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कितना बदल गया संसार...

सारा संसार तेजी से भाग रहा था, किसी को कुछ करने की फुर्सत नहीं, रिश्तों की मर्यादा नहीं थी। संस्कार, नैतिक मूल्य समाप्त हो रहे थे। हमारे बड़े कह रहे थे घोर कलियुग जब हमारे भारत देश में दुषित वातावरण का जोर था, साफ आसमान नहीं दिख रहा था सड़कों पर ट्रैफिक जाम था,

01:13 AM Apr 15, 2020 IST | Kiran Chopra

सारा संसार तेजी से भाग रहा था, किसी को कुछ करने की फुर्सत नहीं, रिश्तों की मर्यादा नहीं थी। संस्कार, नैतिक मूल्य समाप्त हो रहे थे। हमारे बड़े कह रहे थे घोर कलियुग जब हमारे भारत देश में दुषित वातावरण का जोर था, साफ आसमान नहीं दिख रहा था सड़कों पर ट्रैफिक जाम था,

कितना बदल गया संसार
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सारा संसार तेजी से भाग रहा था, किसी को कुछ करने की फुर्सत नहीं, रिश्तों की मर्यादा नहीं थी। संस्कार, नैतिक मूल्य समाप्त हो रहे थे। हमारे बड़े कह रहे थे घोर कलियुग जब हमारे भारत देश में दुषित वातावरण का जोर था, साफ आसमान नहीं दिख रहा था सड़कों पर ट्रैफिक जाम था, मंदिर, गुरुद्वारा,, मस्जिद, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, एयरपोर्ट पर पांव रखने की जगह नहीं थी। कोई भी त्यौहार पर लोग कई दिन पहले जाना शुरू हो जाते और लाखों खर्चे होते थे। मॉल में अब लेटेस्ट क्या है की होड़ लगी हुई थी। कौन सा ब्राण्ड नया आया है, नया पर्स, नया जूता, नई ड्रैस, किसी को घर बैठने की फुर्सत नहीं थी। अक्सर लोगों को यही कहते सुना था  कि मेरे पास टाइम नहीं और इससे भी ऊपर कि मेरे पास मरने का समय भी नहीं है। कुछ देश एक-दूसरे को नीचा दिखाने  में लगे थे। आये दिन आतंकवादी अटैक कर रहे थे। यंगस्टर छोटे-छोटे बार, रेस्ट्रोरैन्ट खोल रहे थे या एन्ज्वाय कर रहे थे, पांच सितारा होटल में भी रश की कमी नहीं थी। यंग बच्चों का घर आने का समय नहीं था। कहीं पार्किंग के लिए लड़ाई, कभी किसी की कार या व्हीकल एक-दूसरे से टकरा गई तो छोटी बात पर लड़ाई, कहीं रिश्तों की मर्यादाएं तार-तार हो रही थी। सभी प्रकृति से भी खेल रहे थे। जितना भी जिसके पास था वो उसे कम समझता था। अक्सर यही था कमाई कम है, खर्चें ज्यादा है। सब देशों का अलग-अलग उद्देश्य था, अलग-अलग लड़ाई थी, हमारे भारत में भी कोई किसी पार्र्टी के बारे में चिंतित अब प्रकृति से खेलने वालों के साथ ईश्वर ने सारे संसार को  एक डोर से बांध दिया। सब तरफ से एक स्वर सुनाई देता है ‘कोरोना’! कोरोना को कैसे भगाना है। कोरोना से कैसे बचाव करना है। लोग डॉक्टर, नर्स, पुलिस, अद्र्घसैनिक बल और सफाई कर्मचारियों को पूजने लग गए हैं जो दिन-रात लोगों की सेवा कर रहे हैं, अपने घर वालों से दूर रहकर। आसमान नीला दिखाई दे रहा है प्रदूषण कहीं दिखाई नहीं दे रहा। बाजार- मॉल सूने पड़े हैं, कई हमारे दिव्य स्थान ऐसे लग रहे हैं जैसे स्वर्ग हो। मुझे हरिद्वार से स्वामी अवशेष जी ने फोटो भेजी है ये तस्वीर लग नहीं रही कि ये हरिद्वार की है। यह विदेश का पर्यटन स्थल लग रहा है यहां तक कि एक हाथी गंगा नहाने आ गया। आदमी घरों में है और जानवर बाहर है। जालंधर से हिमालय नजर आ रहा है।  हमारे परिवार के एक युवा ने हिमालय की सुंदर तस्वीर खींच डाली। लोग घरों में बैठकर रामायण, महाभारत देख रहे हैं। घर के बच्चे घर में हैं, बहुएं-सास मिलकर काम कर रही हैं मेरी बहू तो रोज नई-नई मिष्ठान्न, बनाकर खिला रही है। जिससे वजन में भी इजाफा हो गया है। फिजूल खर्चे नहीं हैं, लोगों की जरुरतें कम हो गई हैं।
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गाडिय़ों में पैट्रोल के खर्चे नाम-मात्र हो गए हैं। खुद घर का काम करते, घर में काम करने वाले हैल्पर, बाइयों की वैल्यू बढ़ गई है।  घर का हर कोना-कोना साफ हो रहा है। इतना समय है कि आप जी भरकर नींद ले रहे हो, काम कर रहे हो, पूजा कर रहे हो, लिख रहे हो, टी.वी. देख रहे हो, घर के लोगों के साथ, क्वारंटाइन बिता रहे हो। सारी दुनिया को भारत ने नमस्कार करना सिखा दिया है, भारतीय संस्कृति, भारतीय दवाइयां  विदेशों में अपनायी जा रही हैं। बस दु:ख बहुत बड़ा है कि सारी दुनिया की आर्थिक स्थिति कैसे संभलेगी। हमारे भारत की आर्थिक स्थिति कैसे संभलेगी। हमारे रोजगार पर बहुत असर है, व्यापार पर भी बहुत असर पड़ रहा है कि अन्त में इसका अंजाम क्या होगा यही उम्मीद है सब ठीक हो जायेगा। अंत में यही कहूंगी देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान।
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देखो कितना बदल गया संसार,
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देखो कितना बदल गया इंसान॥ ”
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Kiran Chopra

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