हिमाचल में 1 से 3 नवंबर तक लवी मेला, अलग-अलग राज्यों से शामिल होंगे घोड़ा पालक, जानेंगे इस नस्ल की खासियत
Himachal Pradesh News: शिमला जिले के रामपुर में हर साल लगने वाला ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय लवी मेला इस बार भी खास रहेगा। इस बार मेले के दौरान 1 से 3 नवंबर तक अश्व प्रदर्शनी (Horse Exhibition) आयोजित की जाएगी। इसमें पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से घोड़ा पालकों को बुलाया जा रहा है ताकि वे हिमाचल की मशहूर चामुर्थी नस्ल के घोड़े के बारे में जान सकें और चाहें तो उसे खरीद भी सकें।
इस दौरान उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप ने बताया कि लवी मेले का इतिहास कई सौ साल पुराना है और चामुर्थी घोड़े की खरीद-बिक्री इस मेले का मुख्य आकर्षण रही है। इस बार अन्य राज्यों से आए अश्वपालकों को इस नस्ल की खूबियों से रूबरू कराया जाएगा।
Himachal Pradesh News: चामुर्थी घोड़े की विशेषताएं
हिमाचल के बर्फीले कबायली इलाके — लाहौल-स्पीति और किन्नौर — में यह घोड़ा सदियों से जीवन का हिस्सा रहा है। इसे स्थानीय लोग प्यार से “शीत मरुस्थल का जहाज” कहते हैं। इसकी ऊँचाई लगभग 12 से 14 हाथ होती है। यह घोड़ा माइनस 30 डिग्री तापमान तक में भी काम करने में सक्षम है। इसके अलावा यह लंबे समय तक बिना भोजन के भी काम कर सकता है। यह भारत की छह प्रमुख घोड़ा नस्लों में से एक है, जो ताकत और सहनशक्ति के लिए जानी जाती है।
International Lavi Fair: इतिहास और उत्पत्ति
चामुर्थी नस्ल की उत्पत्ति तिब्बत के पठारों से मानी जाती है। पुराने समय में व्यापारी इन घोड़ों को तिब्बत से लाहौल-स्पीति और किन्नौर के कठिन इलाकों में लेकर आए। कहा जाता है कि “छुर्मूत” नामक तिब्बती क्षेत्र से ही इस नस्ल का नाम चामुर्थी पड़ा। यह नस्ल सिंधु घाटी सभ्यता के समय से हिमालयी इलाकों में पाई जाती है। वर्तमान में यह मुख्य रूप से स्पीति घाटी की पिन वैली और किन्नौर के भावा क्षेत्र में पाई जाती है।
अश्व प्रदर्शनी का कार्यक्रम
- 1 नवंबर: घोड़ों का पंजीकरण
- 2 नवंबर: अश्वपालकों के लिए गोष्ठी
- 3 नवंबर: श्रेष्ठ घोड़ों का चयन, गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिता और 400 व 800 मीटर की घुड़दौड़
- विजेताओं को मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया जाएगा। पशुपालन विभाग द्वारा प्रदर्शनी में भाग लेने वाले सभी घोड़ों के लिए नि:शुल्क चारा और दाना भी दिया जाएगा।
लारी प्रजनन केंद्र – संरक्षण की पहल
चामुर्थी नस्ल को विलुप्त होने से बचाने के लिए पशुपालन विभाग ने वर्ष 2002 में स्पीति घाटी के लारी में एक घोड़ा प्रजनन केंद्र स्थापित किया। यह केंद्र लगभग 82 बीघा भूमि में फैला है और तीन इकाइयों में बंटा है, जहां करीब 60 घोड़े रखे जा सकते हैं। यहां स्थानीय गांवों की भूमि को चरागाह के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस केंद्र की बदौलत अब इस नस्ल की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और वर्तमान में हिमाचल में इसके सैकड़ों घोड़े मौजूद हैं।
स्थानीय परंपराएं और चुनौतियां
पिन घाटी में हर साल अप्रैल-मई के दौरान गांव वाले नए जन्मे घोड़ों में से सबसे बेहतर को नस्ल विस्तार के लिए चुना करते हैं। बाकी घोड़ों की घरेलू तरीके से नसबंदी कर दी जाती है। स्थानीय मान्यता है कि ऐसा न करने पर देवता नाराज हो जाते हैं। हालांकि, पशु विशेषज्ञों के अनुसार इससे नस्ल के विस्तार में कठिनाई आती है।
यह भी पढ़ें: हिमाचल में रोबोटिक सर्जरी का विस्तार, अब IGMC शिमला में भी मिलेगी सुविधा

Join Channel