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गिलगित-बाल्टिस्तान : पाक-चीन की साजिश

अपनी कुर्सी खतरे में देख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थाई प्रांत का दर्जा देने और नवम्बर में वहां चुनाव कराने का ऐलान कर बड़ा दाव खेल दिया है।

12:24 AM Nov 03, 2020 IST | Aditya Chopra

अपनी कुर्सी खतरे में देख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थाई प्रांत का दर्जा देने और नवम्बर में वहां चुनाव कराने का ऐलान कर बड़ा दाव खेल दिया है।

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गिलगित बाल्टिस्तान   पाक चीन की साजिश
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अपनी कुर्सी खतरे में देख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थाई प्रांत का दर्जा देने और नवम्बर में वहां चुनाव कराने का ऐलान कर बड़ा दाव खेल दिया है। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय क्षेत्र के हिस्से में गैर कानूनी और जबरन मौलिक परिवर्तन लाने की पाकिस्तान सरकार की कोशिश को खारिज कर दिया।
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भारत गिलगित-बाल्टिस्तान के इलाके को कानूनी तौर पर 1947 के विलय के समझौते के मुताबिक अपना अभिन्न अंग मानता है। यह इलाका केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। भारत ने पाकिस्तान से पीओके समेत अपने अवैध कब्जे के तहत सभी क्षेत्रों को तुरन्त खाली करने को कहा है। 1947 में भारत विभाजन के समय यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की तरह न तो भारत का हिस्सा रहा और न ही पाकिस्तान का।
डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ लीज डीड को पहली अगस्त 1947 को रद्द करते हुए अपना नियंत्रण कायम कर लिया था लेकिन महाराज हरि सिंह को गिलगित स्काउट के स्थानीय कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान के विद्रोह का सामना करना पड़ा।
खान ने दो नवम्बर 1947 को गिलगित-बाल्टिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया। इससे दो दिन पहले 31 अक्तूबर को हरि सिंह ने रियासत के भारत में विलय को मंजूरी दी थी। इसके 21 दिन बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र में दाखिल हुआ और सैन्य बल के दम पर इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
भारत का दावा है कि ​गिलगित- बाल्टिस्तान 1947 तक वजूद में रही जम्मू एवं कश्मीर रियासत का हिस्सा रहा था और इसलिए यह पाकिस्तान के साथ क्षेत्रीय विवाद का हिस्सा है। पाकिस्तान का कहना है कि डोगरा शासकों ने क्षेत्र पर नियंत्रण खत्म कर दिया था और जम्मू-कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह का 73 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं था तो सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान को इस क्षे​त्र का नियंत्रण कैसे मिल गया? पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर अवैध कब्जा करके आज तक यहां के लोगों को अपनी अलग पहचान बनाये रखने के लिए बुनियादी अधिकार तक नहीं दिए।
बिना भेदभाव के इस समृद्ध इलाके को हासिल कर लेने के बाद पाकिस्तान ने अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मकसदों को आगे बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल एक राजनीतिक हथियार के तौर पर करना शुरू कर दिया। थोड़ी आबादी वाले इस दूरदराज के इलाके में इस रक्तहीन आक्रमण से निपटने के लिए कोई साधन ही नहीं था और मजबूरन यह पाकिस्तान का एक उपनिवेश बनकर रह गया।
