प्राइवेट सैक्टर के द्वार पर सरकार
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बही खाते से जो भी निकला उससे यह बात स्पष्ट है कि सरकार प्राइवेट सैक्टर के द्वार पर खड़ी है। वित्त मंत्री के लम्बे भाषण का विश्लेषण भी हो रहा है।
03:12 AM Feb 03, 2020 IST | Aditya Chopra   
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बही खाते से जो भी निकला उससे यह बात स्पष्ट है कि सरकार प्राइवेट सैक्टर के द्वार पर खड़ी है। वित्त मंत्री के लम्बे भाषण का विश्लेषण भी हो रहा है। कुछ सवालों का जवाब अब भी बेहद जटिल है। सवाल यह भी है कि वित्त मंत्री धन जुटाएंगी तो कैसे। बजट प्रस्तुत किए जाने के बाद आयकर की नई व्यवस्था तो चर्चा में है ही, साथ ही भारत की नवरत्न कम्पनी जीवन बीमा निगम में सरकार की हिस्सेदारी बेचने और आईडीबीआई बैंक में भी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान चर्चा में है। सरकार का खजाना खाली है तो क्या सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना ही एकमात्र विकल्प है। 
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 जीवन बीमा निगम भारत की सबसे बड़ी कम्पनी है। यह देश की सबसे बड़ी निवेशक कम्पनी भी है। इस कम्पनी की स्थापना 1956 में हुई थी। भारतीय जीवन बीमा निगम के 8 आंचलिक कार्यालय और 101 सम्भागीय कार्यालय देश भर में हैं। दस लाख से ज्यादा एजैंट देश भर में सक्रिय हैं। देश की बड़ी आबादी एलआईसी पर जमकर भरोसा करती रही है और यह विश्वास आज भी कायम है। देश के करोड़ों लोगों ने आंख बंद करके अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा एलआईसी की योजनाओं में लगा रखा है लेकिन हाल ही की स्थितियों को देखा जाए तो एलआईसी के पास मौजूद नकदी के बड़े भंडार पर जोखिम  बढ़ रहा है।
आखिर  ऐसा क्यों हुआ कि जीवन बीमा निगम की हालत खस्ता हो गई। यह कम्पनी तो संकटमोचक की भूमिका में थी। उसने कई कम्पनियों को डूबने से बचाया। एलआईसी ने ओएनजीसी जैसी सरकारी कम्पनियों में भारी निवेश कर रखा है। हाल ही में उसने आईडीबीआई बैंक में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीद कर उसे संकट से निकाला है। 2018 में बढ़ते एनपीए की वजह से आईडीबीआई को आरबीआई ने पीसीए की सूची में डाल दिया था। एलआईसी पर नॉन परफार्मिंग एसेट (एनपीए) का बोझ काफी बढ़ गया है। एलआईसी ने सार्वजनिक कम्पनियों और बैंकों के शेयर खरीद कर उनको बचाने का काम किया लेकिन एलआईसी के नवीनतम बही खाते को देखकर पता चलता है कि 2019-20 के पहले छह माह में उसका एनपीए 6.10 फीसदी बढ़ चका है। 
एलआईसी का एनपीए बढ़ने का कारण कई कम्पनियां रही हैं। डेक्कन क्राॅनिकल, एस्सार पोर्ट, गेमन, आईएल एंड एफएस, भूषण पावर, वीडियोकॉन, यूनिटेक, जीबीके पावर आदि कम्पनियों में एलआईसी का 25 हजार करोड़ एनपीए के तौर पर अटका पड़ा है। वहीं एलआईसी ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड, इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज और अनिल अम्बानी की अगुवाई वाले रिलायंस ग्रुप सहित कई संकटग्रस्त कम्पनियों को भारी ऋण दे रखा है। देश का बैंकिंग तंत्र पहले ही नाकाम हो चुका है। बार-बार पूंजी डालने के बावजूद बैंकिंग व्यवस्था में जान नहीं पड़ी है। अगर निगरानी और प्रक्रियाओं का पालन सही ढंग से किया जाता तो यह हालत नहीं होती। घोटाला तंत्र इतने व्यापक स्तर पर फैला कि स्थिति बेकाबू हो चुकी है। एलआईसी का आईपीओ बेचकर सरकार का लक्ष्य 2.10 लाख करोड़ एकत्र करने का है। 
जीवन बीमा निगम के कर्मचारी संगठन और अन्य श्रमिक संगठनों का कहना है कि यह देश हित के खिलाफ है। एलआईसी में आम आदमी ने अपनी बचत लगा रखी है और इससे सरकारी हिस्सेदारी बेचना उनके हितों के विरुद्ध है। पहले सरकार एयर इंडिया के विनिवेश का फैसला कर चुकी है। दूरसंचार कम्पनियों बीएसएनएल का हाल पहले ही काफी बुरा हो चुका है। सरकारी कम्पनियों के खस्ता हाल होने का कारण प्राइवेट सैक्टर को लाभ पहुंचाने से हुआ है। इसके लिए सरकारों की नीतियां जिम्मेदार रही। भारत में विनिवेश की शुरूआत सबसे पहले वर्ष 1991 में हुई जब सरकार ने कुछ चुनी हुई सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों  का 20 प्रतिशत हिस्सा बेचने का फैसला किया। रंगराजन समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों से 49 फीसदी के विनिवेश का प्रस्ताव दिया था। समय-समय पर विनिवेश का विरोध होता रहा है। 
इससे एक तो कम्पनी का मालिक बदल जाता है दूसरा सरकारी मलकियत निजी हाथों में चली जाती है इसके कारण कर्मचारियों की नौकरियों पर खतरा पैदा हो जाता है। निजी क्षेेत्र का कर्मचारी हितों से कुछ लेना-देना नहीं होता, उसका सारा ध्यान मुनाफा कमाने और पैसा इधर से उधर करने में होता है। अगर भारत की सम्पत्ति निजी हाथों में पहुंचती रही तो एक दिन अराजकता का वातावरण पैदा हो सकता है। श्रमिक असंतोष उग्र रूप धारण कर सकता है। निजीकरण और विनिवेश ऐसे समय में हो रहा है जब बेरोजगारी बड़े संकट के रूप में पहले से ही मौजूद है। कुल मिलाकर सरकार बाजार में खड़ी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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