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भ्रष्ट सिस्टम के आगे लाचार आदमी

बैंकिंग सैक्टर में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी फैल चुकी हैं, इस बात का अंदाजा रिजर्व बैंक के आंकड़ों से चलता है। बैंकिंग सैक्टर में जितने भी घोटाले हुए हैं, उनमें आला अफसरों से लेकर कर्मचारी तक शामिल होते हैं।

03:29 AM Oct 08, 2019 IST | Ashwini Chopra

बैंकिंग सैक्टर में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी फैल चुकी हैं, इस बात का अंदाजा रिजर्व बैंक के आंकड़ों से चलता है। बैंकिंग सैक्टर में जितने भी घोटाले हुए हैं, उनमें आला अफसरों से लेकर कर्मचारी तक शामिल होते हैं।

भ्रष्ट सिस्टम के आगे लाचार आदमी
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बैंकिंग सैक्टर में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी फैल चुकी हैं, इस बात का अंदाजा रिजर्व बैंक के आंकड़ों से चलता है। बैंकिंग सैक्टर में जितने भी घोटाले हुए हैं, उनमें आला अफसरों से लेकर कर्मचारी तक शामिल होते हैं। बैंकिंग तंत्र में अनेक छेद हो चुके हैं। पीएनबी में अरबपति जौहरी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने 11,300 करोड़ का घोटाला बैंक के ही कुछ अफसरों और कर्मचारियों के साथ मिलकर किया था। नोटबंदी​ के दौरान समूचा राष्ट्र बैंक मैनेजरों और कर्मचारियों के खुले भ्रष्टाचार का चश्मदीद बना है। नोटबन्दी को अगर किसी ने पलीता लगाया तो बैंकिंग सैक्टर ने ही लगाया।
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भ्रष्टाचार के लिए ऐसे-ऐसे नायाब तरीके ढूंढे जाते हैं कि किसी को भनक तक नहीं लगे। घोटालों का इतिहास उठाकर देखें। किसे मिला आज तक जांच आयोगों से न्याय। जब लोग सड़कों पर आकर छाती पीटते हैं तो राजनीतिक दबाव के चलते सरकारें जांच बैठा देती हैं। थोड़ी देर के लिए तूफान थम जाता है और समय की आंधी सब कुछ उड़ाकर ले जाती है। घोटालों का नतीजा चाहे जो भी निकला हो, किसी को सजा हुई हो या नहीं, अगर इन घोटालों पर किताब लिखी जाए तो राष्ट्र को और विशेषकर आने वाली नस्लों को पता तो चल जाएगा कि हमारी व्यवस्था में कितने छिद्र हैं।
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भारत में घोटालों का इतिहास काफी वीभत्स और घृणास्पद गुनाहों का इतिहास है। जो गुनहगार करार दिए गए, उन्होंने राजनीति का स्वर्णिम इतिहास देखा, जेलों में रहकर भी पूरी सुविधाएं लीं। मातम मनाया तो केवल लुटी-पिटी जनता ने। बिल्डर माफिया ने लोगों की मेहनत की कमाई को हड़प कर अपनी सम्पत्ति बना ली। लाखों फ्लैट खरीदार अब भी सु​प्रीम कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। अगर शीर्ष अदालत के आदेशों के बाद कुछ उम्मीद बंधी है तो कानूनी और प्रशासनिक कवायद इतनी उलझन भरी है कि पता नहीं फ्लैट मिलेगा भी या नहीं।
पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला भी रियल एस्टेट की कंपनी एचडीआईएल से जुड़ा हुआ है। बैंक ने एचडीआईएल को ​नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों का ऋण दिया। एचडीआईएल के चेयरमैन राकेश वाधवन और उनके बेटे सारंग वाधवन परिवार ने अपनी सम्पत्ति बना ली क्योंकि बैंक के अधिकारियों और वाधवन परिवार में सांठगांठ थी। अब ईडी ने परिवार की 12 महंगी कारें और उनकी 3,500 करोड़ की सम्पत्ति जब्त कर ली है। जब्त की गई महंगी कारों में दो रॉल्स रॉयस, दो रेंज रोवर और एक बेंटली शामिल है।
बैंक के पूर्व चेयरमैन वरियाम सिंह, बैंक के पूर्व प्रबन्ध निदेशक जॉय थामस को भी ​िगरफ्तार कर लिया गया है। अब घोटाले की परतें प्याज के छिलकों की तरह खुल रही हैं। वाधवन परिवार ने रियल एस्टेट का जो साम्राज्य खड़ा किया, उसे बनाने में बैंक के पूर्व चेयरमैन वरियाम सिंह की खास भूमिका रही है। वाधवन परिवार की दो संदिग्ध कम्पनियां भी हैं। इनमें प्रिविलेज एयरवेज प्राइवेट लिमिटेड, जिसके साथ फ्रांस की कम्पनी दसॉ द्वारा निर्मित फाल्कन जेट थे और ब्रॉडकास्ट इनीशिएटिव प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं, जो असल में वरियाम सिंह द्वारा संचालित थीं।
वरियाम सिंह ने बैंक के चेयरमैन पद पर रहते एचडीआईएल को 4335 करोड़ का ऋण दिया था। वरियाम सिंह ही कम्पनी और राजनेताओं के बीच सम्पर्क सूत्र का काम करते थे। एचडीआईएल की व्यापारिक सम्भावनाओं को बढ़ाने के लिए यूपीए-2 सरकार के दो मंत्रियों ने कम्पनी को मीडिया की शक्ति भी प्रदान की थी लेकिन इनका चैनल कामयाब नहीं हुआ था। जब कम्पनी ने बैंक ऋण नहीं लौटाया तो बैंक की हालत खस्ता हो गई। इस घोटाले को छिपाने के लिए बैंक ने फर्जीवाड़े का सहारा लिया।

– 21 हजार से अधिक खाते खोले गए जिनमें अधिकतम खाते मृतकों के नाम थे।
– जिनके खाते बन्द हो चुके थे, उनमें भी रकम चढ़ा दी गई।
– 45 दिनों में खाते क्रियेट किए गए और डिटेल भी आरबीआई को सौंप दी गई।
जांच के दौरान अब मुर्दे बोल पड़े हैं। सारी सच्चाई सामने आ चुकी है। आरबीआई को ऑडिट के समय क्यों नहीं सच्चाई का पता चला। आनन-फानन में आरबीआई ने बैंक पर पाबंदियां लगा दीं। लोगों के अपने ही धन को निकालने पर पाबंदियां लगा दीं। जब शोर मचा तो पहले दस हजार और फिर 25 हजार रुपए निकलवाने की अनुमति दे दी गई। डूब रहे बैंक के खाताधारक अपना धन मिलेगा या नहीं, इसको लेकर आशंकित हैं। इस तरह एक बार ​िफर भ्रष्ट सिस्टम के आगे आम आदमी लाचार हो चुका है। क्या आरबीआई लोगों के हितों की रक्षा कर पाएगा? यह सवाल सबके सामने है।
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Ashwini Chopra

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