बढ़ते वाहन-बड़ा चैलेंज, आओ अनुशासित बनें
यह सच है कि दिल्ली एक प्रगतिशील राजधानी है जो देश की शान है लेकिन वायु प्रदूषण की बड़ी समस्या के बीच दिल्ली की सड़कों पर दौड़ते वाहन, जगह-जगह जाम एक खास संदेश दे रहे हैं जिसे सुनना और समझना होगा। इतना ही नहीं उपाय भी करना होगा। देश की राजधानी दिल्ली दुनिया के नक्शे में एक खास पहचान रखती है जिसमें सम्पूर्ण भारत की विविधता का दीदार है लेकिन चिंतनीय बात बढ़ता ट्रैफिक तथा बढ़ते वाहन हैं। दिल्ली ने उन्नति के नए शिखर छुए हैं लेकिन आज की तारीख में वाहनों के मामले में जो विकराल समस्या उभर रही है वह सचमुच अलार्म दे रही है। वहीं बढ़ता वायु प्रदूषण भी एक बड़ा चैलेंज बन रहा है।
खुद को एक आधुनिकतम राजधानी के रूप में भी स्थापित किया है लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या एक नई चुनौती के रूप में ऊभर रहे हैं। बढ़ते वाहन वायु प्रदूषण की एक नई समस्या को भी जन्म दे रहे हैं जिसके लिए सरकारें गंभीरतापूर्वक बहुत कुछ कह रही हैं लेेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि लोगों को खुद को इस मामले में अनुशासित बनना होगा।
एक अनुमान के अनुसार पिछले तीन दशकों में दिल्ली की सड़कों पर वाहनों की संख्या में लगभग 21 गुना वृद्धि हुई है, जबकि सड़क की लंबाई केवल दोगुनी हुई है। व्हीकल पर एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में दिल्ली में सभी कैटेगरीज के 1.22 करोड़ से अधिक रजिस्टर्ड व्हीकल थे। रिपोर्ट के अनुसार 1981 से 2021 तक तीन दशक के बीच मोटर व्हीकल्स की तादाद में रिकार्ड तोड़ वृद्धि िचंतनीय है। वहीं इसी टाइम पीरियड में सड़क की लंबाई 15,487 किमी से बढ़कर महज 33,198 किमी हो सकी है। गाड़ियों की संख्या से बढ़े एक्सीडेंट्स राजधानी की सड़कों पर लगातार बढ़ती भीड़ ने कई परिवहन समस्याओं में खुद को प्रकट किया है। मेन रोड का ट्रैफिक सड़कों की वहन क्षमता की दहलीज को लगभग पार कर गया है। बढ़ती आबादी और सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ने से दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। व्हीकल पॉप्युलेशन, मानव व्यवहार भी मायने रखते हैं।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने भी स्वीकार किया कि दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण को लेकर 1981 से 2021 के बीच 40 साल में दिल्ली एनसीआर में वाहनों की संख्या 21 गुना बढ़ी है। लेकिन बुनियादी सड़क ढांचा केवल दोगुना ही हो पाया है। यही असंतुलन हमारे शहरों का दम घोंट रहा है। इसके लिए महज तकनीक पर्याप्त नहीं है, व्यवहार परिवर्तन भी उतने ही आवश्यक हैं। हमें ई-वाहनों का भी इस्तेमाल करना होगा। लोग भी आज ई वाहन इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन यह आंकड़ा बहुत कम है। ई वाहनों को प्रमोट करने के लिए बहुत कुछ करना होगा।
दिल्ली की बसों में इलेक्ट्रिक बसों की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत हो गई है। इसमें 7,600 से अधिक ई-बसें पहले ही तैनात की जा चुकी हैं। बताया जाता है कि दिल्ली हर साल तीन महीने के लिए रहने लायक नहीं रहती। वायु प्रदूषण से हमें 6.3 वर्ष की आयु हानि और लगभग 100,000 करोड़ यानी जीडीपी का तीन प्रतिशत का नुकसान होता है। सभी दो और तिपहिया वाहन एक वर्ष के भीतर इलेक्ट्रिक हों जाएंगी तो अच्छा है। सभी नई टैक्सियां इलेक्ट्रिक वाली होनी चाहिए।
