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टिड्डी दल : एक और आपदा

भाई गुरुदास जी की एक अद्भुत रचना है जिसमें इस बात का वर्णन किया गया है कि यह धरती किसके भार से पीड़ित है। धरती स्वयं पुकार करती है।

12:18 AM Jun 29, 2020 IST | Aditya Chopra

भाई गुरुदास जी की एक अद्भुत रचना है जिसमें इस बात का वर्णन किया गया है कि यह धरती किसके भार से पीड़ित है। धरती स्वयं पुकार करती है।

भाई गुरुदास जी की एक अद्भुत रचना है जिसमें इस बात का वर्णन किया गया है कि यह धरती किसके भार से पीड़ित है। धरती स्वयं पुकार करती है।
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‘‘मैं उन पर्वतों के भार से पीडि़त नहीं हूं जिनमें से कई तो इतने ऊंचे हैं कि लगता है आकाश को छू लेंगे। मैं अपनी गोद में बिखरी हुई वनस्पति अर्थात् वृक्षों, पौधों और जीव-जंतुओं के भार से भी पीड़ित नहीं हूं, मैं नदियों, नाले, समुद्र के भार से भी पीड़ित नहीं हूं लेकिन मेरे ऊपर बोझ है तो सिर्फ उनका है जो कृतघ्न है, छल करते हैं विश्वासघाती हैं और जिस राष्ट्र की  फिजाओं में सांस लेते हैं उसी से द्रोह करते हैं। कई बार सत्संग के दौरान भी हमें यह प्रश्न सुनने को मिल जाता हैः
‘‘जल से पतला कौन है, कौन भूमि से भारी
कौन अगन से तेज है और कौन काजल से कारी।’’
अर्थात् जल से पतला कौन? भूमि से भारी कौन? अग्नि से तेज कौन? काजल से ज्यादा कलुष किसका? जरा इसके उत्तर में भी एक नजर डालें :-जल से पतला ज्ञान है, पाप भूमि से भारी, क्रोध अगन से तेज है आैर कलंक काजल से भारी। यह जवाब सारे व्यक्तित्व को झकझोर जाता है। आज युग के साथ युग का धर्म भी बदल गया है। आज अपने देश पर नजर डालें तो हिंसा, बलात्कार, चोरी, डकैती, खूनी दंगे ये आम बात हो चुकी है। जब-जब देश में यह सब घटता है तो हमारी सांसें थम जाती हैं। आज जो कुछ घट रहा है उसने सबको हताशा में डाल दिया है।
देश अभी कोरोना वायरस से लड़ ही रहा था कि एक के बाद एक आपदा अपना प्रकोप दिखाने लगी है। कोरोना महामारी के दौरान ही चक्रवाती तूफान अम्फान ने ओडि़शा और पश्चिम बंगाल के तटीय शहरों विशेष कर कोलकाता में जमकर तबाही मचाई। इसी बीच लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच तनाव जारी है। गलवान घाटी में 20 जवानों की शहादत के बाद देश गमगीन है। सीमाओं पर तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भूकम्प के झटकों से लोग आतंकित हैं। अब टिड्डी दल ने भारत पर हमला कर दिया है। लगभग दस राज्यों में किसानों के लिए खतरा बन चुके टिड्डी दल ने अब राजधानी दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में दस्तक दे दी है। अब राज्यों को केवल कोरोना से ही जूझना  नहीं पड़ रहा बल्कि उसे टिड्डी दल से भी निपटना है। टिड्डी दल राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश के कई इलाकों में पहले से ही अपना प्रकोप दिखा रहा  है।
टिड्डी दल रोजाना 100-150 किलोमीटर तक सफर तय करते हैं। आमतौर पर एक टिड्डी दल में कम से एक करोड़ टि​ड्डियां होती हैं जो एक बार में ही दो से तीन किलोमीटर के इलाके में फैल जाती हैं। राजस्थान में प्रवेश पाने से पहले टिड्डी दल पाकिस्तान में भारी तबाही मचा चुके हैं। पाकिस्तान से आई रेगिस्तानी टिड्डियों के विशाल झुंड ने पश्चिमी और मध्य भारत में फसलों को काफी नुक्सान पहुंचाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीते तीन दशकों में टिड्डियों का यह सबसे बड़ा हमला है। टिड्डियों के दल अब तक 70 हजार हैक्टेयर भूमि को बर्बाद कर चुके हैं। करोड़ों की संख्या वाला टिड्डियों का दल हजारों लोगों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न काे समाप्त कर सकता है। पिछले वर्ष भारी बारिश और चक्रवात के चलते टिड्डियों के प्रजनन में बढ़ौतरी हुई और इसी वजह से अरब प्रायःद्वीप पर टिड्डियों की आबादी में तेजी से वृद्धि हुई। एक टिड्डा रोजाना अपने वजन के बराबर यानी करीब 2 ग्राम खाना खा सकता है।
भारत में 1993 के बाद से अब तक कभी भी इतने बड़े स्तर पर टिड्डी का हमला नहीं देखा। बड़ी उम्र वाले लोग बताते हैं कि 1952 में भी टिड्डी दल ने धावा बोला था। टिड्डियां जिस भी पेड़ पर बैठ जातीं उसका एक-एक पत्ता खा जाती हैं। 1960 में भी टिड्डियों ने हमला बोला था, तब भी टिड्डियों ने काफी फसल को नोच कर रख दिया था। कोरोना महामारी से पहले से ही जंग लड़ रहे लोग अब टिड्डी दल के सफाये और उसे भगाने के ​लिए हरसम्भव उपाय कर रहे हैं। किसान रात-रात भर खेतों में खड़े होकर थाली बजाते हैं, शोर-शराबे वाला संगीत बजाते हैं और ​कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत टिड्डी दल की आपदा से भी उभर जाएगा लेकिन टिड्डियों ने न केवल किसानों बल्कि आम लोगों के जनजीवन को भी प्रभावित किया है। कोरोना महामारी के बीच टिड्डी ​दल पर नियंत्रण पाना अपने आप में चुनौती है। हालांकि राजस्थान, गुजरात, पंजाब और मध्य प्रदेश में टिड्डी दल पर नियंत्रण पा लिया गया है। इन आपदाओं को झेल कर भी जिनके भार से भूमि पीडि़त है उनकी खबर लेने वाला कोई नहीं है। कोरोना महामारी में भी लूट जारी है। अफसोस इस बात का है कि-
‘‘सभी कुछ हो रहा है, इस जमाने में
मगर ये क्या गजब है, आदमी इंसा नहीं होता।’’

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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