विचारों को मूर्त रूप प्रदान करना मोदी का अंदाज
नरेन्द्र मोदी की की यात्रा के मूल में एक विशेष आदत अनवरत अवलोकन निहित है। वह प्रत्येक मुलाकात को विचारों के स्रोत के रूप में देखते हैं, चाहे वह सामान्य बातचीत हो या विदेश यात्रा लेकिन इन्हें नवीनता या अकादमिक विचार मानने वाले अनेक लोगों के विपरीत, मोदी इनमें से प्रत्येक विचार को संभावित समस्या के मूल कारण के आधार के तौर पर परखते हैं और फिर उसे स्थानीय आवश्यकताओं के अनुकूल समाधान में ढालते हैं। जिज्ञासा, विश्लेषण और प्रभावी क्रियान्वयन के इसी मिश्रण ने उन्हें जमीनी स्तर के आयोजक से एक वैश्विक राजनेता के रूप में स्थापित किया है। वास्तव में मोदी के लिए सीखना कभी उम्र का मोहताज नहीं रहा। बचपन से ही उनमें सहज जिज्ञासा थी और वे विविध कहानियों और अनुभवों को आत्मसात करते और तलाशते थे।
किशोरावस्था में ज्ञान की इसी ललक ने उनकी यात्रा का आगाज़ किया। पहले-पहल आध्यात्मिक साधक के रूप में और बाद में एक समर्पित संघ प्रचारक के रूप में उन्होंने समूचे भारत की यात्रा की और ऐसे अनुभव बटोरे जिन्होंने दुनिया को देखने-समझने की उनकी दृष्टि को आकार दिया। हर बातचीत उनके लिए कुछ नया सीखने का अवसर थी लेकिन जो बात उन्हें दूसरों से जुदा करती है, वह यह है कि यह सूझबूझ केवल सैद्धांतिक नहीं रही, अवसर पाते ही उन्होंने इसे क्रियान्वित किया। हालांकि, समस्या-समाधान की यह कला अक्सर अप्रत्याशित तरीकों से सामने आती रही। उदाहरण के लिए, काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के दौरान उन्होंने देखा कि कर्मचारी संगमरमर के ठंडे फर्श पर नंगे पांव काम कर रहे थे और उन्होंने तुरंत उन कर्मचारियों के लिए जूट की चप्पलों का प्रबंध कर दिया, यह एक आसान उपाय था जो सर्दी और आने वाली गर्मी, दोनों के लिए कारगर रहा। एक अन्य घटना में, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में जापान की अपनी यात्रा के बाद उन्होंने स्पर्शनीय मार्गचिन्ह (उभरी हुई सतह) की अवधारणा शुरू की। दृष्टि बाधित लोगों के लाभ के लिए उन्होंने इसे अहमदाबाद में लागू करने पर ज़ोर दिया। ये संकेत उनकी एक अनवरत आदत को जाहिर करते हैं, अनदेखा कर दी गई बारीकियों को दैनिक जीवन को आसान बनाने वाले व्यावहारिक सुधारों में बदलना।
उनके कुछ विचार बीते दशकों की याद दिलाते हैं। 1993 में लॉस एंजिल्स की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने फाइनेंशियल हाई-राइजिज के समूहों का अध्ययन किया, वर्षों बाद उन्हीं विचारों ने गुजरात में गिफ्ट सिटी को भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को केंद्रीकृत करने के केंद्र के रूप में प्रेरित किया। इसी जिज्ञासा ने अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट को आकार दिया, जहां उन्होंने अधिकारियों से दुनियाभर की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन करवाया लेकिन यह भी सुनिश्चित किया कि अंतिम डिज़ाइन स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित रहे। उनके अनुसार, ग्लोबल मॉडल तभी मायने रखते हैं, जब उन्हें पहले स्थानीय समुदायों की सेवा के लिए अनुकूलित किया जा सके।
2002 में, कच्छ में आए विनाशकारी भूकंप के बाद मोदी ने आपदा से निपटने में इस पद्धति को अपनाया। उन्होंने नियमित नौकरशाही मॉडलों को नकारते हुए अपनी टीम को जापान के कोबे भूकंप प्रबंधन का अध्ययन करने और उसके योजनाकारों से संपर्क करने का निर्देश दिया लेकिन उनका विचार स्पष्ट था, मॉडलों को पूरी तरह से आयातित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, इन जानकारियों को गुजरात के लिए तत्काल आवश्यकता वाले समाधानों जैसे भूकंपरोधी आवास, सुरक्षित निर्माण पद्धतियां और सामुदायिक भागीदारी में ढाला गया। भारत में यह पुनर्वास के लिए एक मानक बन गया, जिसने दिखाया कि कैसे एक संकट अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान को भारतीय पहल के साथ मिलाने का परीक्षण स्थल बन सकता है। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने इसी क्रम को जारी रखा, दक्षिण कोरिया में नदी-सफाई परियोजनाओं का दौरा इसी इरादे से किया, कि उनसे प्राप्त सबक को नमामि गंगे में लागू किया जा सके।
भारत के भीतर से उभरने वाले विचारों के प्रति भी उन्होंने उतना ही उत्साह दिखाया है। इसका उल्लेखनीय उदाहरण नैनो यूरिया है जो एक युवा वैज्ञानिक द्वारा प्रधानमंत्री को दिए गए सुझाव से उपजा नवाचार है। मोदी ने तुरंत इसकी क्षमता को पहचाना और इसके विकास पर ज़ोर दिया। आज इसकी एक छोटी बोतल पारंपरिक उर्वरक की एक बोरी की जगह ले सकती है जिससे लागत में कमी आती है और किसानों का बोझ कम होता है। यही खुलापन सरकारी कार्यक्रमों को भी आकार देता है, जब वित्तीय समावेशन योजना के नामकरण के लिए जनता की प्रतिक्रिया मांगी गई, तो नागरिकों ने ही ‘जन धन’ शब्द गढ़ा। वैज्ञानिकों और आम लोगों, दोनों के नवाचारों को प्रोत्साहित करते हुए मोदी ने दिखाया कि कैसे घरेलू विचारों को राष्ट्रीय समाधानों में बदला जा सकता है।
ये कहानियां मिलकर मोदी के जीवन के एक अनवरत सूत्र को उजागर करती हैं। मंदिर में मामूली प्रतीत होने वाली असुविधा को दूर करने से लेकर, एक आधुनिक शहर की रूपरेखा तैयार करने, किसी तबाह क्षेत्र के पुनर्निर्माण या किसी क्रांतिकारी उर्वरक को अपनाने तक उनकी प्रक्रिया एक समान ही रही है, स्थिति का ध्यानपूर्वक अवलोकन करना, लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं की पहचान करना और उसे पूरा करने के लिए निर्णायक रूप से कार्य करना। “आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:” (प्रत्येक दिशा से कल्याणकारी विचार हमारी ओर आएं) के भारतीय दर्शन का पालन करते हुए मोदी हर यात्रा और संवाद से सक्रिय रूप से अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं और भारत को आगे बढ़ाने के लिए उनका उपयोग करने का दृढ़तापूर्वक प्रयास करते हैं। अंततः, उनका हर विचार लोगों के लिए होता है, उनके जीवन और विकसित भारत की उनकी आकांक्षाओं में निहित होता है।
- (लेखक वित्त एवं राजस्व सचिव के पद से सेवानिवृत्त)
- हसमुख अधिया
आईएएस