टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलSarkari Yojanaहेल्थ & लाइफस्टाइलtravelवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

बिना परीक्षा डिग्री कैसे दें

मानव संसाधन मंत्रालय ने ऐलान किया है कि यूनिवर्सिटीज में फाइनल स्तर की परीक्षाएं सितम्बर के आखिर में कराई जाएंगी। ये परीक्षाएं जुलाई में होनी तय थीं लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उन्हें सितम्बर के आखिर तक टाल दिया गया था।

12:07 AM Jul 12, 2020 IST | Aditya Chopra

मानव संसाधन मंत्रालय ने ऐलान किया है कि यूनिवर्सिटीज में फाइनल स्तर की परीक्षाएं सितम्बर के आखिर में कराई जाएंगी। ये परीक्षाएं जुलाई में होनी तय थीं लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उन्हें सितम्बर के आखिर तक टाल दिया गया था।

मानव संसाधन मंत्रालय ने ऐलान किया है कि यूनिवर्सिटीज में फाइनल स्तर की परीक्षाएं सितम्बर के आखिर में कराई जाएंगी। ये परीक्षाएं जुलाई में होनी तय थीं लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उन्हें सितम्बर के आखिर तक टाल दिया गया था। हालांकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नई गाइडलाइन्स के मुताबिक सितम्बर में फाइनल परीक्षाएं न देने वाले छात्रों को एक और मौका मिलेगा और यूनिवर्सिटीज उनके लिए विशेष परीक्षाएं कराएगी। परीक्षाओं के मामले में शिक्षाविद् भी बंटे हुए हैं। छात्रों का कहना है कि जब लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई ही नहीं हुई तो परीक्षाएं कराने का क्या औचित्य है।
शिक्षाविदों के एक वर्ग का कहना है कि परीक्षाएं रद्द कर देनी चाहिएं और सीबीएसई की तर्ज पर छात्रों को उनके पिछले प्रदर्शन के आधार पर प्रमोट कर दिया जाना चाहिए। छात्रों और ​शिक्षाविदों की मांग को राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के चलते विश्वविद्यालयों की सेमेस्टर आैर वार्षिक परीक्षाएं रद्द करने की घोषणा कर दी है।   लेकिन ​​बिना परीक्षा छात्रों को डिग्रियां बांटना कोई बुद्धिमता वाला निर्णय नहीं होगा। छात्र डि​ग्रियां लेकर ही भविष्य की राह चुनते हैं। अगर ऐसा किया गया तो प्रतिभा सम्पन्न छात्रों की पहचान कैसे होगी। यह कैसे पता किया जाएगा कि किस छात्र में कितनी मेधा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां छात्रों की डिग्री की ही पूरी जांच-पड़ताल करती हैं तब कहीं जाकर उन्हें नौकरी दी जाती है। यूनिवर्सिटीज की परीक्षाओं में मैरिट का न बनना प्रतिभाशाली छात्रों के साथ अन्याय होगा।
जहां तक ओपन बुक माध्यम से ऑनलाइन परीक्षाएं कराने का सवाल है, इस पर भी शिक्षाविदों की राय बंटी हुई है। ओपन बुक परीक्षा में परीक्षार्थियों को सवालों का जवाब देते समय अपने नोट्स, पाठ्य पुस्तकों और अन्य स्वीकृत सामग्री की मदद लेने की अनुमति होती है। छात्र अपने घरों में बैठकर वेब पोर्टल से अपने पाठ्यक्रम के प्रश्न पत्र डाउनलोड करेंगे और दो घंटों के भीतर उत्तर पुस्तिका जमा कराएंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय के चार प्रोफैसरों ने ओपन बुक परीक्षाओं का विरोध करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। इन प्रोफैसरों का तर्क है कि ओपन बुक माध्यम से परीक्षा कराने का यह कदम उच्च शिक्षा को निजीकरण की ओर लेकर जाएगा। ओपन बुक-क्लोज बुक व्यवस्थाएं अलग-अलग हैं। इन दोनों व्यवस्थाओं में प्रश्नपत्र की आवश्यकताएं भी अलग होती हैं। ओपन बुक परीक्षा विभिन्न स्तरों पर छात्रोें के बीच एक तरह से भेदभाव को बढ़ावा देगी। जिनके पास संसाधन हैं, केवल उन्हें ही इसका फायदा ​मिल सकता है। जिनके पास तकनीकी सुविधाएं नहीं, वे क्या करेंगे। कोरोना महामारी के दौरान हजारों छात्र देश के दूरस्थ इलाकों में अपने घरों को लौट चुके हैं।
फाइनल ईयर के छात्रों को परीक्षा के आधार पर ही उनकी स्नातक की पढ़ाई को पूरा माना जाना है और डिग्री दे दी जानी है। ओपन बुक परीक्षा पर सवाल उठाने वाले कहते हैं कि इस परीक्षा का मतलब यह है कि छात्र के पास पेपर पहुंच जाएगा, ले​िकन उसको हल करने के लिए उसके पास किताब से लेकर नैटवर्क सब कुछ मौजूद होगा। ऐसे में छात्रों के ज्ञान का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है। समस्याएं और भी हैं। छात्र मिड टर्म और होली की छुट्टियों में घरों  को लौट आए थे और फिर देश में लॉकडाउन लग गया और वह वापस दिल्ली नहीं लौट पाए। अन्य शहरों के छात्रों के साथ भी ऐसा ही हुआ।
पिछले चार महीनों से पढ़ाई ठप्प है। उनके पाठ्यक्रम ही पूरे नहीं हुए, न पाठ्य सामग्री उपलब्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो इंटरनेट क्नैक्टीविटी काफी कमजोर है, ऐसे में वे ऑनलाइन परीक्षा कैसे देंगे। सभी परीक्षार्थियों को तीन घंटे मिलेंगे। जिसमें दो घंटे में उन्हें जवाब लिखना है और बचे एक घंटे में उन्हें पेपर डाउनलोडिंग, स्कैनिंग और अपलोडिंग का काम करना होगा। परीक्षा देने में बहुत झमेला करना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में ओपन बुक परीक्षा किसी मुसीबत से कम नहीं होगी। सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन और कम्प्यूटर नहीं हैं। ऐसी स्थिति में क्या ओपन बुक परीक्षा का औचित्य पूरा हो पाएगा। ऐसे में नए-नए विषय, प्रयोग और असामान्य स्थिति छात्रों में तनाव पैदा कर सकती है। स्थिति​ को जटिल बनाने से रोका जाना चाहिए। इस बात के प्रयास होने चाहिएं कि पढ़ाई को कैसे सुचारू बनाया जाए और परीक्षाएं बिना किसी बाधा के सम्पन्न कराई जाएं। निःसंदेह महामारी अपनी किस्म की बड़ी चुनौती है और इसके ​लिए देश तैयार नहीं था। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई का विकल्प तो चुन ​लिया गया लेकिन यह कालेज और विश्वविद्यालय परिसरों में होने वाली पढ़ाई का विकल्प नहीं है। शिक्षा नीति निर्धारकों और क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं को इस दिशा में गहन मंथन करना होगा कि छात्रों का मनोबल बढ़ाया जाए और ऐसा रास्ता अपनाया जाए कि फाइनल ईयर की परीक्षाएं हों, जैसे पूर्व में होती रही हैं।
Advertisement
Advertisement
Next Article