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हरियाणा की छोरियों ने दिखाई नई राह

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08:44 PM May 18, 2017 IST | Desk Team

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म्हारी छोरियां छोरों से कम सैं के। फिल्म दंगल का यह डायलाग हरियाणा के खिलाडिय़ों के लिए हर वक्त सटीक ही होता है। हरियाणा की बेटियां कुश्ती और अन्य खेलों में तो आगे हैं ही लेकिन इस बार इन्होंने शिक्षा का अपना सपना पूरा करने के लिए अनशन कर बाजी मार ली है। मनचलों की छींटाकशी से तंग आकर गांव गोठड़ा में ही 12वीं तक स्कूल खोलने की मांग करते हुए अनशन पर बैठीं छात्राओं के आंदोलन ने हरियाणा सरकार को गांव के स्कूल को 10 जमा 2 तक अपग्रेड करने को मजबूर होना पड़ा। छात्राओं ने अपनी आवाज बुलंद की तो राज्य सरकार ने कई अन्य दसवीं तक के स्कूलों के अपग्रेडेशन का फैसला ले लिया है। इसके साथ ही हरियाणा के पुलिस महानिदेशक को स्कूल और कालेज जाने वाली छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है। पिछले कुछ दिनों से गैंगरेप की घटनाओं के बाद हरियाणा में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बहस चल रही है। सूर्य उदित होता है, प्रकाश प्रसारित करता है, जो वस्तुएं निमिरावृत होने से अरूप हैं, उन्हें रूप प्रदान करता है। ज्ञान औैर शिक्षा का उद्देश्य भी यही है। ज्ञान और शिक्षा का उद्देश्य भी यही है। ज्ञान और शिक्षा अज्ञानता, अशिक्षा और अंधविश्वासों के अंधेरे दूर करते हैं लेकिन देश में शिक्षा व्यवस्था कैसी है, इसके बारे में सभी जानते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की हालत बहुत खस्ता है। उच्च शिक्षा के लिए छात्र-छात्राओं को गांव से बाहर जाना पड़ता है। जरा उस समाज के बारे में सोचिये जहां लड़कियां केवल इसलिए गांव से दूर पढऩे नहीं जातीं क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर भय होता है।

हरियाणा की लड़कियों की भी यही शिकायत थी कि स्कूल जाने के रास्ते में उनसे छेड़छाड़ होती है। जिस समाज में लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा का भय स्थापित हो जाए वहां शिक्षा के लिए उचित वातावरण कैसे सृजित होगा। साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। अगर हम अपने देश की तुलना आसपास के देशों से करें तो चीन, श्रीलंका, म्यांमार, ईरान से भी पीछे हैं। यद्यपि मुफ्त औैर अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। हालांकि इस उद्देश्य को पिछले वर्ष पूरा किया जाना था लेकिन वह पूरा नहीं हो सका। इसके लिए सरकार के पास धन नहीं था। हरियाणा, पंजाब के गांवों का तो शहरीकरण हो चुका है, उन दूरदराज के क्षेत्र, आदिवासी बहुल गांव और दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों की सोचिए कि वहां शिक्षा का तंत्र कैसा होगा। सरकारी स्कूलों में सुविधाएं न के बराबर हैं, इमारतें टूट रही हैं। हमारे यहां शिक्षा का जिम्मा राज्यों पर है। इसलिए सभी राज्यों ने इसकी चुनौतियों का सामना अपने ढंग से किया। जो राज्य स्कूलों में शिक्षा का विकास करने में सफल रहे, उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी चुनौतियों को प्राथमिकता दी। इसकी अगुआई दक्षिण के राज्यों ने की, जिन्होंने सर्वशिक्षा का इतिहास रचा। मैसूर, त्रावणकोर, कोचीन और बड़ौदा जैसी रियासतें तो पहले से ही गरीबों की शिक्षा पर जोर देती थीं और उनके महाराजाओं ने सर्वशिक्षा के लिए अनुदान और स्कूलों के खजाने से राशि भी दी थी। स्वतंत्रता के बाद उत्तर भारत से कहीं ज्यादा दक्षिण भारत के राज्यों ने शिक्षा पर जोर दिया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे कामराज ने ही मिड-डे-मील योजना की शुरूआत की थी। केरल शत-प्रतिशत साक्षर राज्य है।

आज भी भारत के 6 राज्यों में दो-तिहाई बच्चे स्कूल नहीं जाते जिनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। कहीं गरीबी कारण है तो कहीं हालात। इन राज्यों का इतिहास भी इसके लिए जिम्मेदार है। इन राज्यों में जातिगत मतभेद स्कूलों में पैठ बनाता गया, विशेष रूप से गांवों में जहां स्कूलों को पिछड़े और उच्च वर्गों में बांट दिया गया। इन राज्यों में शिक्षा का स्तर क्या है, इसके बारे में मीडिया कई बार दिखा चुका है। शिक्षकों को खुद साधारण अंग्रेजी शब्दों के स्पैलिंग नहीं आते, वे क्या किसी बच्चे को पढ़ाएंगे। हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद ही कमजोर है। अमीर लोग तो अपने बच्चों को एयरकंडीशंड स्कूलों में भेज सकते हैं लेकिन गरीबों के बच्चे तो सरकारी स्कूल में ही जाएंगे। हरियाणा की छोरियों ने अनशन कर नई राह दिखाई है। बेहतर होगा राज्य सरकारें गांव-गांव में 12वीं कक्षा तक स्कूल अपग्रेड करें और हो सके तो ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तंत्र की स्थापना करें ताकि लड़कियों को अपने गांव में ही सुविधाएं मिल सकें। इसके साथ ही बेटियों की सामाजिक सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जाएं। सरकारों और समाज को शिक्षा के प्रति पुरानी मानसिकता को बदलना ही होगा।

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