पर्यावरण के रचनात्मक प्रशासन के जरिए हरित बदलाव
पर्यावरण कुजनेट्स वक्र (एनवायरनमेंट कुजनेट्स कर्व) से हासिल पर्यावरण के प्रशासन से जुड़ा पारंपरिक ज्ञान यह मानता है कि देश पहले विकास करते हैं और बाद में सफाई में जुटते हैं। यह अनुभवजन्य अंतर्दृष्टि अब विकसित हो चुके उन देशों के अनुभवों से प्रेरित है, जिन्होंने विकास की प्रक्रिया में संसाधन संबंधी जरूरतों को पूरा करने हेतु देश और विदेश में प्राकृतिक पर्यावरण का दोहन किया लेकिन ऐसी सुविधा भारत जैसे देशों को नसीब नहीं है, जिन्हें अपनी विशाल आबादी की विकास संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अभी भी तेज गति से विकास करने की जरूरत है।
जब 2014 में एनडीए सत्ता में आई तो चुनौती हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मूल सिद्धांतों- “सुधार, प्रदर्शन और बदलाव” पर आधारित विकास एवं प्रगति को गति देने की थी। इन सिद्धांतों में जरूरत के हिसाब से पर्यावरण की सुरक्षा के सख्त उपायों से समझौता किए बिना ‘व्यवसाय करने में आसानी’ की सुविधा प्रदान करते हुए तेज गति से विकास करना शामिल था। आज 2025 में हम न सिर्फ इस चुनौती से निपट पाने में सफल रहे हैं, बल्कि हमने शासन का एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसे सारी दुनिया ने माना है। प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण बिल्कुल साफ था, इस प्रणाली को एक ऐसी प्रणाली में बदला जाए जो “इकोलॉजी और अर्थव्यवस्था” दोनों के लिए फायदेमंद हो।
वर्ष 2014 में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरूआत हमारी पहली बड़ी पहल थी। यह पहल स्वच्छता से आगे बढ़कर कचरे के प्रबंधन व पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक व्यापक ढांचा स्थापित करने तक जा पहुंची। इस मिशन ने पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को सामाजिक विकास के साथ जोड़ने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाया।
वर्ष 2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल में भी कड़े पर्यावरण अनुपालन मानकों को शामिल किया गया। इससे यह साबित हुआ कि हम इकोलॉजी की स्थिरता को बनाए रखते हुए मैन्यूफैक्चरिंग को अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर और तेज गति से बढ़ावा दे सकते हैं। ऊर्जा संबंधी दक्षता को बढ़ावा देने और ऊर्जा पर आधारित अधिक संख्या में उद्योगों को शामिल करने के उद्देश्य से 2015 में प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पीएटी) योजना का विस्तार किया गया। इससे ऊर्जा संबंधी दक्षता के लिए एक बाजार-आधारित तंत्र का निर्माण हुआ।
कचरे के कारगर प्रबंधन, संसाधन संबंधी दक्षता में बढ़ाैतरी और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2016 से कचरे के प्रबंधन के सभी प्रमुख नियमों को नियमित रूप से अद्यतन किया जा रहा है। इस दृष्टिकोण का बुनियादी सिद्धांत बाजार आधारित तंत्र और “प्रदूषक द्वारा भुगतान के सिद्धांत” पर आधारित विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व से जुड़े ढांचे पर निर्भरता में निहित है। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, ई-कचरा प्रबंधन नियम तथा टायर, बैटरी एवं प्रयुक्त तेल अपशिष्ट प्रबंधन नियम आदि इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर तैयार किए गए थे। इससे एक ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण हुआ, जिसके तहत विभिन्न सामग्रियों के लगभग 4,000 पुनर्चक्रणकर्ताओं को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं के रूप में अनौपचारिक क्षेत्र से हटाकर औपचारिक क्षेत्र में लाया गया है। इस कदम से वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान 1600 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ है। वर्ष 2022 में शुरू किए गए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) पोर्टल चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, कुल 61,055 उत्पादकों ने प्लास्टिक पैकेजिंग, ई-कचरा, बेकार टायर, बैटरी के कचरे और प्रयुक्त तेल के क्षेत्र में काम करने हेतु ईपीआर पोर्टल पर पंजीकरण कराया है। अपशिष्ट नियम, 2022 के प्रकाशन और ईपीआर पोर्टल की शुरूआत के बाद शोधित अपशिष्ट की मात्रा वित्तीय वर्ष 2024-25 में इन नियमों के प्रकाशन से पहले 3.6 एमएमटी प्रति वर्ष की तुलना में बढ़कर 127.48 एमएमटी प्रति वर्ष हो गई है। यह सभी हितधारकों के सहयोग एवं समर्थन से संभव हुआ है।
‘परिवेश’ ने पर्यावरण संबंधी मंजूरी की बोझिल एवं कागज-आधारित प्रक्रिया को एक सुव्यवस्थित एवं मजबूत डिजिटल अनुभव में बदल दिया है। इस दृष्टिकोण ने जहां पर्यावरण से जुड़े सख्त मूल्यांकन को बनाए रखा है, वहीं इस प्रक्रिया में लगने वाले समय में काफी कमी ला दी है और पारदर्शिता को बढ़ाया है। वर्ष 2019 में शहरों पर केन्द्रित कार्य योजनाओं से लैस ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (एनसीएपी) के आधिकारिक शुभारंभ ने हमें नीति निर्माता एवं नियामक से बदलकर अमल करने वाला बना दिया है। एनसीएपी का लक्ष्य 2025-26 तक पीएम10 सांद्रता में 40 प्रतिशत की कमी लाना या आधार वर्ष 2017-18 की तुलना में 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के राष्ट्रीय मानक को हासिल करना है। एनसीएपी के साथ-साथ सीपीसीबी ने एनसीएपी के तहत आने वाले 131 शहरों में वायु की गुणवत्ता के रुझान की बारीकी से निगरानी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
1 जुलाई, 2022 से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध और 31 दिसंबर 2022 से 120 माइक्रोन से अधिक मोटाई वाली प्लास्टिक शीट पर प्रतिबंध ने जहां पर्यावरण के क्षेत्र में साहसिक नेतृत्व का परिचय दिया, वहीं उसी वर्ष शुरू किए गए ‘जल जीवन मिशन’ ने पानी की सुलभता को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ जोड़ा। एक व्यापक ‘भारत शीतलन कार्य योजना’ विकसित करके भारत दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हो गया है। इस कार्य योजना में विभिन्न क्षेत्रों की शीतलन संबंधी जरूरतों को पूरा करने वाले एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण समावेश है तथा इसमें ऐसे कार्यों की सूची दी गई है जो शीतलन से जुड़ी मांग को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
भारत ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) के उत्सर्जन में चरणबद्ध तरीके से कमी लाने हेतु 27 सितंबर 2021 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन का अनुमोदन किया। इसके तहत 2032 से आगे चार चरणों में चरणबद्ध तरीके से इस कार्य को पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई गई है और 2032, 2037, 2042 एवं 2047 में उत्सर्जन में क्रमशः 10 प्रतिशत, 20 प्रतिशत, 30 प्रतिशत और 85 प्रतिशत की कटौती की जाएगी। वर्ष 2022 में पारित ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम ने भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना की स्थापना की।
- भूपेंद्र यादव
केन्द्रीय पर्यावरण, वन मंत्री