प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बीते 25 वर्ष कैसे रहे !
आज 2025 का पहला दिन है और पंजाब केसरी के सभी पाठकों को हार्दिक अभिनंदन…
आज 2025 का पहला दिन है और ‘‘पंजाब केसरी’’ के सभी पाठकों को हार्दिक अभिनंदन। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले वर्ष और बीते 25 साल का आज विश्लेषण किया जाए तो पता चलेगा कि अपने जीवन की राजनीति के 25 सार्वजनिक वर्षों के बाद अब भी जनता के लिए सबसे लोकप्रिय और ताक़तवर नेता हैं। भले ही मोदी का बायोडेटा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मनमोहन सिंह जी की शैक्षिक उपलब्धियों से भिन्न हो, मगर मोदी का जो बायोडेटा जनता के दिल में है, वह तो करोड़ों पृष्ठ का है और जो उनसे पूर्व किसी भी अन्य नेता अथवा प्रधानमंत्री का नहीं रहा है और न ही होने की संभावना दिखाई देती है, क्योंकि 2014 से 2024 तक उन्हें जनता के सर्वप्रिय नेता होने का श्रेय प्राप्त है।
वैसे बीता साल मोदी के लिए अंग्रेज़ी भाषा में ‘मिक्सड बैग’ अर्थात ठंडा-गर्म और हार-जीत का मामला रहा। इस वर्ष ऐसा नहीं कि मोदी पर काले बादल नहीं आए हैं, ख़ूब आए हैं। भारत विरोधी तत्वों द्वारा किसानों को भड़काए जाने पर उनका विरोध और कई वर्ष पूर्व दाढ़ियों का शाहीन बाग़ आंदोलन, चुनाव से पूर्व विरोधियों का जनता को भड़काना कि संविधान बदला जाएगा, 4 जून का उम्मीद के अनुरूप न आने वाला परिणाम आदि ऐसे मुद्दे थे कि जिससे कुछ समय तक मोदी जी अवश्य कमज़ोर पड़े, मगर उनकी विशेषता है कि वे हर हार और पिछड़ जाने के बाद मिस्र में स्थापित फीनिक्स मूर्ति की भांति पुनः डबल आत्मविश्वास और ताक़त के साथ उभरते हैं।
इसका एक उदाहरण है कि जब 2019 का चुनाव होने वाला था और भाजपा विरोधियों ने एक गठबंधन के नाम में जनता को ठगने के चक्कर में मोदी को हीरो से ज़ीरो बनाने का प्रयास किया था तो ऐसा वातावरण सा बन गया था कि ठीक है यदि भाजपा जीत भी जाती है तो शायद मोदी जी प्रधानमंत्री न बन पाएं, मगर नरेंद्र मोदी के मज़बूत इरादों के चलते इन काले बादलों से निकल कर सुनहरी धूप में बहार आए।
वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी ने तो एक साक्षात्कार में कहा है कि अब तक भारत के इतिहास में मोदी से ज़्यादा हरदिल अज़ीज़ प्रधानमंत्री कोई हुआ नहीं है। यही नहीं, उन्होंने अपने चुनावी वायदों को भलीभांति पूरा किया और देश के विकास में स्वयं को समर्पित कर दिया, चाहे वह भारत को विश्व पटल में विकास की चौथी सीढ़ी पर ले जाना हो, देश को इंटरनेट व सड़कों के जाल से जोड़ना हो, रेलवे में बेशुमार सुधार कर वंदे भारत जैसी ट्रेन लाना हो, सैकड़ों हवाई अड्डे सुधारना या बनाना हो, स्वास्थ्य सेवा में मेडिकल ग्रेजुएशन व पीजी में सीटें बढ़ानी हों या अनेकों एम्स की स्थापना करनी हो व आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड, बनाना हो, कश्मीर में शांति हेतु 370/35-ए हटाना हो, ट्रिपल तलाक समाप्त करना हो, राम मंदिर की स्थापना हो, एक इलेक्शन या समान नागरिक संहिता को लागू करना हो, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को गौरवपूर्ण तरीके से विश्व गुरु बनने के मार्ग पर अग्रसर करना हो उन्होंने या तो इनमें से अधिकतर कार्य और वायदे पूरे कर दिए हैं या उसी मार्ग पर तीव्र गति से अग्रसर हैं।
