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बारिश के पानी में डूबते शहरों को कैसे बचाएं

मानसून में जलभराव की समस्या का समाधान कैसे?

06:30 AM Jun 03, 2025 IST | Rohit Maheshwari

मानसून में जलभराव की समस्या का समाधान कैसे?

बारिश के पानी में डूबते शहरों को कैसे बचाएं

केरल के बाद मुंबई समेत महाराष्ट्र में भी मानसून दस्तक दे चुका है। हर साल बरसात के मौसम में कई महानगरों और शहरों में कुछ घंटे की तेज बारिश के बाद विकास धुल जाता है और अव्यवस्थाओं की असली तस्वीर जनता को मुंह चिढ़ाती है। जनता टैक्स भरती है, लेकिन उसके बदले हर साल बारिश में कहीं सड़क बह जाती है। कहीं सब वे डूबने लगता है। कहीं रेल की पटरी के नीचे से जमीन खिसक जाती है और कहीं नाले-नाली-रोड के बीच फर्क खत्म हो जाता है। बीती 25 मई की सुबह दिल्ली में कुछ ही घंटों में 81.4 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। यह बारिश 1901 के बाद राजधानी में सबसे ज़्यादा बारिश वाला मई महीना रहा। नतीजा, दिल्ली का मिंटो रोड अंडरपास, जो शहरी बाढ़ की समस्या का प्रतीक है, एक बार फिर पानी में डूब गया। इसी तरह, मुंबई ने 26 मई को मई में सबसे ज़्यादा बारिश का 107 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया।

मुंबई में बाढ़ इतनी भयंकर थी कि सिर्फ़ सड़कें और गलियां ही नहीं, बल्कि एक्वा लाइन पर हाल ही में शुरू हुआ भूमिगत मेट्रो स्टेशन भी बारिश के पानी से भर गया। गुवाहाटी में असमय मूसलाधार बारिश के कारण घरों और अपार्टमेंट्स में पानी भर गया। पेट्रोल पंप, एटीएम, सड़कें, बाजार और मंदिर जलमग्न हो गए, जिससे सीजन की पहली बरसात में ही शहर तालाब बन गया। दिल्ली और मुंबई के कुछ हिस्सों में भारी बारिश के कारण जलमग्न होने से कुछ दिन पहले, 21 मई को दक्षिणी कर्नाटक में कम दबाव की प्रणाली से हुई भारी बारिश ने बेंगलुरु के निचले इलाकों को जलमग्न कर दिया था।

क्या आपने कभी सोचा है कि बारिश मामूली हो या भारी, जलभराव की स्थिति कैसे बन जाती है? लगभग हर शहर में जल निकासी को लेकर लाखों करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। सीवेज लाइन, नालियां बनाई जाती हैं। इसपर मोटी रकम खर्च होती है और दावा होता है कि बारिश में जलभराव की स्थिति नहीं होगी, लेकिन शुरुआत से ही जल निकासी की सुविधा बेहद कमजोर होती है। बिना मानक, स्ट्रक्चरल ज्ञान के ही जहां मन होता है, वहीं से जल निकासी की सुविधा दे दी जाती है। फौरी तौर पर भले ही ये काम आ जाए, लेकिन लॉन्ग टर्म इसका सही प्रयोग नहीं हो पाता है। फिर एक समय आता है जब ये जल निकासी की सुविधा पूरी तरह से फेल हो जाती है।

समस्या का मुख्य और तात्कालिक कारण बेशक लगातार बारिश है, जो एक प्राकृतिक कारक है। लेकिन जो चीज वास्तव में भारी बारिश को भारतीय शहरों में शहरी अराजकता और खतरे में डालती है, जैसा कि दिल्ली और मुंबई में देखा गया, वह मानव-प्रेरित कारकों का मिश्रण है जो इसके प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है। पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में काफी बदलाव आया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत भर में शहरी बाढ़ की समस्या बढ़ गई है। असल में, मानसून हो या न हो, दिल्ली में शहरी बाढ़ एक दुःस्वप्न की तरह है, जो बारिश के थोड़े से अंतराल पर भी बार-बार आती है। दिल्ली की प्राकृतिक जल निकासी अरावली की पश्चिम से पूर्व की ओर यमुना नदी की ओर ढलान का अनुसरण करती है, लेकिन बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण और बंद नालों के कारण यह प्रवाह बाधित होता है।

