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गहलौत : गुदड़ी के लाल

देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस का औपचारिक अध्यक्ष पद पिछले तीन साल से भी ज्यादा से खाली पड़ा हुआ है और अंतरिम अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी काम चला रही हैं।

01:03 AM Aug 26, 2022 IST | Aditya Chopra

देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस का औपचारिक अध्यक्ष पद पिछले तीन साल से भी ज्यादा से खाली पड़ा हुआ है और अंतरिम अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी काम चला रही हैं।

गहलौत   गुदड़ी के लाल
देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस का  औपचारिक अध्यक्ष पद पिछले तीन साल से भी ज्यादा से खाली पड़ा हुआ है और अंतरिम अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी काम चला रही हैं। एक प्रकार से पिछले 24 साल से कांग्रेस पार्टी की कमान वही संभाले हुए हैं। बीच में कुछ समय के लिए उनके पुत्र राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर चुने गये मगर 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की पराजय के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।  कांग्रेस की पहचान भारत भर में निश्चित रूप से गांधी-नेहरू परिवार की वजह से है अतः इस पार्टी का इस परिवार की विरासत पर भरोसा करना कोई नाजायज नहीं कहा जा सकता क्योंकि देश की जनता ने भी इस परिवार की राष्ट्र के प्रति निष्ठा और कुर्बानियों को हमेशा ऊंची निगाह से देखा है परन्तु लोकतन्त्र में राजनैतिक समीकरण बदलते रहते हैं क्योंकि राजनीति बदलते समय के अनुसार अपना चरित्र बदलती रहती है। आजाद भारत अब स्वतन्त्रता के बाद पैदा हुई पीढ़ी के नेताओं के साये में जी रहा है और अपनी दिशा तय रहा है जिससे वे राजनैतिक मानक पीछे छूटते जा रहे हैं जो आजादी की लड़ाई लड़ने वाली पीढ़ी के लोगों ने लोकतन्त्र में प्रतियोगिता के लिए तय किये थे। पिछले 75 वर्षों में देश में आधारभूत परिवर्तन इस तरह आया है कि जीवन के हर क्षेत्र में विकास के नये मानदंड तय हो चुके हैं। निश्चित रूप से यह परिवर्तन लाने में कांग्रेस की ही प्रमुख भूमिका रही है क्योंकि इसी के नेतृत्व में 1991 में देश ने अपनी आर्थिक नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव की घोषणा की और पुरानी संरक्षणात्मक अर्थव्यवस्था के ढांचे को बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के ढांचे में तब्दील करने का सुविचारित फैसला किया जिसका असर राजनीति पर पड़े बिना नहीं रह सकता था और ऐसा हुआ भी क्योंकि यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। इस दौर में भी नेहरू-गांधी परिवार की राजनैतिक आभा में कोई कमी दर्ज नहीं हुई और 1997 में जब स्व. नरसिम्हा राव के बाद कांग्रेस पार्टी ने अपना अध्यक्ष एक सामान्य माने जाने वाले कांग्रेस सेवा दल के बैंड मास्टर रहे स्व. सीताराम केसरी को अपना अध्यक्ष चुना तो पार्टी के पतन का निर्णायक चक्र शुरू हुआ जिसे थामने के लिए कांग्रेस नेताओं ने नेहरू-गांधी परिवार के सामने ही गुहार लगाई और इसकी विरासत संभाले बैठी श्रीमती सोनिया गांधी को अपना अध्यक्ष चुन कर राजनीति में नीचे जाती अपनी साख को बचाया। श्रीमती गांधी ने इस पार्टी को 2004 तक पुनः राजनैतिक परिस्थितियों के अनुरूप देश को नेतृत्व देने वाली पार्टी की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया और डा. मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री बना कर 2014 तक सत्ता की कमान संभाले रखी। परन्तु इस दौर में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के नेता श्री नरेन्द्र मोदी के उदय ने सारे समीकरणों को गड़बड़ा दिया और एक नया राजनैतिक विमर्श खड़ा करके उन्होंने कांग्रेस के आभा मंडल को निस्तेज कर डाला। इसके बाद की राजनीति नेहरू-गांधी परिवार की विरासत की पूंजी में क्षरण की राजनीति कही जायेगी क्योंकि श्री मोदी ने जो राजनैतिक विमर्श खड़ा किया उसमें लोकतन्त्र में वंशवाद या पारिवारिक विरासत  की राजनीति की महत्ता का ह्रास साधारण व सामान्य नागरिक की योग्यता व एक समान राजनैतिक अधिकार की क्षमता के समक्ष होने लगा। यही वजह रही कि श्री राहुल गांधी की आम मतदाताओं के बीच नेतृत्व क्षमता की वह पकड़ ढीली होने लगी जो कभी उनके परिवार के पूर्वजों की हुआ करती थी या स्वयं श्रीमती सोनिया गांधी की थी। वास्तव में यह कुछ और नहीं बल्कि समय परिवर्तन की स्वाभाविक चाल थी क्योंकि देश की 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी युवा वर्ग की थी जिसके समक्ष पुराने राजनैतिक रास्ते से गुजरती राजनीति में इस तरह बदलाव आ चुका था कि जात- पांत से लेकर वर्ग व समुदाय गत ढकोसलों से पैदा हुए राजनैतिक नेता सत्ता में पहुंचते ही आपा-धापी कर रहे थे। इस आपा-धापी को समाप्त करने की पहल श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रवाद का प्रभावी विमर्श खड़ा करके की और कांग्रेस के उस नरम व लचीले विमर्श को हांशिये पर खड़ा करने में सफलता प्राप्त कर ली जो आजादी के बाद इसके नेताओं ने तैयार किया था। ऐसे माहौल में यदि कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति अपना अध्यक्ष चुनती है तो उसका सकारात्मक प्रभाव ही राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा और देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को रक्षात्मक पाले में खड़ा होकर राजनीति नहीं करनी पड़ेगी। इस सन्दर्भ में राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलौत का नाम चल रहा है। श्री गहलौत राजनीति में गुणी व्यक्ति कहलाये जाते हैं। युवा काल से ही वह राजनीति में हैं और वर्तमान दौर की वर्ग गत राजनीति के प्रतीक चिन्हों को भी समझते हैं। समाज के माली समाज से होने की वजह से पिछड़े वर्गों में उनकी साख काफी ऊंची मानी जाती है और स्वतन्त्रता के बाद की पीढ़ी का ही वह प्रतिनिधित्व करते हैं। नये दौर की राजनीति की पेचीदगियों से उनकी वाकिफकारी बताती है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के दक्षिणी राज्यों में बचे वर्चस्व को भी संभाले रख सकते हैं और उत्तर भारत में भी इसकी गिरती लोकप्रियता को अपने व्यावहारिक ज्ञान से थाम सकते हैं। वह जनता के बीच से आये एक साधारण परिवार के व्यक्ति हैं जिसे इस देश की मिट्टी की खुशबू की अच्छी जानकारी है। इसलिए उनका चुनाव यदि किया जाता है तो यह कांग्रेस के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना होगी जिसका असर राजनीति पर पड़े बिना नहीं रहेगा। उन्हें सरकार व संगठन दोनों का ही अच्छा अनुभव है।
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Aditya Chopra

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