बुढ़ापे में बच्चों का साथ कितना जरूरी
आज एक पत्रकार के ट्विटर पोस्ट पर नजर गई और पढ़कर मन बहुत विचलित हो गया। पत्रकार ने लिखा कि उसे एक अस्सी वर्षीय व्यक्ति मिले जिनकी पत्नी का स्वर्गवास दस वर्ष पूर्व हो चुका था…
आज एक पत्रकार के ट्विटर पोस्ट पर नजर गई और पढ़कर मन बहुत विचलित हो गया। पत्रकार ने लिखा कि उसे एक अस्सी वर्षीय व्यक्ति मिले जिनकी पत्नी का स्वर्गवास दस वर्ष पूर्व हो चुका था। उस बुजुर्ग के दोनों बच्चे अमेरिका में रहते हैं। पुत्र से तो वो चार वर्ष से मिले ही नहीं हैं। पत्रकार ने सही टिप्पणी की कि ऐसे में तो यही लगता है कि बच्चे को जन्म ही क्यों दें अगर इतना दूर ही रहना है। जिन्दगी के अंतिम वर्षों में हर किसी की यही आशा रहती है कि उनके आस-पास उनके बेटा-बेटी रहें। किस समय क्या आवश्यकता आ जाए क्या पता। डॉक्टर और हॉस्पिटल तक जाने के लिए भी तो कोई साथ चाहिए। केवल बहुत पैसे होने से सब कुछ आसान नहीं हो जाता।
एक और अजीबोगरीब किस्सा आपसे साझा कर रहा हूं। दक्षिण दिल्ली के एक पॉश कॉलोनी में बड़ी सी एक कोठी में एक बुजुर्ग व्यक्ति अकेले रहते थे। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले स्वर्गवास हो गया था। बेटा पढ़ाई के बाद जीविकोपार्जन के लिए अमेरिका चला गया। विवाह कर वहीं रहने लगा। शुरुआती दिनों में तो माता-पिता से मिलने बेटा परिवार के साथ आ जाया करता था, पर धीरे-धीरे यह आना-जाना बहुत कम हो गया। माताजी के स्वर्गवास के पश्चात तो बेटे का आना बंद ही हो गया। हां, रहन-सहन के लिए पर्याप्त धन राशि अमेरिका से बेटा नियमित भेज देता था। आयु तो बढ़ती रहती है, बीमारी के दिनों में भी बुजुर्ग को खुद ही अपने आप को संभालना पड़ता था। हद तो तब हो गई जब उनका देहांत हो गया। पड़ोसी ने उनके बेटे को अमेरिका फोन कर के दुखद समाचार दिया और आशा कर रहे थे कि बेटा बोलेगा कि मैं अगली फ्लाइट से आ रहा हूं, तब अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। पर पड़ोसी के तो पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई, जब अमेरिकन हो गए बेटे से जवाब मिला कि अंतिम संस्कार आप कर दीजिए और जितना भी खर्च आए बता दीजिएगा, आपको तुरंत भुगतान कर दिया जाएगा।
ऐसे कई किस्से मिल जाएंगे बड़े शहरों में। पहले तो होड़ हो जाती है कि अच्छे से अच्छे स्कूल में बच्चों को पढ़ायें, फिर उनको उच्च शिक्षा मिले और उसके बाद विदेश में नौकरी। लाखों रुपए (डॉलर कन्वर्ट कर) की माहवारी सैलरी। माता-पिता थकते नहीं थे अपने बच्चे की उपलब्धि की बड़ाई करने में। अपने आप में गर्व महसूस करते थे। हर वर्ष उनके यहां महीनों रहने भी चले जाते थे। या फिर जब पोता-पोती होने का समय होता तो मिडवाइफरी करने चले गए। समय बीतता गया, उम्र बढ़ती गई और तब जमीनी हकीकत से सामना होने लगा। बच्चों का परिवार यहां माता-पिता के पास भारत आना नहीं चाहता और आप इस बढ़ती आयु में वहां जाना नहीं चाहते।
यह सब बातें अब बहुत आम हो गई हैं। अपने अगल-बगल बुजुर्ग व्यक्तियों के जीवन को खंगालोगे तो कई ऐसे बुजुर्ग लोग मिल जाएंगे। बहुत तो ओल्ड एज होम में अपने अंतिम जीवन बिताने में भी झिझकते नहीं। पैसों की कमी न हो तो एक से एक बेहतरीन सुख-सुविधा वाले ऐसे वृद्ध आश्रम उपलब्ध हैं, जहां हम उम्र के साथी, मनोरंजन के साधन व स्वास्थ्य सम्बन्धित देखभाल की पूर्ण व्यवस्था होती है। अब तो हमने अपने आप को इतना बदल लिया है कि इन सब बातों को बुरा भी नहीं मानते हैं।
उपरोक्त ट्वीट पर एक सज्जन ने बहुत सटीक टिपण्णी की है कि आज की जेनरेशन के लोग इस स्थिति को स्वीकार कर लें। चालीस-पचास वर्ष की आयु के व्यक्ति आज से ही यह प्लानिंग कर लें कि उन्हें बुढ़ापे में अकेले ही रहना है। ऑल्ड ऐज होम में रहने का ऑप्शन पर भी विचार करना सही होगा। इन परिस्थतियों को देख कर लगता है कि आने वाले वर्षों में ओल्ड ऐज होम कि आवश्यकता बहुत बढ़ जाएगी। रियल एस्टेट में लगे व्यक्तियों के लिए यह एक सुनहरा अवसर प्रतीत होता है।
एक और दृष्टिकोण पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। सम्मिलित परिवार में रहने से ऐसी परेशानियों से आराम से बचा जा सकता हैं। पर अब तो यह भी सोचना होगा कि सम्मिलित परिवार आप किसे कहेंगे जब परिवार में बच्चे ही एक या दो होंगे।