सियासत बड़ा अजीब बॉल गेम है, जहां वोट और सीट की जीत अवश्य माननीय होती है, मगर राजनीति के इस सिक्के का दूसरा रुख यह भी है कि किसी भी नेता की क्रेडिबिलिटी अर्थात विश्वसनीयता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसकी नियत, नियति कैसी है, भले ही उसकी पार्टी चुनाव जीतने में असमर्थ हो। वर्ष 2024 के प्रारंभ में मोदी के लिए सुखद समाचार था, 22 जनवरी को राम मंदिर का विश्व स्तरीय लेवल पर प्राण प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार और जनता के लिए इसके द्वार खोल देना, मगर फिर गाज गिरी क्योंकि अयोध्या में चुनाव हारा और 400 पार नारे को असलियत का जामा न पहना कर 240 ही लोकसभा सीटें जुटा पाए। चुनाव हारे भी, जैसे झारखंड में और उम्मीद के विरुद्ध हरियाणा, महाराष्ट्र आदि में चुनाव जीते भी। फिर उत्तर प्रदेश के मध्यावधि चुनाव में 9 में से 7 सीटें भी जीते। विपक्ष यहां कमजोर ही नजर आया।
यदि हम चुनाव के रुझान से देखें तो मोदी की यह खासियत है कि वे चुनाव जीतें या हारें, अगले चुनाव के लिए डे वन से ही कमर कस गतिशील हो जाते हैं। महाराष्ट्र में जब आघाड़ी से चुनाव हारा तो ख़ामोशी के साथ देवेंद्र फडणवीस को साथ लेकर अगली जीत के लिए कमर कसी और फिर अपने परम विश्वासपात्र फडणवीस को स्थापित कर उनका हक़ अदा किया।
ये सारी स्कीमें मोदी जी पिछले 25 वर्ष से मात्र चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि राजनीति में जनता और अच्छे नेता के उसका हक दिलाने के लिए आरएसएस, अमित शाह और नाम ज़ाहिर न किए जाने पर अपने सलाहकारों के साथ बनाते और लॉन्च करते चले आ रहे हैं और चूंकि नियत सालेह और साफ है, देश में जनता और विदेशों में अन्य राज्याध्यक्ष उन्हें अपने कंधों पर बैठते चले आ रहे हैं, चाहे वह रूस के पुतिन हों, अमेरिका के ट्रंप हों, यूक्रेन के ज़लेंस्की हों या गल्फ के बड़े मुस्लिम देशों के नेता हों।
हां, जिस प्रकार से फुटबॉल खिलाड़ी रोनाल्डो, मैसी या बैकहम खेल के मैदान पर अपनी टीम के गोल स्कोर करने के लिए शतरंज की बिसात पर मोहरे बिठाने की तरह से रणनीति बनाते हैं, ठीक उसी प्रकार से मोदी बतौर एक दक्ष प्रधानमंत्री व राजनेता ही नहीं, बल्कि एक वली-उस-सिफत, समाज कल्याणी साधू, संत, फ़कीर, बुज़ुर्ग करता है। यही कारण है कि उन्होंने अपने निवास स्थान के सामने की सड़क का नाम लोक कल्याण मार्ग रखा है और स्वयं को प्रधानमंत्री कहलाने से अधिक प्रधान सेवक के रूप में पहचान बनाना पसंद करते हैं।
यही कारण है कि भारत की जनता ने पहले उन्हें जाना, इस्तेमाल किया और फिर विश्वास किया कि भारत माता के इतिहास में उनके जैसा दमदार, दिलदार, जानदार, शानदार, वफादार, वज़ादार, कामदार, समझदार और सबसे अधिकर महत्वपूर्ण बात, ईमानदार प्रधानमंत्री न तो अब तक आया है और न ही आने की संभावना है।