Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgets
vastu-tips | Festivals
Explainer
Advertisement

लोकतंत्र के लिए उबलता हांगकांग

जहां-जहां भी लोकतंत्र और मानवाधिकारों को कुचलने, उसका दमन करने के प्रयास किये गये वहां-वहां के लोग विद्रोह पर उतारू हुए चाहे वह अरब देश हो या धुर वामपंथी देश चीन।

04:02 AM Dec 10, 2019 IST | Ashwini Chopra

जहां-जहां भी लोकतंत्र और मानवाधिकारों को कुचलने, उसका दमन करने के प्रयास किये गये वहां-वहां के लोग विद्रोह पर उतारू हुए चाहे वह अरब देश हो या धुर वामपंथी देश चीन।

जहां-जहां भी लोकतंत्र और मानवाधिकारों को कुचलने, उसका दमन करने के प्रयास किये गये वहां-वहां के लोग विद्रोह पर उतारू हुए चाहे वह अरब देश हो या धुर वामपंथी देश चीन। जब भी जनता को देश की सत्ता पर से भरोसा उठा, वह सड़कों पर उतर आई। दुनियाभर के लोगों को हांगकांग में चीन की दमनकारी सत्ता के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के छह माह पूरे होने के मौके पर लोकतंत्र समर्थक ग्रुप सिविल ह्यूमन राइट्स फ्रंट ने एक रैली निकाली जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया। 
Advertisement
आयोजकों का दावा है इसमें 8 लाख लोग शामिल हुए। इस प्रदर्शन को अब तक का विशाल प्रदर्शन माना जा रहा है। रैली से पहले हांगकांग पुलिस ने छापा मार कर 11 लोगों को गिरफ्तार किया और कुछ हथियार भी बरामद किये। एक विवादित प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में 9 जून को प्रदर्शन शुरू हुए थे और यह अब व्यापक सरकार विरोधी प्रदर्शन में तब्दील हो गये हैं। हांगकांग में चीन की सरकार बुरी तरह घिर चुकी है और वह गहराती समस्या को बातचीत के माध्यम से हल करने के लिए अपीलें भी कर रही है। 
हांगकांग का प्रदर्शन गंभीर अपराध के लिए चीन में सुनवाई करने के लिए लोगों को प्रत्यर्पित किये जाने से संबंधित एक विधेयक के खिलाफ हुए क्योंकि लोगों काे डर था कि इस कानून से न्यायिक स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी और असहमत होने वालाें के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। यद्यपि यह विधेयक सरकार ने वापिस ले लिया था फिर भी लोगों के प्रदर्शन जारी हैं। लोगों का कहना है कि वह अपनी स्वतंत्रता के लिए मरते दम तक संघर्ष करेंगे। 
विरोध प्रदर्शनों से पता चलता है कि 20 वर्ष पहले हांगकांग को वापस चीन में मिलाए जाने के बाद भी न तो हांगकांग के नागरिक और बीजिंग एक दूसरे पर भरोसा करते हैं न ही ‘एक देश, दो व्यवस्था’ का सिद्धांत ही कारगर साबित हो पाया है। हांगकांग में चीन के प्रतिनिधि और अन्य अधिकारी भी भांप नहीं पाये कि जनता कितनी नाराज है। चीन ने शुरूआत में विरोध प्रदर्शनों की खबरों पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इंटरनेट के युग में अब खबरें नहीं रुकती। 
चीन ने इन विरोध प्रदर्शनों को विदेशी आर्थिक मदद से चलाये जाने का प्रचार शुरू कर दिया तो लोग और भड़क गये। हांगकांग में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के मामले में भी चीन के शीर्ष नेतृत्व पोलित ब्यूरो और पोलित ब्यूरो स्थायी समिति में भी मतभेद है। एक वर्ग विरोध को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है तो शी जिनपिंग समस्या को वार्ता के जरिये सुलझाने के इच्छुक हैं। अब हालात यह है कि हांगकांग के लोगों ने नया गीत अपना लिया है जिसे एक रात में सात लाख लोगों ने देखा और अब लोग सार्वजनिक स्थानों पर आजादी का तराना गाते दिखाई दे रहे हैं। 
जरूरत पड़ने पर चीन द्वारा ताइवान को मुख्य भूमि में बलपूर्वक मिलाये जाने की धमकियों के बीच हांगकांग के लोग काफी सतर्क हो गये हैं। जनवरी में होने वाले चुनावों से पहले ताइवान की राष्ट्रपति साई इंगवेत की लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी है। हांगकांग के प्रदर्शनकारियों के ताइवान में आने की खबरों पर उनकी प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक थी। उन्होंने कहा कि हांगकांग में आ रहे प्रदर्शनकारियों से मानवीय आधार पर उचित व्यवहार किया जायेगा। हांगकांग पहले अंग्रेजों का उपनिवेश हुआ करता था, ब्रिटेन के पास यह लीज पर था। 
1997 में लीज खत्म हो गई और इसी बीच चीन और ब्रिटेन के बीच वार्ता हुई और हांगकांग चीन के अधिकार क्षेत्र में आ गया। उसे चीन के स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन का दर्जा दिया गया। इस स्पेशल स्टेटस के तहत हांगकांग है तो चीन का हिस्सा, मगर उसका सिस्टम अलग है, उसे यह आजादी मिलती है एक संवैधानिक सिस्टम से जिसका नाम बेसिक लॉ पर चीन हांगकांग और चीन के बीच चीजें तय करती हैं। दोनों के संबंधों की नीति है- वन कंट्री टू सिस्टम। इसके तहत हांगकांग के पास काफी स्वायत्तता है। 
यहां का कानूनी सिस्टम अलग है​ निष्पक्ष और पारदर्शी है। प्रेस स्वतंत्र है, नागरिकों के पास मजबूत अधिकार हैं। उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी है। लोग अपने अधिकारों में चीन का कोई हस्तक्षेप नहीं चाहते। 2012 में ही जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन काफी आक्रामक हुआ। हांगकांग की आजादी उसके बर्दाश्त से बाहर होने लगी। 2014 में हांगकांग के लाखों लोग अपने लिए ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकार मांगने सड़कों पर उतर आये थे। उनके हाथों में छतरियां थीं, इसे अम्ब्रेला मूवमेंट के तौर पर जाना जाता है। कई लोग डटे रहे कई लोग पकड़े गए, कई पर केस चला। बाद में चीन ने  कैरी लैम को हांगकांग का चीफ एक्जिक्यूटिव चुन लिया। 
वह चीन की सत्ता की कठपुतली है। प्रदर्शनों से हांगकांग की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंच रहा है और चीन के लिए उसकी अहमियत कम हो रही है। कारोबारी अपनी संपत्ति लेकर बाहर जा रहे हैं और वहां पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या भी घट रही है। हिंसक हमले भी हो रहे हैं। हांगकांग के जिला परिषद चुनावों में भी लोकतंत्र समर्थकों की जीत ने लोगों की भावनाओं को स्पष्ट कर दिया है। चीन और हांगकांग के भविष्य के संबंध कैसे होते हैं यह देखना होगा क्योंकि हांगकांग लोकतंत्र के लिए उबल रहा है।
Advertisement
Next Article