पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं?
राजा रवि वर्मा अपनी कब्र में करवटें ले रहे होंगे जब उन्होंने अपनी पत्नी को निहारने…
कलाकार राजा रवि वर्मा अपनी कब्र में करवटें ले रहे होंगे जब उन्होंने ‘अपनी पत्नी को निहारने’ वाले बयान के बारे में सुना होगा। उनकी एक पेंटिंग जो लगभग 1880 के दशक की है, बस यही दिखाती है। अपनी पत्नी को निहारना इस पेंटिंग में एक स्तंभ को केंद्र में दिखाया गया है, जिसके एक तरफ एक महिला है और दूसरी तरफ एक प्रेममग्न व्यक्ति जो बस उसे निहार रहा है। ऐसा लगता है जैसे उसके लिए समय ठहर गया हो।
लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यम इस पेंटिंग या वर्मा की कला के माध्यम से प्रेम की इस कल्पनाशील प्रस्तुति से कभी जुड़ नहीं पाएंगे। अगर ऐसा होता तो वह कभी ऐसा नहीं कहते ‘आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं’ यह कथन उनके कर्मचारियों को संबोधित एक कथित वीडियो में सुना गया, जिसमें उन्होंने कर्मचारियों से घर पर कम और ऑफिस में अधिक समय बिताने का आग्रह किया।
यह बयान सामने आने के बाद हंगामा मच गया, इस टिप्पणी को स्पष्ट रूप से सेक्सिस्ट माना गया, जिसने काम के घंटों पर टिप्पणी से ज्यादा विवाद पैदा कर दिया लेकिन पहले संदर्भ में सुब्रह्मण्यम ने अपने कर्मचारियों के लिए काम के घंटे बढ़ाने का सुझाव देते हुए रविवार को भी काम करने की बात की जिससे यह बहस छिड़ गई कि काम और जीवन के संतुलन को बनाए रखने के लिए कितनी मेहनत और कितनी दूर तक जाना चाहिए।
सुब्रह्मण्यम के अनुसार चीनी लोग हफ्ते में 90 घंटे काम करते हैं, जबकि अमेरिकी केवल 50 घंटे। उन्होंने एलएंडटी के कर्मचारियों को चीन जैसी कार्यशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया तो यही आपका जवाब है। अगर आपको दुनिया के शीर्ष पर रहना है तो आपको हफ्ते में 90 घंटे काम करना होगा, वह वीडियो में कहते सुनाई देते हैं।
‘मुझे अफसोस है कि मैं आपको रविवार को काम नहीं करवा सकता। अगर मैं आपको रविवार को काम करवा पाता तो मुझे अधिक खुशी होती, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं।’ उन्होंने सुझाव दिया कि कर्मचारियों को घर पर समय नहीं बिताना चाहिए। ‘आप घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं? आइए, ऑफिस आइए और काम करना शुरू करें।
दरअसल पत्नियों के बारे में दिए गए इस लिंगभेदी बयान ने बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया है जिससे काम के घंटे बढ़ाने की बहस थोड़ी पृष्ठभूमि में चली गई है। महिलाएं इस बयान को ‘पूरी तरह असंवेदनशील’ और ‘विकृत मानसिकता’ का उदाहरण मानकर विरोध कर रही हैं, विशेषकर किसी ऐसे व्यक्ति से जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का नेतृत्व कर रहा है। ज्ञात हो कि लार्सन एंड टुब्रो एक विशाल समूह है, जिसका औद्योगिक तकनीक, भारी उद्योग, इंजीनियरिंग, निर्माण और विनिर्माण में व्यापक निवेश है।
सुब्रह्मण्यम द्वारा दिए गए बयान से हुए नुक्सान की भरपाई के लिए उनकी कंपनी ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि चेयरमैन का कहना कंपनी की ‘बड़ी महत्वाकांक्षा’ को रेखांकित करने के लिए था जो प्रगति को बढ़ावा देने और ‘जुनून, उद्देश्य और प्रदर्शन’ द्वारा संचालित संस्कृति को बढ़ावा देने की तरफ सम्बोधित थी।
हालांकि, इस बयान से स्थिति को शांत करने में ज्यादा मदद नहीं मिली। सुब्रह्मण्यम आलोचनाओं के घेरे में आ गए, एक तरफ महिलाएं थीं जो उनके बयान से नाराज थीं, क्योंकि यह उनकी दृष्टि में वैवाहिक निजता का उल्लंघन करता था। दूसरी तरफ पुरुष थे जो बढ़ते काम के घंटों को लेकर नाराज़ थे।
