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जीएसटी और आम आदमी

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12:03 AM Jul 02, 2018 IST | Desk Team

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देश में वस्तु एवं सेवाकर यानि जीएसटी लागू होने की पहली वर्षगांठ पर जीएसटी दिवस मनाया गया। हमारी संसद में आधी रात का सत्र बेहद अहम घटनाओं के लिए सुरक्षित रखा जाता है। पहली बार 15 अगस्त 1947 को आधी रात संसद में स्वतंत्रता की घोषणा हुई थी जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ‘नियति से साक्षात्कार’ वाला अपना मशहूर भाषण दिया था। उसके बाद सिर्फ तीन अवसरों पर ही संसद में आधी रात का सत्र आहूत किया गया। पहले 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन की स्वर्ण जयंती पर और दूसरी बार 1997 में आजादी की पचासवीं वर्षगांठ पर और तीसरी बार मोदी सरकार ने माल एवं सेवाकर की शुरूआत करने के लिए पिछले वर्ष 30 जून और एक जुलाई की मध्य रात्रि विशिष्ट संसद सत्र आहूत किया था, जिसने यह दर्शाया कि अब तक के सबसे बड़े कर सुधारों को कितना प्रतीकात्मक महत्व दिया गया। मोदी सरकार और वित्त मंत्री अरुण जेतली जीएसटी लागू करने का एक वर्ष पूरा होने पर इसका पूरा श्रेय ले सकते हैं।

सरकार ने इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रचारित भी किया। जीएसटी के करीब एक दर्जन करों को सम्माहित किया गया। केन्द्रीय स्तर पर लगने वाले उत्पाद शुल्क, राज्यों में लगने वाले मूल्य वर्द्धित कर (वैट) आैर कई स्थानीय शुल्कों को जीएसटी में सम्माहित किया गया। इसके बाद एक राष्ट्र एक कर की नई प्रणाली लागू हुई।  अब समय है कि हम जीएसटी के नफे आैर नुक्सान का आकलन करें आैर साथ ही यह भी तय करें कि इससे आम आदमी को कोई फायदा हुआ या नहीं। जीएसटी को लेकर व्यापारी और कारोबारी संशकित रहें। वह आज तक नई कर प्रणाली के विवरणों, एक मुनाफा विरोधी एजैंसी की संभावनाओं और उस इलैक्ट्रोनिक प्रणाली में उलझे हुए हैं। कई जगह व्यापारियों ने जीएसटी के विरोध में दुकानें बंद रख विरोध-प्रदर्शन भी किए। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में परोक्ष कर प्रणाली को आसान बनाए जाने का पक्ष बहुत सशक्त है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान प्रत्यक्ष कर संग्रह में 44 फीसदी की बढ़ौतरी हुई। जीएसटी वित्त वर्ष की शुरूआत में लागू नहीं हुआ था। व्यावहारिक परेशानियों को देखते हुए कई महत्वपूर्ण बदलाव भी होते रहे। इसलिए इसका पूरा प्रभाव दिखाई नहीं दिया। इस दौरान आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या 6.86 करोड़ पहुंच गई।

आयकर रिर्टन भरने वालों में 1.06 करोड़ नए रहेे। आयकर प्राप्ति में भी बढ़ौतरी हुई। वित्त सचिव कह रहे हैं कि ई-वे बिलों के लागू किए जाने के बाद बेहतर अनुपालन से मई माह में जीएसटी पिछले साल से काफी अधिक मिला। राजस्व संग्रह ने पहली बार एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार किया था। जीएसटी लागू होने पर सरकार का राजस्व कम होने की सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं। पहले जिन राज्यों में कर कम था, व्यापारी वहां का इनवायस दिखाकर माल भेज देते थे अब दो नम्बर का माल भेजना कम हो गया है। सरकार के मुताबिक जीएसटी से महंगाई नियंत्रण में रही। कुछ वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं जबकि खाद्य उत्पादों, टूथपेस्ट, हेयर आयल आदि के दाम स्थिर रहे या घटे। निर्माताओं ने जीएसटी लागू होने के बाद जिन उत्पादों के दाम घटने चाहिए थे, उनके न्यूनतम मूल्य बढ़ाकर मूल्य बराबर कर दिए। आम लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कोई फर्क नहीं पड़ा असर पड़ा तो छोटे व्यवसायियों और कारोबारियों पर। दूसरा पहलू यह भी है कि सरकार भले ही महंगाई पर नियंत्रण के दावे करे लेकिन इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि सर्विसेज महंगी हुई है। अर्थव्यवस्था में सर्विसेज का हिस्सा 60 फीसदी है।

यानी अर्थव्यवस्था के 60 फीसदी हिस्से के दाम बढ़ गए। पहले इन पर 15 फीसदी टैक्स था, अब 18 फीसदी जीएसटी है। पैसे तो आम आदमी की जेब से ही निकले। एक वर्ष में जीएसटी प्रणाली से जुड़ी सौ अधिसूचनाएं जारी की गईं। यानी हर तीसरे दिन नई अधिसू​चना जीएसटी एक्ट और जीएसटी नेटवर्क में तालमेल का अभाव दिखा एक क्रेडिट लेजर और एक कैश लेजर का प्रावधान था परन्तु 6 तरह के कैश लेजर बताए गए। जीएसटी में भी लोग कर चोरी के रास्ते तलाश रहे हैं। आज भी काफी व्यापार कच्चे पर हो रहा है। दुकानदार पूछते हैं कि बिल चाहिए या नहीं। इसका अर्थ यही है कि बिल चाहिए तो 28 फीसदी या जो भी टैक्स देय है देना होगा। छाेटे डिस्ट्रिब्यूटर, रिटेलर और छोटे दुकानदार जैसे लोगों में कच्चा व्यापार आज भी चल रहा है। जीएसटी काफी जटिल है। लोग कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। कई व्यापारियों का कहना है कि उनकी आमदनी उतनी नहीं कि वो हर महीने चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलों को पैसा दें। जीएसटी उनका खर्च बढ़ा रही है। पूरा साल जीएसटी को सरल बनाने में ही लग गया। जीएसटी गुड टैक्स तभी हाे सकता है जब उपभोक्ताओं को राहत महसूस हो और सिंपल तब होगा जब कारो​बारियों के लिए नियम आसान होंगे। जीएसटी को गुड और सिंपल बनाना बहुत जरूरी है। फर्जी बिलों के जरिए टैक्स क्रेडिट लेने की घपलेबाजी सामने आ रही है। बहुत सी कमियां भी उजागर हो रही हैं। हवाला कारोबार में बढ़ौतरी हो रही है। सरकार का राजस्व बढ़ेगा तो स्लैब दरें कम हो सकती हैं लेकिन फिलहाल ऐसा करना जोखिम भरा भी हो सकता है। भारतीय बैंकों की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्लैब दरें कम करने से केन्द्र को नुक्सान हो सकता है। चुनौतियां अभी बाकी हैं, जरूरत है जीएसटी का खौफ दूर करने की।

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