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कर्नाटक में भी ‘ज्ञानवापी’

काशी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बाद सवाल उठ रहे हैं कि देश में कितनी ज्ञानवापी मस्जिदें हैं।

03:50 AM May 26, 2022 IST | Aditya Chopra

काशी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बाद सवाल उठ रहे हैं कि देश में कितनी ज्ञानवापी मस्जिदें हैं।

कर्नाटक में भी ‘ज्ञानवापी’
काशी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बाद सवाल उठ रहे हैं कि देश में कितनी ज्ञानवापी मस्जिदें हैं। काशी, मथुरा, कुतुबमीनार के विवाद के बाद अब कर्नाटक की ज्ञानवापी मस्जिद सामने आई है। मेंगलुरु में मरम्मत के​ लिए मस्जिद की  दीवार तोड़ी गई तो ऐसी कलाकृति और ऐसी वास्तुशैली नजर आई, जो मंदिर होने के साक्ष्य हैं। मस्जिद के खम्भों पर नक्काशी ऐसी हैं जैसी आमतौर पर मस्जिदों में नहीं होती। दीवार की छत के किनारों पर जो डिजाइन बनी है, वो भी किसी मस्जिद में नहीं दिखती। दीवारों पर फूलों के निशान हैं। जो भी आकृति और कलाकारी मिल रही है, जो आमतौर पर दक्षिण भारत के मंदिरों में दिखती है। ​दीवारों पर पेंट किया गया है। जैसे किसी सच्चाई को छिपाने की कोशिश की गई हो। ऐसा लग रहा है कि किसी पुराने हिस्से को छिपाने के लिए आगे एक दीवार खड़ी की गई थी और जैसे ही दीवार गिरी सच्चाई सामने आ गई। विश्व हिन्दू  परिषद के नेताओं ने दावा किया है कि मस्जिद से पहले यहां कभी मंदिर हुआ करता था। सच्चाई जानने के​ लिए प्रशासन ने भी सरकारी दस्तावेज खंगालने शुरू कर दिए हैं। फिलहाल मस्जिद में चल रहे निर्माण कार्य को रुकवा दिया गया है।
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इससे पहले कर्नाटक में श्री रंग पटना जामिया मस्जिद विवाद सामने आया था। मेंगलुरु के मलाली में अब असैयीद अदबुुल्ला शाहिद मदनी मस्जिद के नवीकरण के दौरान मंदिर की संरचना मिलने पर विहिप और अन्य हिन्दू  संगठनों ने अब पुजारियों के सामने ‘तंबुला प्रश्न’ पेश करके पारम्परिक तरीके से सच्चाई का पता लगाने का फैसला  किया  है। तटीय कर्नाटक में लोग पिछली पीढ़ियों का इतिहास जानने के लिए पुजारियों से सम्पर्क करते हैं। यह व्यापक रूप से प्रचलित कथा है। मस्जिद के इतिहास का पता लगाने के​ लिए अगले कदम के रूप में तंबुला प्रश्न के बाद अष्टमंगला प्रश्न भी डालेंगे। अगर पुजारी कहते हैं कि मलाली मस्जिद एक मंदिर था तो मुद्दा भड़क सकता है। अष्टमंगला एक पारम्परिक ज्योतिष पद्धति है जो तंबुला प्रश्न की तुलना में अधिक स्थाई है। हिन्दू संगठन मार्गदर्शन प्राप्त कर कानूनी तौर पर आगे बढ़ेंगे। कौन नहीं जानता कि देश में सैकड़ों मस्जिदें मंदिर पर निर्मित हैं।
सन् 1669 में धर्मांध औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया था-काफिरों के सारे मंदिर व पाठशालाएं नष्ट कर​ दिए जाएं और उनकी पूजा-पाठ पर रोक लगाई जाए। सोमनाथ का विश्व प्रसिद्ध शिव मंदिर महमूद गजनबी ने लूटा और नष्ट किया था, पर राजा भीमदेव ने उसका पुनर्निर्माण किया था। औरंगजेब ने उसे फिर मिट्टी में मिला दिया था। मथुरा का प्रसिद्ध मंदिर वीर सिंह बुंदेला ने विशाल राशि खर्च कर बनवाया था जिसे औरंगजेब की आज्ञा से तोड़ कर मस्जिद बनाई थी। मूर्तियों को तोड़ कर उन टुकड़ाें को जहांनारा मस्जिद की सीढ़ियों पर चुनवा दिया गया जिससे उसे मुसलमान रौंदता हुआ जाकर नमाज पढ़े। उज्जैन और मालवा के सारे मंदिरों को भी औरंगजेब ने ​िगरवाया और उनकी जमीन व सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया। उड़ीसा, राजस्थान, गुजरात के सारे मंदिरों को उसने ध्वस्त कराया। उदयपुर पर आक्रमण कर वहां 180 मंदिर, चित्तौड़ के 63 और अम्बर के 66 मंदिर उसने ध्वस्त कराए। छोटे मंदिरों को क्षेत्रवार सूची में अनगिनत स्थान थे जो मुस्लिम इतिहासकार स्वयं देते रहे। यहां तक कि दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर पड़े रहने वाले नंगे फकीर सरमद को उसने गला काट कर मरवा दिया क्योंकि उसने कहा ‘अनलहक’-मैं ईश्वर हूं। औरंगजेब को अनेक इतिहासकारों ने भी जल्लादों का जल्लाद कहा था, पर यह एक क्रूर विडम्बना है कि देश की राजधानी दिल्ली में ही हमने ‘औरगंजेब रोड’ बनाई है, उसका प्रतिरोध करने वालों का नाम भी कहीं नहीं लिया जाता है।
औरंगजेब ने दक्षिण भारत पर भी शासन किया था। उस दौरान कौन-कौन से मंदिर ध्वस्त कर उसे मस्जिद बनाया गया। इन्हें लेकर भी इतिहास स्पष्ट नहीं है। देश के हर कोने में मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनाने के उदाहरण मिल जाएंगे। आज वर्तमान पीढ़ी को विकृत इतिहास लेखन और धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीतिक पाखंड से अवगत कराना बहुत जरूरी है। इससे मुस्लिम आक्रांताओं के पक्षधर इतिहासकारों के बौ​द्धिक प्रपंच का भंडाफोड़ ही होगा। आज विज्ञान इतना प्रगति कर चुका है और आज हमारे पास ऐसे वैज्ञानिक उपकरण हैं उनसे चाहे भूमि में दबी हुई धातुओं की प्रतिमाएं हैं, शिलालेख हो या मुद्राएं अथवा हिन्दू जैन मंदिरों की नींव, इन सब की गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं। राडार इमेजिंग और लेजर किरणों के भूमिगत सर्वेक्षण द्वारा थ्रीडाइमेशनल चित्र लिए जा सकते हैं। बिना किसी उत्खन्न या खुदाई के पुरातात्विक धरोहरों के बारे में यह पता लगाना सम्भव हो गया है कि उनके भीतर है क्या? आज जरूरत है इतिहास की गलतियों को ठीक करने की। हिन्दू इस समय काफी जागरूक हैं और वह इतिहास का सच जानना चाहता है।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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