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तीन तलाक पीड़िताओं को मदद

योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के लिए छह हजार रुपए सालाना की आर्थिक मदद की घोषणा करके उस नारी समाज को अधिकार सम्पन्न करने का मार्ग प्रशस्त किया है।

04:26 AM Sep 27, 2019 IST | Ashwini Chopra

योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के लिए छह हजार रुपए सालाना की आर्थिक मदद की घोषणा करके उस नारी समाज को अधिकार सम्पन्न करने का मार्ग प्रशस्त किया है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के लिए छह हजार रुपए सालाना की आर्थिक मदद की घोषणा करके उस नारी समाज को अधिकार सम्पन्न करने का मार्ग प्रशस्त किया है जो पुरुषों के अन्याय का शिकार रहता आया है। इसके साथ ही हिन्दू समाज की परित्यक्ता नारियों को भी इतनी ही राशि की मदद देने के ऐलान से सम्पूर्ण नारी समाज को न्याय मिलने की संभावना बढ़ेगी, परन्तु तीन तलाक कानून पर भारत की संसद की मुहर लग जाने के बाद ये सवाल उठाये जा रहे थे कि सरकार ने इस प्रकार अपमानित व पीड़ित महिला के जीवन को आसान बनाने के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं किये हैं जिसकी वजह से कानून बन जाने के बावजूद मुस्लिम महिलाओं को प्रताड़ना में जीना पड़ सकता है, परन्तु श्री योगी के इस कदम से दूसरे राज्य भी प्रेरणा लेकर इसी प्रकार के फैसले करेंगे इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। 
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इसके साथ ही तीन तलाक कानून के आलोचक यह मुद्दा भी अक्सर उठाया करते थे कि सरकार ने तीन तलाक निषेध जैसा कानून केवल मुस्लिम समाज में भय पैदा करने के लिए बनाया है और इसका उद्देश्य उनके पारिवारिक मामलों में दखलन्दाजी करने का है क्योंकि पृथक मुस्लिम आचार संहिता या ‘पर्सनल ला’ होने की वजह से मुस्लिम महिलाओं पर वे कानून लागू नहीं होते थे जो बहुसंख्यक हिन्दू समाज या अन्य समाज के लोगों पर भारतीय विवाह कानून के तहत कमोबेश लागू होते हैं। 
किन्तु मुस्लिम पुरुषों द्वारा धर्म के नाम पर जिस तरह ‘इस्लामी तीन तलाक प्रथा’ का मजाक बनाकर एक ही झटके में तीन बार तीन तलाक लिखकर या बोल कर देने को परंपरा बना दिया गया था उससे इस्लाम द्वारा निर्धारित तलाक प्रक्रिया की ही धज्जियां उड़ रही थीं और महिला समाज यह दर्द झेलने के लिए मजबूर कर दिया गया था, लेकिन तीन तलाक के खिलाफ सख्त दंडात्मक कानून बनाये जाने के बाद यह जायज सवाल खड़ा हो रहा था कि अपने पतियों के खिलाफ ऐसे मामलों में कानून की शरण लेने वाली मुस्लिम महिलाओं का आर्थिक स्रोत क्या होगा जिससे वे अपने बाल-बच्चों का भरण-पोषण कर सकें? 
हालांकि छह हजार रुपए वर्ष की धनराशि इतनी नहीं कही जा सकती कि एक परिवार अपने सालभर का खर्चा आराम से चला सके, इसके बावजूद यह मदद महिला को बेसहारा नहीं रहने देगी। इसके साथ ही श्री योगी ने ऐसी महिलाओं के शिक्षित होने पर उन्हें सरकारी नौकरियों में वरीयता देने और उनके बाल-बच्चों की निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था करने का भी वादा किया है। ठीक यही सुविधाएं उन हिन्दू औरतों को भी दी जायेंगी जिनके पतियों ने उन्हें छोड़ कर अवैध रूप से दूसरी महिला के साथ रहने का जुगाड़ लगा लिया है। 
जाहिर है इन शिकायतों की तसदीक होने पर ही इस बारे में आगे कार्रवाई की जा सकेगी क्योंकि हिन्दू आचार संहिता के तहत दूसरा विवाह करने पर कठिन सजा का प्रावधान है और वित्तीय मदद का भी विधान है मगर मुस्लिम महिलाओं के मामले में योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाया गया कदम हर लिहाज से काबिले तारीफ है क्योंकि इस समाज में शिक्षा की कमी की वजह से कानून बन जाने के बावजूद तीन तलाक हो रहे हैं। श्री योगी की सरकार ने ही आंकड़ा जारी किया है कि पिछले वर्ष के दौरान तीन तलाक के 273 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए हैं। 
इन सभी मामलों पर नये कानून की रोशनी में कार्रवाई होनी चाहिए। यह कार्य पुलिस का है और मुख्यमन्त्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिन पुलिसकर्मियों ने ऐसे मामलों में लापरवाही बरती है उनके खिलाफ शासन कार्रवाई करेगा। यह भी सुखद है कि मुख्यमन्त्री ने इस मामले में अपने समाज कल्याण मन्त्रालय को भी शरीक करने की घोषणा की है जिससे समग्र रूप से महिलाओं के साथ न्याय किया जा सके और हर उस स्तर पर उनकी मदद हो सके जहां भी सरकार कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। 
ऐसा करके ही हम मुस्लिम समाज की उन महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बना सकते हैं जिनके सर पर कल तक तीन तलाक की तलवार लटकी रहती थी लेकिन उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में ही एक दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि पूर्व केन्द्रीय मन्त्री और भाजपा नेता चिन्मयानन्द के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाने वाली शाहजहांपुर की छात्रा को भी रंगदारी मांगने के आरोप में जेल भेज दिया गया है जबकि चिन्मयानन्द ने पुलिस के समक्ष अपना अपराध स्वीकार करते हुए छात्रा के साथ दुर्व्यवहार करने की बात कबूली है। न्याय एक पक्षीय कैसे हो सकता है। 
हालांकि यह कहा जा सकता है कि पुलिस ने अपने हिसाब से छात्रा के विरुद्ध भी चिन्मयानन्द द्वारा लगाये गये आरोपों के सिलसिले में यह कदम उठाया है परन्तु प्राकृतिक न्याय की दृष्टि से यह उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। चिन्मयानन्द का अपराध हल्का करने और छात्रा पर भी कानून की तलवार लटकाये रखने का भी यह एक तरीका हो सकता है। इस तरफ भी योगी आदित्यनाथ को ध्यान देना चाहिए। सवाल यह भी है कि जब चिन्मयानन्द के खिलाफ उन गंभीर धाराओं के तहत पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया जिनके अन्तर्गत छात्रा ने रिपोर्ट लिखाई थी तो चिन्मयानन्द के आरोप दूध के धुले किस प्रकार हो गये? पुलिस को केवल वही करना चाहिए जो कानून कहता है।
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