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भगवा राज में ऐलाने गिरिराज

भगवा राजनीति में प्रखर हिंदुत्व की अलख जगाने में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह का भी कोई सानी नहीं, सियासी नेपथ्य से असमंजस की धूल बटोर कर भी उन्होंने अपने सियासी भाल को हमेशा सजाए रखा है

09:45 AM Nov 02, 2024 IST | त्रिदीब रमण

भगवा राजनीति में प्रखर हिंदुत्व की अलख जगाने में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह का भी कोई सानी नहीं, सियासी नेपथ्य से असमंजस की धूल बटोर कर भी उन्होंने अपने सियासी भाल को हमेशा सजाए रखा है

‘साया सा जलता रहा न जाने कितने अजनबी दरख्तों के बीच वह

उस सुबह को ढूंढता रहा शाम सा जलता रहा जिसके बीच वह’

भगवा राजनीति में प्रखर हिंदुत्व की अलख जगाने में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह का भी कोई सानी नहीं, सियासी नेपथ्य से असमंजस की धूल बटोर कर भी उन्होंने अपने सियासी भाल को हमेशा सजाए रखा है। हिंदू-मुसलमान की राजनीति को बेखटके स्वर देने वाले गिरिराज इन दिनों बिहार में ’हिंदू स्वाभिमान’ यात्रा निकाल रहे हैं। जब उनकी यात्रा बिहार के सीमांचल क्षेत्र में पहुंची तो उनका ’हिंदूवाद’ और सिर चढ़कर बोलने लगा, बकौल मंत्री जी -‘कोई मुसलमान यदि तुम्हें एक थप्पड़ मारे तो तुम सब मिल कर उसे सौ थप्पड़ मारो।’ अगले वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं तो सियासी इरादों पर भगवा रंग-रोगन इसी मकसद से हो रहा है। अभी पिछले दिनों दीपावली के मौके पर आईआईटी कानपुर के इंटरनेशनल विंग ने एक आमंत्रण पत्र तैयार किया जो मूलतः अफ्रीकी व पश्चिमी एशिया के मुल्कों से आने वाले छात्र-छात्राओं के लिए था, इस समारोह को आयोजकों ने एक खूबसूरत सा नाम दिया था-’जश्न-ए-रोशनी’, यह आमंत्रण पत्र इतना आकर्षक था कि यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इतना वायरल कि यह मंत्री जी के संज्ञान में भी आ गया, इस पर मंत्री जी भड़क गए, उन्होंने सनातन के पर्व का इस्लामीकरण का आरोप लगाते हुए अपने ’एक्स’ हेंडल से पोस्ट किया-‘दीपोत्सव है, दीपोत्सव ही रहेगा।’

मंत्री जी की कड़ी आपत्ति के बाद जल्दबाजी में आमंत्रण पत्र हटा लिया था, वैसे भी दीपोत्सव को ‘जश्न-ए-रोशनी’ कहने भर से दीपों की लौ कहां मद्दिम पड़ने वाली थी, पर अब गिरिराज को लेकर एक नया खुलासा सामने आया है कि वे अपनी एक पुरानी बीमारी का केरल के एक मुस्लिम युनानी डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं, इस डॉक्टर महोदय की पांच पीढ़ियां इस पेशे से जुड़ी हैं, माना यह भी जाता है कि इस मुस्लिम डॉक्टर के हाथों में जादू है, वे कई असाध्य बीमारियों का इलाज भी आसानी से कर देते हैं, काश! इस हिंदू-मुस्लिम अलगाव वाली भावना का भी कोई इलाज ढूंढ पाए?

बृजभूषण के मुकाबले कीर्ति वर्द्धन

क्या भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यूपी के चर्चित बाहुबली नेता बृजभूशण शरण सिंह की काट ढूंढ़ ली है? क्या हरियाणा चुनावों में इस बाहुबली नेता की धमक का पूरा इस्तेमाल करने के बाद पार्टी इन्हें ठंडे बस्ते में डालने का इरादा रखती है? सच पूछा जाए तो यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को नाथे रखने के लिए पार्टी के एक वर्ग ने बृजभूषण शरण का भरपूर इस्तेमाल किया।

अब चूंकि योगी के पीछे संघ मजबूत चट्टान के मानिंद खड़ा हो गया है तब भाजपा शीर्ष भी अब योगी को छेड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। सो, अब पार्टी शीर्ष कहीं न कहीं गोंडा के भगवा सांसद और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री कुंवर कीर्तिवर्द्धन सिंह के सियासी मंसूबों को हवा देने में जुट गया है। कीर्तिवर्द्धन के लिए पार्टी के एक बड़े नेता का तर्क है कि ‘वे बृजभूषण की तरह बड़बोले नहीं हैं, शांत, धीर-गंभीर हैं, खानदानी रईस हैं, बाहर से पढ़े-लिखे हैं और ठाकुरों में भी जनाधार वाले नेता हैं।’ बृजभूषण के समर्थक भी पार्टी के इस बदले रवैये से आहत हैं, हैरान-परेशान हैं और दबी जुबान में कह भी रहे हैं-’मतलब निकल गया तो जानते नहीं।’