दिल्ली का 2,064 किलोमीटर लंबा वर्षा जल निकासी नेटवर्क पुराना हो चुका है, जो अक्सर गाद और कचरे से भरा रहता है, जिससे भारी बारिश को झेलने की इसकी क्षमता कम हो जाती है। दिल्ली अभी भी 1976 के जल निकासी मास्टर प्लान पर निर्भर है, जब इसकी जनसंख्या सिर्फ 60 लाख थी, जबकि 2011 में यह 1.68 करोड़ हो जाएगी और अनुमान है कि 2025 तक यह 3.8 करोड़ हो जाएगी। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की विडंबना यह है कि यही जल निकाय अक्सर शहर में बाढ़ का कारण बनते हैं। दिल्ली की तरह ही, मुंबई की 1860 के दशक की जल निकासी प्रणाली, जो छोटी आबादी के लिए बनाई गई थी, आज तीव्र मानसूनी बारिश के बीच 20 मिलियन से अधिक निवासियों के साथ संघर्ष कर रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार, पुराने शहरों में नई-नई इमारतें तो बन रहीं हैं, लेकिन ड्रेनेज मैनेजमेंट को लेकर कोई खास काम नहीं होता है। अगर कोई सिस्टम बनता भी है तो वह केवल कुछ क्षेत्र या गली के हिसाब से बनता है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हर जिले का अपना अलग ड्रेनेज सिस्टम होना चाहिए और शहर की आबादी, रियायशी इलाकों और आने वाले 100 साल की संभावनाओं को देखकर तैयार करना चाहिए। इसके इंजीनियरिंग में भी बेहद गंभीरता से काम करने की जरूरत है। कई जगह ड्रेनेज सिस्टम ऊपर-नीचे हो जाता है, जिससे पानी का फ्लो बाहर निकलने की बजाय वहीं ठहर जाता है।

कई जगह ठीक ड्रेनेज सिस्टम गंदगी की वजह से ध्वस्त हो जाता है। आमतौर पर लोग पॉलीथीन, बैग व घरों से निकलने वाले हैवी कूड़े, खाना व अन्य सामग्री सड़कों पर फेंक देते हैं। यही कूड़ा सड़कों से उड़कर नालियों में आ जाता है। जिससे नाला और नाली जाम हो जाते हैं। धीरे-धीरे नाले और नालियों में इतनी गंदगी आ जाती है कि उसमें से पानी निकलने का रास्ता ही नहीं बचता है। ऐसी स्थिति में हल्की सी भी बारिश होती है तो पूरा पानी सड़कों पर एकत्रित हो जाता है। इसलिए बारिश का मौसम आने से पहले सभी छोटे-बड़े नालों की पूरी साफ-सफाई बेहद जरूरी है। वास्तव में, शहरों में सीवरों और नालों की सफाई में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है, जिस पर कोई ध्यान नहीं देता है। बरसात से पूर्व नालों और नालियों की सफाई का नाटक देशभर में होता है, बावजूद इसके पहली ही बरसात में सारे इंतजामों की पोल खुल जाती है।

लगभग हर राज्य में एक जैसी व्यवस्था देखने को मिलती है। नाला-नालियों की कायदे से सफाई न होने से उसमें कूड़ा पड़ा रहता है। जब बारिश का पानी उसमें जाता है तो नाला उफना जाता है। इससे उसका पानी शहर की गलियों में बहने लगता है। आमतौर पर हर जिले में जल विभाग, बिजली विभाग, सड़क निर्माण विभाग, नगर निगम, नगर पालिका सब अलग-अलग तरह से काम करते हैं। अक्सर देखा जाता है कि एक ही सड़क को अलग-अलग विभाग वाले कई बार खोद देते हैं। ये भी ड्रेनेज सिस्टम को बर्बाद करने का एक बड़ा कारण है। ये भी देखना चाहिए कि सड़क की खुदाई के चलते सीवर या सड़क के नीचे से निकलने वाली कोई पाइप तो क्षतिग्रस्त नहीं हुई है। इसी तरह सड़क की खुदाई के दौरान अक्सर बगल की नाली और नाले को भी तोड़ दिया जाता है। ऐसा भी नहीं होना चाहिए। हर शहर में नाले और नालियों के सहारे ही पानी को बाहर निकाला जाता है। इसे नदियों में मिला दिया जाता है।

शहरी बाढ़ की समस्या सिर्फ दिल्ली, मुंबई,बेंगलुरु और पुणे में ही नहीं है। कोलकाता और हैदराबाद भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहे हैं। गुवाहाटी, नासिक, पटना, लखनऊ, जयपुर और देहरादून जैसे छोटे शहरों में भी शहरी बाढ़ की समस्या लगातार बढ़ रही है और इनके कुछ हिस्सों में साल में कई बार बाढ़ आती है। शहरों को डूबाने के लिए हम भले प्रकृति को दोष दें, पर हम सब भी कम गुनहगार नहीं हैं। बारिश और बाढ़ से निपटने के लिए जल निकासी की मजबूत व्यवस्था बनानी होगी। शहरी प्लानिंग के लिए बजट को प्राथमिकता के रूप में लेना होगा। अगर हम इसको लेकर गंभीर नहीं होंगे तो प्राकृतिक आपदा हमारे जीवन की मुश्किलें बढ़ाती रहेगी।

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