पाकिस्तान ने इस क्षेत्र का नाम बदल कर नार्दर्न एरिया रख दिया। समय बीतने के साथ-साथ पाकिस्तानी पंजाब के राजनीतिज्ञों और प्रभावशाली पंजाबियों को इस इलाके की असीम आर्थिक संभावनाओं का पता चला तो उन्होंने इसकी आबादी के स्वरूप को बदलने और इसे राजनीतिक वैधता न प्रदान करने की एक कपटी साजिश के तहत इस उपनि​वेश की प्राकृतिक सम्पदा पर नियंत्रण की एक बड़ी मुहिम छेड़ दी।
पहले इसे स्वायत्त इलाके का दर्जा दिया गया फिर पाकिस्तान ने 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान (एम्पावरमैंट एंड सैल्फ गवर्नैंस) आदेश 2009 के जरिये एक नया पिटारा खोल दिया। इस कानून के अनुसार क्षेत्र में निर्वाचित विधानसभा अपना मुख्यमंत्री चुनेगी और गवर्नर की नियुक्ति पाकिस्तान के राष्ट्रपति की मर्जी के अनुसार होगी।
गवर्नर के अधीन 12 सदस्यों की परिषद होगी जिसके आधे सदस्य विधानसभा से होंगे और शेष आधे गवर्नर द्वारा नियुक्त किए जाएंगे। इस कानून के लागू होने के बाद यहां के मुख्यमंत्री की हैसियत एक कठपुतली की तरह हो गई। रक्षा और खजाने के मामलों पर भी विधानसभा का कोई अधिकार नहीं रहा। 2009 के सरकारी आदेश को 2018 में बदला गया और वहां की विधानसभा को कुछ अधिकार दिए गए। इस विधानसभा का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो गया।
पाक की सुप्रीम कोर्ट ने वहां चुुनाव कराने के आदेश दिए हैं। पाक अधिकृत कश्मीर के लोग पाक हुक्मरानों की दमनकारी नीतियों से हमेशा परेशान रहे। पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों का कहना है कि अगर पाकिस्तान को वाकई कश्मीरियों की चिन्ता है तो वह सबसे पहले अपने नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को आजादी दे।
सच तो यह है कि नार्दर्न लाइट इन्फैंट्री के बेबस सैनिकों को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में कारगिल की लड़ाई में भारतीय तोपों के मुंह के सामने फैंक दिया था। पाक, चीन, भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्य इस क्षेत्र के सामरिक महत्व से अनभिज्ञ नहीं हैं।
क्षेत्र के लोगों के विरोध के बावजूद पाक इस क्षेत्र का बड़ा इलाका चीन को दे चुका है जिससे चीन को काराकोरम हाइवे के निर्माण से ब्लूचिस्तान से उतने ही विवादास्पद ग्वादा बंदरगाह तक पहुंच के लिए गलियारा मिल गया है। अब पाकिस्तान इसे पांचवां प्रान्त बनाकर इस क्षेत्र के वाणिज्यिक फायदे के लिए जोड़तोड़ को वैधता प्रदान करना चाहता है।
इमरान ने इस क्षेत्र को पैकेज देने का ऐलान किया है लेकिन यह नहीं बताया ​कि क्षेत्र को मिलेगा क्या। इमरान की घोषणा का पाकिस्तान के भीतर ही काफी विरोध हो रहा है। फजलुर्रहमान जैसे नेता इसे पांचवां प्रांत बनाने का विरोध कर रहे हैं। पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि अगर पाकिस्तान ऐसा करता है तो वह भारत के जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और उसे केन्द्र शासित ​प्रदेश बनाने के विरोध का अधिकार खो देगा। बार-बार गिलगित-बाल्टिस्तान की पूर्ण स्वायत्तता की मांग बीते कुछ दिनों से उठ रही है।
स्कर्दू समेत कुछ शहरों में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं लेकिन इमरान खान चीन की शह पर ऐसे कदम उठा रहे हैं जो उनके लिए घातक हो सकते हैं। चीन की दिलचस्पी जिस क्षेत्र में है उसका सामरिक पहलु यह है कि यह अक्साई चिन से बहुत दूर नहीं है।
गिलगित- बाल्टिस्तान में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की मौजूदगी से उसे अक्साई चिन में भारतीय फौज को दूसरी तरफ से घेरने की सुविधा होगी। इमरान ने नया पिटारा तो खोल दिया लेकिन इमरान और बाजवा यह समझ लें कि चीन एक दिन पाकिस्तान को हड़पने की कोशिश करेगा तो पाकिस्तान खण्ड-खण्ड होगा और अखंड भारत का सपना साकार होगा। वहां के लोग चीन के नहीं भारत के साथ होंगे।
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