भारत में हैं दुनिया के आधे से ज्यादा GCCs: रिपोर्ट
भारत अब वैश्विक क्षमताओं के केंद्र (Global Capability Centres - GCCs) का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दुनिया के आधे से ज्यादा GCCs मौजूद हैं। यह देश की प्रतिभा, तकनीकी क्षमताओं और व्यवसायिक वातावरण की ताकत को दर्शाता है।
— Punjab Kesari (@PunjabKesariCom) July 23, 2025
GCCs क्या होते हैं?
Global Capability Centres वे इकाइयाँ होती हैं जो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए विशेष सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे तकनीकी समर्थन, उत्पाद विकास, रिसर्च वगैरह। ये आम तौर पर उन देशों में स्थित होते हैं जहां अच्छी प्रतिभा और कम लागत दोनों उपलब्ध होती हैं। भारत इस मामले में सबसे आगे है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
दुनियाभर में मौजूद कुल GCCs में से 50% से ज्यादा भारत में हैं।
भारत के प्रमुख शहर जैसे बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई और गुरुग्राम इन GCCs के सबसे बड़े केंद्र हैं।
पिछले एक दशक में भारत में GCCs की संख्या तेजी से बढ़ी है। अब यह आंकड़ा 1,580 से अधिक हो चुका है।
रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षों में यह संख्या 2,000 को पार कर सकती है।
भारत क्यों बना GCCs का पसंदीदा गंतव्य?
1. प्रतिभाशाली युवा आबादी: भारत की आईटी और तकनीकी क्षमताओं ने दुनियाभर की कंपनियों को आकर्षित किया है।
2. कम लागत पर उच्च गुणवत्ता: भारतीय पेशेवर अपेक्षाकृत कम लागत पर उत्कृष्ट सेवाएं देते हैं।
3. समय क्षेत्र में लाभ: यूरोप और अमेरिका के मुकाबले भारत का समय क्षेत्र कंपनियों को 24x7 सेवा देने में मदद करता है।
4. नीतिगत सहयोग: सरकार द्वारा व्यवसायिक वातावरण को आसान बनाने के प्रयासों का भी बड़ा योगदान है।
कौन-कौन सी कंपनियां हैं शामिल?
भारत में मौजूद प्रमुख GCCs में शामिल हैं:
Microsoft
Amazon
JP Morgan
Goldman Sachs
Walmart
PepsiCo
Unilever
और सैकड़ों अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां।
रोजगार के अवसरों में वृद्धि
इन GCCs के कारण भारत में लाखों लोगों को रोजगार मिला है। खासकर इंजीनियरिंग, डाटा एनालिटिक्स, साइबर सिक्योरिटी और एआई जैसे क्षेत्रों में नौकरियों की भरमार है। रिपोर्ट के अनुसार, केवल 2023 में ही करीब 3 लाख नए रोजगार बने।
भविष्य की संभावनाएं
रिपोर्ट कहती है कि अगर भारत अपनी गति बनाए रखता है तो वह आने वाले समय में वैश्विक GCC हब बन सकता है। इसके लिए स्किल डेवलपमेंट, नई टेक्नोलॉजी में निवेश और स्टार्टअप इकोसिस्टम को और मज़बूत करना जरूरी होगा।
भारत का GCCs में नेतृत्व केवल आर्थिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि भारत अब सिर्फ बैक-ऑफिस नहीं, बल्कि इनोवेशन और ग्लोबल स्ट्रैटेजी का भी केंद्र बन रहा है। यह भारतीय युवाओं के लिए अवसरों का एक सुनहरा युग साबित हो सकता है।
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वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में जानकारी देते हुए कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) लगातार घट रही है और मार्च 2021 में कुल लोन के 9.11 प्रतिशत से घटकर मार्च 2025 में 2.58 प्रतिशत हो गई है। इस दौरान मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सकल NPA में बंद कुल राशि मार्च 2021 में 6,16,616 करोड़ रुपये से घटकर मार्च 2025 में 2,83,650 करोड़ रुपये हो गई है।
NPA में बदलाव
सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने NPA की वसूली और उसे कम करने के लिए व्यापक उपाय किए है। दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) ने लोनदाता-उधारकर्ता संबंधों को मौलिक रूप से बदल दिया है। साथ ही डिफॉल्ट करने वाली कंपनी का नियंत्रण प्रमोटरो मालिको से छीन लिया है और जानबूझकर लोन न चुकाने वालो को समाधान प्रक्रिया से बाहर कर दिया है। इस प्रक्रिया को अधिक कठोर बनाने के लिए, कॉर्पोरेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटरों को भी दायरे में लाया गया है।
DRT का वित्तीय क्षेत्राधिकार बढ़ाया
लोन वसूली न्यायाधिकरणों (DRT) का वित्तीय क्षेत्राधिकार 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है, जिससे DRT उच्च मूल्य वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सके, जिसके परिणामस्वरूप बैंको और वित्तीय संस्थानों के लिए अधिक वसूली हो सके। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने NPA खातों की प्रभावी निगरानी और परिसंपत्ति प्रबंधन वर्टिकल और शाखाएं भी स्थापित की है। जिससे तुरंत और बेहतर वसूली में मदद मिलती है।