यह तथ्य भी देखना जरूरी है कि राजधानी में करीब 90 लाख वाहन पंजीकृत हैं और एक अनुमान के अनुसार उनमें से करीब 50 लाख वाहन रोजाना सड़कों पर उतरते हैं। इसके अलावा करीब 10 लाख वाहन पड़ोसी राज्य से राजधानी में आते हैं। इस तरह रोजाना राजधानी की सड़कों पर करीब 60 लाख वाहन दौड़ते हैं, लेकिन पार्किंग की व्यवस्था भी जरूरी है।
राजधानी में पार्किंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। राजधानी में जिस रफ्तार से वाहनों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से पार्किंग की सुविधा नहीं हो रही है। रोजाना सड़कों पर उतरने वाले वाहनों की तुलना में पार्किंग व्यवस्था ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इस कारण पार्किंग को लेकर लोगों में आए दिन झगड़े होने के मामले सामने आते रहते हैं। इसके अलावा रोजाना सड़कों पर वाहन खड़े होने से यातायात जाम की समस्या बनी रहती है। लिहाजा राजधानी वर्तमान समय के दौरान पार्किंग सुविधा के मामले में एक बड़े संकट का सामना कर रही है।
दिल्ली में लगभग 560 पार्किंग स्थल हैं और उनमें करीब 30 हजार वाहन खड़े हो सकते हैं। यह स्थिति एक गंभीर समस्या है, क्योंकि पार्किंग की कमी वाहन वालों के लिए एक चुनौती बन गई है। पार्किंग की कमी के कारण जब वाहन वालों को सड़कों पर या फिर अवैध स्थानों पर पार्किंग करनी पड़ती है। इससे न केवल यातायात में बाधा आती है और अधिक भीड़भाड़ होती है, बल्कि इससे सड़क सुरक्षा भी प्रभावित होती है। इसके अलावा वाहन वालों का रोजाना पार्किंग के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनके समय की बर्बादी होती है। हालांकि सरकारी तौर पर पार्किंग समस्या दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन खुद गम्भीर नहीं हैं। वाहन पार्क करने की वो सेंस नहीं है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। सड़कों के आस-पास गाड़ी पार्क करना ठीक बात नहीं। लोगों को अनुशासित बनना ही होगा। पार्किंग की समस्या को हल करने के लिए स्थानीय निकायों ने कई बार पार्किंगस्थलों की संख्या में वृद्धि की है, लेकिन यह वृद्धि वाहन की बढ़ती संख्या के मुकाबले कहीं अधिक कम है।
आखिरकार सड़कें और स्पेस तो उतना ही है। दिल्ली का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत रहा है। फ्लाई ओवराें का जाल बिछा हुआ है। ऐसे में रिकार्ड बताते हैं कि दिल्ली में हर साल 7 से 9 लाख वाहन रजिस्टर्ड होते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन 2000-3000 नए वाहन दिल्ली की सड़कों पर आते हैं। देखने में आया है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से आज भी दिल्ली की आबादी का एक बड़ा हिस्सा शत-प्रतिशत रूप से जुड़ नहीं पाया। लोग अपनी कारों से आना-जाना पसंद करते हैं और यह एक स्टेटस सिंबल बन रहा है। महंगी कारें रखना शान बन गया है। एक-एक घर में तीन-तीन, चार-चार, पांच-पांच वाहन हैं। व्यापारी और कम्पनी लोगों के लिए यह ठीक हो सकता है लेकिन मोहल्ले कालोनियों में यह प्रवृत्ति ठीक नहीं।