वो आसमान था, मगर सर झुका कर चलता था...!
मनमोहन सिंह मेरे लिए ऐसी ही शख्सियत थे, बिल्कुल नाम के अनुरूप मन मोह लेने वाले।
जिंदगी में आप ढेर सारे लोगों से मिलते हैं, उनके साथ काम करते हैं, कुछ लोगों से आपकी निकटता भी हो जाती है लेकिन ऐसे कम ही लोग होते हैं जो आपका मन मोह लें। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मेरे लिए ऐसी ही शख्सियत थे, बिल्कुल नाम के अनुरूप मन मोह लेने वाले। उनका जाना वास्तव में इतिहास के एक कालखंड का समाप्त हो जाना है, कहने वालों ने उन्हें ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भी कहा लेकिन देश आज जिस आर्थिक मुकाम पर खड़ा है उसमें उनकी भूमिका इतिहास में दर्ज है और इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य उन्हें हमेशा याद रखेगा। उनके कार्यकाल में मैं राज्यसभा सांसद था और सौभाग्यवश उनसे मेरी निकटता रही इसलिए कार्य करने की उनकी शैली को मैंने बहुत करीब से देखा। वे कभी किसी को बोलते नहीं थे, लोगों को बताते और जताते नहीं थे। आहिस्ते से काम करते थे और आगे बढ़ जाते थे, उनकी आवाज धीमी थी लेकिन सोच बड़ी गहरी थी।
1991 में जब भारत गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री बनाने का निर्णय लिया। दोनों ने मिलकर भारत का आर्थिक रोडमैप तैयार किया वर्ना उसके पहले तो देश समाजवाद की रोड पर चल रहा था। दोनों ने अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया। उसके बाद भारत की प्रगति का बही खाता सबके सामने है। आज भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी शक्ति है तो इसके बीज नरसिम्हा राव के कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने ही बोये थे। उनकी क्षमता को देखते हुए ही सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर आसीन किया था और मनमोहन सिंह पूरी तरह खरे उतरे थे लेकिन उन्हें परेशान भी सबसे ज्यादा कांग्रेस में उभरे नए गुट ने ही किया। जब वे शासकीय दौरे पर अमेरिका में थे तब एक अध्यादेश को राहुल गांधी ने फाड़ दिया था। जब वे वापस लौटे तो मैंने उनसे कहा कि मुझे तो ऐसा लग रहा था कि आप लौटते ही सीधे राष्ट्रपति भवन जाएंगे और इस्तीफा दे देंगे। मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘ये विचार दो बार मेरे मन में आया था, मैंने इस गंभीर विषय पर गुरशरण (पत्नी) से चर्चा की।
फिर मेरे मन में बात आई कि यह कहां तक उचित होगा? सोनिया गांधी को तकलीफ होगी, इसलिए रुक गया!’ हकीकत तो यही है कि उनके कार्यकाल के आखिरी दिनों में कांग्रेस में उभरा नया गुट अतिरिक्त शक्ति का उपयोग कर रहा था। काम करना मुश्किल था, फिर उनके मन में विचार आया कि इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सलाह सोनिया गांधी को दी थी लेकिन राहुल गांधी तैयार नहीं थे, कैबिनेट में रहने को लेकर भी वे सहमत नहीं थे। कांग्रेस में जिस तरह का सिरफुटव्वल चल रहा था उससे उन्हें अंदाजा हो गया था कि 2014 में कांग्रेस सत्ता में नहीं लौटेगी। फिर भी वे 100 सीटों की उम्मीद कर रहे थे, मैंने कहा- इससे कम उन्होंने कहा- हो सकता है। मनमोहन सिंह की बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने हमेशा ही पार्टी को खुद से ऊपर रखा।
वे जितने प्रतिभावान थे, उतने ही शानदार इंसान थे। उनकी सहजता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब भी मैं उनके निवास पर गया, शानदार आवभगत के बाद चलते समय वे गेट तक छोड़ने आए। भारतीय संस्कृति उनके दिल में बसती थी, भांगड़े के साथ लोहड़ी त्यौहार का खूब लुत्फ लेते थे। मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी परिवार सहित साथ होते थे, मुझे याद आ रहा है कि खालसा पंथ के 300 साल पूरे होने के पावन अवसर पर 2008 में गुरुद्वारा नांदेड़ साहिब में ‘गुरु-ता-गद्दी त्रिशताब्दी महोत्सव’ के आयोजन के सिलसिले में मनमोहन सिंह ने मुझे बुलाया। वे चाहते थे कि आयोजन शानदार हो, वे खुद तथा योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह अहलूवालिया और दूसरे अधिकारी चूंकि सिख पंथ से थे इसलिए मैंने आयोजन के लिए ज्यादा से ज्यादा राशि दिए जाने की मांग का पत्र लिखा और उस आयोजन के लिए सरकार ने पहली किश्त में 500 करोड़ की राशि दी।
उस आयोजन के लिए तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को चेयरमैन बनाया गया। स्थानीय गुटबंदी को दरकिनार करने के लिए मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे पी.एस. पसरीचा को स्थानीय कमेटी का इंचार्ज बनाया गया। रनवे बढ़ाने में जमीन का कोई मसला अटका था, मैंने तत्कालीन एविएशन मिनिस्टर प्रफुल्ल पटेल से आग्रह किया और न केवल रनवे बढ़ाया गया बल्कि नया रनवे बनाया भी गया ताकि इंटरनेशनल फ्लाइट उतर सके। एक और प्रसंग बताता हूं, परमाणु ऊर्जा रिएक्टर प्राप्त करने के लिए भारत सरकार तो कोशिश कर रही थी, मनमोहन सिंह ने अमेरिका के बड़े उद्योगपति संत सिंह चटवाल के साथ अपने मधुर रिश्ते का भी उपयोग किया। चटवाल भारत से प्यार करते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति से उनकी करीबी का फायदा भारत को मिला।
यह प्रसंग मैं आपको इसलिए बता रहा हूं ताकि आपको अंदाजा हो सके कि मनमोहन सिंह कितने सामाजिक और सहयोगी व्यक्ति थे, मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि वे स्वच्छ छवि वाले गजब के इंसान थे। मगर पेंच देखिए कि एक वक्त उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी। वे खुद को खतरे में महसूस कर रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच स्पष्ट थी कि पूर्व प्रधानमंत्री के साथ इस तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। गलत प्रथा पैदा हो जाएगी, फिर तो कोई प्रधानमंत्री निर्णय ही नहीं लेगा। मनमोहन सिंह के लिए बस इतना ही और कहना चाहूंगा कि…
जमाना कर न सका उसके कद का अंदाजा/ वो आसमान था,
मगर सर झुका कर चलता था…!