काम के घंटे बढ़ाने के मुद्दे पर सुब्रह्मण्यम अकेले नहीं हैं। पहले भी और व्यक्ति इस प्रस्ताव के समर्थक रहे हैं। कुछ महीने पहले इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने 70 घंटे के कार्य सप्ताह का सुझाव दिया था। उन्होंने यह सुझाव इस आधार पर दिया था कि भारत की कार्य उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है, मेरा अनुरोध है कि हमारे युवा कहें, ‘ये मेरा देश है, मैं हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहता हूं’ मूर्ति ने तब कहा था।
हाल ही में अरबपति गौतम अडाणी ने भी काम और जीवन के संतुलन पर बहस में अपनी राय दी थी, जब उन्होंने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति अपने परिवार के साथ आठ घंटे बिताता है तो उसकी पत्नी उसे छोड़ कर जा भी सकती है। उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि काम और जीवन का संतुलन व्यक्तिगत पसंद का मामला है। ‘आपकी वर्क-लाइफ बैलेंस की सोच मुझ पर नहीं थोपी जानी चाहिए और मेरी सोच आप पर नहीं थोपी जानी चाहिए। मान लीजिए कोई व्यक्ति परिवार के साथ 4 घंटे बिताता है और इसमें खुशी पाता है, या कोई और व्यक्ति 8 घंटे बिताता है और इसका आनंद लेता है तो वही उनका वर्क-लाइफ बैलेंस है। ‘आठ घंटे परिवार के साथ बिताएगा तो बीवी भाग जाएगी’ उन्होंने तब कहा था। अडाणी की टिप्पणियां भी स्पष्ट रूप से सेक्सिस्ट थीं और वैवाहिक संबंधों की गहराई में चली गईं।
महिलाओं को अपमानजनक टिप्पणियों का लक्ष्य और पुरुषों के चुटकुलों का विषय बनाए जाने की बहस की अन्यायपूर्ण प्रकृति। यह तो एक पक्ष है। दूसरा पक्ष है उन थकाऊ घंटों का जो कॉर्पोरेट अपने कर्मचारियों से उम्मीद करते हैं। यह तो सर्वविदित है कि निजी क्षेत्र में अत्यधिक दबाव होता है। प्रतिस्पर्धा, हायर और फायर नीति और लक्ष्यों को पूरा करने का दबाव सबको ज्ञात है और भले ही काम और जीवन के संतुलन को बनाए रखने की बात की जाती हो, ज्यादातर मामलों में यह एक सपना ही रहता है। कौन भूल सकता है 26 वर्षीय अर्न्स्ट एंड यंग की कर्मचारी ऐन्नासेबस्टियन पेरायिल की मृत्यु, जिन्होंने अत्यधिक कार्यभार के बारे में चिंता जताई थी?
ऐन्ना सेबस्टियन पेरायिल की सितंबर पिछले साल दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी। उनके पिता के अनुसार, ऐन्ना सप्ताह में सात दिन, रोजाना 14 घंटे काम करती थीं। उनके माता-पिता ने आरोप लगाया कि कंपनी के काम के शेड्यूल की वजह से ऐन्ना की मृत्यु हुई?
इस घटना के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 40 घंटे के कार्य सप्ताह का प्रस्ताव दिया। कांग्रेस की बात करें तो यह राजीव गांधी ही थे जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान कर्मचारियों के लिए पांच दिवसीय कार्य सप्ताह की शुरुआत की थी। तब तक कार्यालय सोमवार से शनिवार तक चलते थे। वास्तव में पारिवारिक छुट्टियों की अवधारणा को भी राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बढ़ावा मिला। यह याद किया जा सकता है कि राजीव गांधी हर साल क्रिसमस और नववर्ष के दौरान अपने परिवार के साथ वार्षिक अवकाश पर जाते थे। उस समय विपक्ष ने इस ‘भारतीय संस्कृति के पश्चिमीकरण’ का मज़ाक उड़ाया था।
यह बहस अंतहीन है और इस मुद्दे पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। कुछ लोग सुब्रह्मण्यम जैसे लोगों का समर्थन करेंगे, जबकि अन्य एक स्वस्थ और तर्कसंगत कार्य समय सारणी की वकालत करेंगे लेकिन इस पूरे मुद्दे को उद्योगपति आनंद महिंद्रा से बेहतर कोई नहीं संक्षेपित कर सकता था, जिन्होंने कहा कि ध्यान गुणवत्ता पर होना चाहिए, न कि मात्रा पर यह 48 घंटे, 40 घंटे, 70 घंटे या 90 घंटे की बात नहीं है, आनंद महिंद्रा ने कहा, काम के परिणाम की अहमियत पर ज़ोर देते हुए। आप 10 घंटे में भी दुनिया को बदल सकते हैं। साथ ही, उन्होंने ‘पत्नी को निहारने’ वाले बयान पर चुटकी लेते हुए कहा-मेरी पत्नी अद्भुत हैं और मुझे उन्हें निहारना अच्छा लगता है। दोनों ही मामलों में, चाहे वह काम की गुणवत्ता की बात हो या अपनी पत्नी को निहारने की, महिंद्रा सराहना के पात्र हैं और सुब्रह्मण्यम जैसे लोगों को एक डिलीट बटन की जरूरत है।