अजित पवार से पिंड छुड़ाती भाजपा

महाराष्ट्र चुनावों से ऐन पहले सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति में एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजियों का नया दौर शुरू हो गया है। इसकी शुरूआत अजित पवार की ओर से हुई जब उन्होंने भाजपा की मर्जी की परवाह न करते हुए विवादास्पद छवि के नवाब मलिक को टिकट दे दिया। इससे क्षुब्ध होकर भाजपा ने अपने नेता किरीट सोमैया से एक तल्ख बयान दिलवाया। सोमैया ने नवाब को आतंकवादी करार देते हुए उन्हें दाउद इब्राहिम का एजेंट बता दिया, यह भी कहा कि नवाब मलिक को टिकट देकर एनसीपी ने देश के साथ विश्वासघात किया है, पर अजित पवार अब भी नवाब को चुनाव लड़वाने पर अड़े हुए हैं।

अजित के इस आचरण से भाजपा आहत है, बदले में उसने महायुति के प्रचार सामग्री से अजित पवार की तस्वीर ही गायब कर दी है। अब महायुति के बैनर-पोस्टर परचम व विज्ञापनों में सिर्फ मोदी-शिंदे व फड़णवीस की ही तस्वीर हैं। वहीं अजित पवार उस जमीनी सर्वे रिपोर्ट पर यकीन कर आगे बढ़ रहे हैं कि सिर्फ हिंदुत्व के साथ खड़े रहने से उनका वोट बैंक उनसे छिटक गया है, इस लोकसभा चुनाव में इसीलिए एनसीपी अजित का सूपड़ा साफ हो गया था। सो, मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए ही अजित ने नवाब पर इतना बड़ा दांव चला है।

यूपी की बाजी राहुल ने क्यों गंवाई

हरियाणा में मिली अप्रत्याशित हार से ही सबक लेते हुए राहुल गांधी ने यूपी के उपचुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार उतारने से मना कर दिया। गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर सीट सपा ने कांग्रेस के लिए छोड़ दी थी। पहले यह कहा गया कि’ ये दोनों ही सीटें कांग्रेस के नजरिए से कमजोर हैं, जहां कांग्रेसी उम्मीदवारों का जीत पाना संभव नहीं होगा।’ पर कांग्रेस के अपने ही जमीनी सर्वेक्षण में इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की संभावनाएं बेहतर नज़र आ रही थीं। पर राहुल को जब यह पता चला कि हरियाणा की ही तर्ज पर पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने यहां से टिकट दिलवाने के नाम पर कुछ लोगों से मोटा पैसा वसूल लिया है और गाजियाबाद से टिकट पाने के लिए तो एक इच्छुक अभ्यर्थी ने पार्टी के एक नीति निर्धारक महासचिव को 7 करोड़ रुपयों की भारी भरकम पेशगी भी दे दी है तो राहुल ताव में आ गए, उन्होंने फौरन अपने उस नेता से पैसे वापिस करने को कहा और लगे हाथ यह घोषणा भी कर दी कि ’कांग्रेस खुद चुनाव न लड़ कर भाजपा को हराने के लिए सपा के हाथ मजबूत करेगी।’

…और अंत में

पिछले दिनों पटना के सदाकत आश्रम में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की 137वीं जयंती का आयोजन कांग्रेस पार्टी की ओर से किया गया था, जब हर तरफ अटकलों का बाजार गर्म है कि बिहार प्रदेश कांग्रेस चीफ अखिलेश प्रसाद सिंह की कभी भी विदाई हो सकती है तो अपने को मौजू बनाए रखने के लिए अध्यक्ष जी ने बढ़-चढ़कर तन, मन, धन अर्जित कर इस समारोह का आयोजन किया था। पर जरा गौर फर्माइए मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली से जिन दो प्रमुख नेताओं को बुलाया गया था वे थे भूपेंद्र सिंह हुड्डा और आनंद शर्मा। कहने वाले कह रहे हैं कि अखिलेश ने जी-23 के दो प्रमुख चेहरों को एक मंच पर इकट्ठा कर हाईकमान को ललकारने की कोशिश की है कि ’उन्हें हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।’ वहीं बिहार के कांग्रेसी नेता कह रहे हैं ’भई, आपको बुलाने के लिए एक जाट नेता ही मिले, इसके लिए बिहार में कोई जाट मतदाता भी तो होना चाहिए।’

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