगता है कि देश बदल रहा है, समाज बदल रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आती है।

04:15 AM Sep 20, 2019 IST | Ashwini Chopra

देखने में तो ऐसा लगता है कि देश बदल रहा है, समाज बदल रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आती है।

देखने में तो ऐसा लगता है कि देश बदल रहा है, समाज बदल रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आती है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में सीवेज की सफाई करते मजदूरों की मौतें हुईं लेकिन ​प्रशासन कोई सबक सीखने को तैयार नहीं। सफाई का काम आज भी एक खास जाति या तबके के लाेग करते हैं जो सैकड़ों वर्षों से यही काम करते आये हैं। यह भी जाति विशेष से अन्याय के समान है। 
Advertisement
पिछले 25 वर्षों में 1927 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई। हर सफाई कर्मचारी की मौत एक हत्या के समान है। 2014 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था जिसमें सफाई के दौरान मौत होने पर मृतक के परिवार को दस लाख का मुआवजा देने का प्रावधान है। इस फैसले के बाद कितनों को मुआवजा मिला, यह भी जांच-पड़ताल का विषय है। हमने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना प्रभाव काफी बढ़ा लिया है लेकिन हम जमीन पर नाकाम साबित हो रहे हैं। सफाई कर्मचारियों की माैत पर हमेशा लीपापोती कर दी जाती है। 
कई देशों में सीवेज सफाई करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है तो भारत में क्यों नहीं? मैकेनाइल्ड सिस्टम को लेकर कुछ शहरों में ही काम हुआ है। देश में सीवर की हाथ से सफाई के दौरान लोगों की मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने गम्भीर ​चिंता व्यक्त करते हुए तल्ख टिप्पणी की है कि दुनिया में कहीं भी लोगों को मरने के लिए गैस चैम्बर में नहीं भेजा जाता। देश को आजाद हुए 70 वर्ष से भी ज्यादा हो गए लेकिन हमारे यहां जाति के आधार पर अभी भी भेदभाव होता है। शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया है​ कि सफाई कर्मियों को मास्क और गैस सिलैंडर क्यों नहीं उपलब्ध कराते? 
संविधान में प्रावधान है ​कि सभी मनुष्य समान हैं लेकिन सरकार उन्हें समान सुविधाएं उपलब्ध ही नहीं कराती। स्थिति बहुत अमानवीय है। सवाल यह है कि घातक जोखिम के अलावा इस काम के संबंध में तमाम कानूनी व्यवस्था के बावजूद अगर जानलेवा सफाई में लोगों को झोंका जा रहा है तो क्या इन्हें परोक्ष रूप से हत्या की घटना नहीं माना जाना चाहिए। एक बड़ी​ विडम्बना यह है कि इन मौतों के लिए आम तौर पर जिम्मेदार ठेकेदारों को शायद ही कभी ऐसी सजा हो पाती है  जिससे अन्य लोग कोई सबक ले सके।

नगर निगम सीवर की सफाई का काम ठेकेदारों को सौंपते हैं। पहले तो सफाई आधी अधूरी या फिर कागजों में ही होती है और धन की बंदरबांट कर ली जाती है। बारिश होते ही सड़कों पर पानी जमा हो जाता है क्योंकि सीवेज की सफाई ढंग से होती ही नहीं है, वह पहले ही गंदगी से लबालब भरे पड़े होते हैं तो वर्षा के पानी की निकासी कैसे होगी। ठेकेदार भी सफाई मजदूरों को बिना ​किसी सुरक्षा उपकरणों को जहरीली गैसों से भरे सीवेज में उतार देते हैं। यह  सब इसलिए चलता रहता है क्योंकि यह सब कमजोर तबके से आते हैं। 
जहां तक मुआवजे का सवाल है, उसके लिए मृत्यु प्रमाण पत्र, एफआईआर की कापी, अखबार में प्रकाशित खबर की प्रति और न जाने कितनी उलझी हुई प्रक्रिया पूरी करना जरूरी होता है। हम बुनियादी ढांचे पर अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं, विकास की परियोजनाओं को विस्तार दे रहे हैं लेकिन इन सफाई कर्मियों के लिए हम मशीन और उपकरण नहीं खरीद रहे। स्वच्छ भारत अभियान के साथ भारत में शौचालयों का निर्माण भी हुआ लेकिन सैफ्टिक टैंकों या सीवर की सफाई के लिए कोई कारगर तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
भारत में लगभग 8 हजार शहरी क्षेत्र और 6 लाख से अधिक गांव हैं तथा एक बहुत बड़ी आबादी इनमें निवास करती है। ग्रामीण स्तर पर सीवर प्रणाली का इतना विकास नहीं हुआ, अतः हाथ से गंदगी ढोने की समस्या शहरी और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में ही व्याप्त है। झुग्गी बस्तियों का तो बुरा हाल है। सुविधाओं के अभाव में मानवीय अपशिष्ट और कचरे को सीधे सीवर प्रणाली में धकेल दिया जाता है। केरल में सीवेज की सफाई के लिए रोबोट का इस्तेमाल प्रायोगिक तौर पर किया जा रहा है। तेलंगाना के हैदराबाद मैट्रो एंड वॉटर सीवेज बोर्ड ने भी मैकेनाइजेशन पर जोर दिया है। दिल्ली में भी उसी मॉडल का अनुकरण किया जा रहा है। 
स्वच्छ भारत एक अच्छा अभियान है लेकिन इसका ढिंढोरा पीटने से कुछ नहीं होगा जब तक सीवेज की सफाई के ​लिए कोई अलग नियामक नहीं बनता। सीवर प्रणाली का विकास और रखरखाव अलग-अगल संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए। सफाई कर्मियों को भी इस दिशा में जागरूक बनाया जाना चाहिए ताकि वह ​न बिना मास्क लगाए या ​बिना उपकरणों के सीवेज में उतरें ही नहीं।
Advertisement
Next Article