Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgets
vastu-tips | Festivals
Explainer
Advertisement

भारत-चीन सीमा विवाद!

05:00 AM Oct 31, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

भारत-चीन सीमा विवाद एक अनसुलझा प्रश्न है? जिसे सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच एक उच्च स्तरीय वार्ता तन्त्र स्थापित है। 2005 से दोनों देशों के बीच में इस वार्ता तन्त्र की दो दर्जन से अधिक बैठकें हो चुकी हैं। इस तन्त्र में भारत की ओर से इसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन की ओर से इसके विदेश विभाग के मन्त्री शामिल हैं। यह वार्ता तन्त्र भारत-चीन के बीच पक्की सीमा रेखा खींचने के काम में लगा हुआ है। जाहिर है कि यह कार्य आसान नहीं है क्योंकि चीन उस मैकमोहन रेखा को नहीं मानता जो 1914 में भारत-चीन व तिब्बत के बीच खींची गई थी। चीन ने 1914 में सीमा रेखा खींचने के लिए शिमला में आयोजित उस बैठक का बहिष्कार कर दिया था जिसमें भारत-चीन-तिब्बत के बीच रेखा निर्दिष्ट की गई थी। शिमला में1914 में ब्रिटिश विशेषज्ञ मिस्टर मैकमोहन ने तिब्बत को स्वतन्त्र देश मानते हुए वार्ता मंे इसके प्रतिनि​िध को भी बुलाया था। जिस पर चीनी प्रतिनि​िध ने इस वार्ता का बहिष्कार कर दिया था। तब से लेकर आज तक भारत-चीन सीमा का मामला लटका हुआ है। इस बीच पूरे क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन आ चुका है। 1949 में चीन स्वतन्त्र राष्ट्र बना जबकि 1947 में भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ। चीन ने पचास के दशक में ही तिब्बत को अपना हिस्सा मानने की घोषणा कर दी। भारत ने 2003 तक तिब्बत को स्वतन्त्र इकाई माना परन्तु इस वर्ष हुकूमत पर काबिज भाजपा नीत एनडीए सरकार के मुखिया स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने परम्परा से हट कर तिब्बत को चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश स्वीकार किया और भारत-चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय वार्ता तन्त्र गठित करने की सैद्धान्तिक स्वीकृति दी। 2004 में केन्द्र में कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार गठित हुई और इसने वाजपेयी सरकार द्वारा छोड़े गये कार्य को पूरा किया और दोनों देशों को बीच वार्ता तन्त्र स्थापित किया।
भारत में सरकार एक सतत् प्रक्रिया होती है और हर अगली सरकार को पिछली सरकार द्वारा छोड़े गये कामों को पूरा करना पड़ता है। यह कार्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में विशेष तौर पर विदेश विभाग को करना पड़ता है। मनमोहन सरकार के बाद केन्द्र में बनी भाजपा नीत मोदी सरकार ने भी इस क्रम को आगे बढ़ाया और उच्च स्तरीय वार्ता तन्त्र की बैठकों को आयोजित किया। हालांकि दो दर्जन से अधिक बैठकों के आयोजित होने के बावजूद सीमा का सवाल बदस्तूर टिका हुआ है। मगर जून 2020 में चीन ने भारत के लद्दाख इलाके में जबर्दस्त अतिक्रमण किया जिसमें भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। हालांकि अच्छी खासी संख्या में चीनी फौजी जवान भी हलाक हुए। उसके बाद से सीमा का यह इलाका तनाव भरा माना जाने लगा। चीन जब भी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसे अवधारणा का मुद्दा बना देता है। तब से लेकर अब तक भारत व चीन के कोर कमांडरों के बीच वार्ता के 23 दौर हो चुके हैं। कोर कमांडरों की बैठक में वर्तमान में लद्दाख सीमा पर फौजी गश्त लगाने के साथ ही शान्ति व सौहार्द बनाये रखने के उपायों पर बातचीत की जाती है जिससे दोनों देशों के बीच जो नियन्त्रण रेखा है वह पूरी तरह शान्त रहे। फिलहाल सीमा के दोनों ओर दोनों देशों ने कम से कम अपने 50-50 हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं। अतः लद्दाख सीमा पर फौजों की तैनाती को देखते हुए शान्ति बहुत महत्वपूर्ण मामला है। यही वजह है कि कोर कमांडर आपस में बातचीत करते रहते हैं जिससे किसी भी सूरत में तनाव पैदा न हो। हाल ही में दोनों देशों के कमांडरो ने लद्दाख सीमा पर स्थित चुशूल-माल्दो इलाके में बातचीत की और यह अहद किया कि सरहदों पर शान्ति बनाये रखने के लिए दोनों देश कटिबद्ध हैं। यह वार्ता का 23 वां दौर था। इससे पूर्व पिछले वर्ष हुई कमांडरों की 22वीं बैठक में यह तय किया गया था कि दोनों ओर के फौजी आपस उलझेंगे नहीं और यथास्थिति बनाये रखेंगे। अतः लगभग एक वर्ष बाद फिर से कमांडरों ने शान्ति व सौहार्द बनाये रखने के प्रति अपनी रजामन्दी दिखाई है।
भारत-चीन के बीच बनी वास्तविक नियन्त्रण रेखा का सम्मान करने से ही दोनों देशों के बीच मिठास बनी रह सकती है। जैसा कि सभी को मालूम है कि चीन की सोच सैनिक सोच ( मिलिट्री माइंडेड) है अतः उसे सीमा पर सैनिक कार्रवाइयों से रोकना छोटी बात नहीं है क्योंकि चीन जब भी भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करता है तो कह देता है कि यह उसकी अवधारणा की वजह से हुआ है। निश्चित रूप से चीन का शुमार विश्व शक्तियों में होता है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि वह सीमा के आसपास के इलाकों पर अपना दावा ठोकता रहे परन्तु पिछले वर्ष चीन इस बात पर राजी हो गया था कि लद्दाख सीमा पर वह पूरी तरह शान्ति बनाये रखेगा। अतः विगत 25 अक्तूबर को हुई 23वीं दौर की कमांडर बैठक में यही अहद किया गया है। दोनों देशों के सैनिक कमांडरों की बैठक जब शान्ति व सौहार्द की बात करती है तो इसका अर्थ सीधे-सीधे यही निकलता है कि जो उच्चस्तरीय वार्ता तन्त्र है वह अपना काम आगे बढ़ाये और सीमा विवाद को हल करने के प्रयास तेज करे। क्योंकि चीन एेसा देश है जिसके साथ छह ओर से भारत की सीमाएं लगती हैं। साथ ही चीन भारत का एेसा पड़ोसी देश है जिसने 1962 में अकारण ही भारत पर हमला कर दिया था और अपनी फौजें असम के शहर तेजपुर तक पहुंचा दी थीं। इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनने पर चीन ने अपनी फौजों की वापसी की थी और वे मनमाने ठंग से सीमा पर आ गई थीं परन्तु यह 2025 चल रहा है और इस दौरान वैश्विक वास्तविकताएं आमूल-चूल रूप से बदल चुकी हैं। चीन के मामले में भारत का रुख सकारात्मक ही रहा है परन्तु चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों की वजह से यदा-कदा भारत को उकसाता रहता है। जबकि नब्बे के दशक में केन्द्र में पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के रहते कई आपसी समझौते हुए थे जिनमें सीमा पर शान्तिपूर्ण प्रबन्धन मुख्य था ।

Advertisement
Advertisement
Next Article