Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

माननीय सांसदगण : अपना अतीत भी देखें

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर विचार चल रहा है।

11:30 AM Dec 15, 2024 IST | Dr. Chander Trikha

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर विचार चल रहा है।

इन दिनों राज्यसभा में सभापति एवं उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर विचार चल रहा है। संयोगवश इन्हीं दिनों राष्ट्र कवि दिवंगत मैथिली शरण गुप्त की पुण्यतिथि भी मनाई जा रही है। श्री गुप्त 3 अप्रैल, 1952 से 2 अप्रैल, 1964 तक इसी राज्यसभा के सदस्य रहे थे। उनकी एक विशेषता यह भी थी कि वह हर वर्ष राष्ट्रीय बजट पर बहस के समय अपना वक्तव्य कविता में ही दिया करते थे। अन्य राष्ट्रीय महत्वपूर्ण विषयों पर भी वह कविता में ही अपने भाषण देते और जब भी वह बोलते, प्रधानमंत्री व अन्य मंत्रीगण और समूचा प्रतिपक्ष सभी उन्हें ध्यानमग्न होकर सुनते थे। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि उनकी राज्यसभा-कार्यकाल वाली कविताओं का उल्लेख अब वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय भाषणों में भी करते हैं। मोदी द्वारा हाल ही में पढ़ी गई कविता इस प्रकार थी:

अरे भारत ! उठ, आंखें खोल,

उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल!

अवसर तेरे लिए खड़ा है

फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।

तेरा कर्म क्षेत्र बड़ा है

पल पल है अनमोल।

अरे भारत ! उठ, आंखें खोल॥

बहुत हुआ अब क्या होना है

रहा सहा भी क्या खोना है?

तेरी मिट्टी में सोना है

तू अपने को तोल।

अरे भारत ! उठ, आंखें खोल॥

दिखला कर भी अपनी माया

अब तक जो न जगत ने पाया

देकर वही भाव मन भाया

जीवन की जय बोल।

अरे भारत! उठ, आंखें खोल॥

तेरी ऐसी वसुन्धरा है –

जिस पर स्वयं स्वर्ग उतरा है।

अब भी भावुक भाव भरा है

उठे कर्म-कल्लोल।

अरे भारत ! उठ, आंखें खोल॥

राज्यसभा में हर 6 साल में 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं जिनका कला, साहित्य, संगीत आदि क्षेत्र में विशेष योगदान होता है। इन मनोनीत सदस्यों में से कुछ काव्य के क्षेत्र में भी थे। आपके लिए पेश हैं उन सदस्यों के नाम और उनकी कुछ कविताएं- श्री रामधारी सिंह दिनकर ने एक बार इसी सदन में अपनी कविता पढ़ी थी:

जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है

या किसी लोभ के विवश मूक रहता है

उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है

यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं, वधिक है

चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं

जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं।

इसी सदन में बच्चन जी भी रहे थे। क्या आपको पता है कि ‘मिनस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स’ को विदेश मंत्रालय नाम साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन द्वारा दिया गया था। बच्चन को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय विदेश सेवा में शामिल किया था। उनके बीच राष्ट्रपति के भाषण के अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद को लेकर टकराव भी हुआ था। इसे तत्कालीन उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन द्वारा पढ़ा जाना था। यह बात पत्रकार कल्लोल भट्टाचार्जी की पुस्तक ‘नेहरूज फर्स्ट रिक्रूट्स’ में कही गयी है। मधुशाला के लेखक हरिवंश राय बच्चन 1955 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे। विदेश मंत्रालय में उनकी जिम्मेदारी के प्रमुख हिस्से में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के भाषणों का अनुवाद करना शामिल था। जाकिर हुसैन द्वारा दिए जाने वाले भाषण का बच्चन ने अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया था। इसे देखकर जवाहर लाल नेहरू की बच्चन से बहस हो गई। नेहरू ने कहा था कि आपको पता है कि यह भाषण कौन पढ़ेंगे, डॉ. जाकिर हुसैन। वह आपके द्वारा इस्तेमाल कुछ शब्दों का उच्चारण तक नहीं कर पाएंगे। इस पर बच्चन का जवाब था कि पंडित जी, किसी व्यक्ति के उच्चारण की सुविधा के अनुसार भाषा नहीं बदली जा सकती। आप भाषण का उर्दू में अनुवाद क्यों नहीं कराते।

पुस्तक के अनुसार, भाषण का संभवत: उर्दू में अनुवाद नहीं किया जा सकता था क्योंकि भारतीय संविधान केवल ऐसे सत्रों में हिंदी भाषणों और कई उर्दू शब्दों के साथ हिंदी भाषण के उपयोग की अनुमति देता था। आखिरकार नेहरू ने बच्चन को एक ऐसा पाठ तैयार करने के लिए मना लिया जिसे पढ़ना तत्कालीन उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन के लिए मुश्किल नहीं था। हुसैन, जिन्होंने राधाकृष्णन की अध्यक्षता में 1962-1967 तक उपराष्ट्रपति का पद संभाला, बाद में भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने। वर्तमान राज्यसभा के सदस्यगण तो शायद यह भी भूल चूके होंगे कि इसी कदम में कभी हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम और अनेक अन्य साहित्यकार भी बैठा करते थे। सर्वाधिक प्रभावित करने वालों में राष्ट्रकवि श्री रामधारी दिनकर भी थे। दिनकर जी शायद एकमात्र ऐसे महान कवि थे जो तीन बार राज्यसभा के सदस्य बने। वह 3 अप्रैल, 1952 से 2 अप्रैल, 1964 तक सदन में रहे। उन्हें 1959 में पद्मभूषण भी मिला था। सदन में यद्यपि उनके मनोनयन व चयन में नेहरू जी की भी भूमिका थी, मगर जब भी अवसर आता, दिनकर जी नेहरू-नीतियों की कड़ी आलोचना में संकोच नहीं करते थे।

इसी सदन में काका साहब कालेलकर, मामा वरेरकर, ताराशंकर बैनर्जी, सरदार केएम पनिक्कर, डॉ. गोपाल सिंह, डॉ. पीवी काणे जैसे साहित्यकार एवं इतिहासज्ञ भी रहे। इन सभी के भाषण आज भी शोध का विषय हैं। भाषा, तर्क, विद्वता के साथ-साथ शालीनता इनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। कई बार ऐसा भी हुआ, जब सभापति एवं उपराष्ट्रपति ने भी उनके समक्ष कुछेक टिप्पणियों के लिए क्षमायाचना भी की थी। एक बार सदन में बाहर सीढि़यों से उतरते हुए नेहरू का पांव फिसल गया था तब पीछे चल रहे दिनकर जी ने उन्हें संभाला था। नेहरू जी ने भरपूर धन्यवाद किया तो दिनकर बोले थे, अरे पंडित जी! राजनीतिज्ञ जब भी फिसलेगा, उसे साहित्यकार ही संभालेगा। वर्तमान सांसद (राज्यसभा) ऐसी शख्सियतें के वारिस हैं और उन्हें अपनी विरासत की परंपराओं का ध्यान तो रखना ही होगा। भाषा की मर्यादा व शालीनता बनी रहे, इसके लिए जागरुकता व विनम्रता आवश्यक है।

Advertisement
Advertisement
Next Article