Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कैसे सुलझेगी योगी की गुत्थी

04:04 AM Jul 21, 2024 IST | Shera Rajput

‘हमने कब चाहा था कि दुनिया को तेरा असली चेहरा दिख जाए मुस्सलस्ल,
हम तो तब भी आइना थे, अब भी आइना हैं, दिखा वही जो तुम दिखाते रहे अब तक’

यह रण भीषण था, भंगिमाएं चौकस और भगवा शंखनाद पर रण बांकुरों ने भी क्या एक से एक दांव चले पर लगता है इस बार भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी गद्दी सलामत रखने में फिर से कामयाब रहे हैं। दिल्ली की सत्ता के कंगूरे की आहटों को अब योगी बखूबी भांप लेते हैं। वे जानते हैं कि चाहे वे केशव प्रसाद मौर्या हों, ए.के. शर्मा हों, सुनील बंसल हों, संजय निषाद हों या फिर अनुप्रिया पटेल हों, उनके करतबों को दिल्ली की कौन सी अंगुलियां नचा रही हैं। इस बार एक वक्त यह जोरों की हवा उड़ी कि एक बड़े नेता को लखनऊ जाने को तैयार रहने को कहा गया है। पर कहते हैं उन्होंने इसके लिए दो टूक मना कर दिया। भाजपा शीर्ष से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि योगी को दिल्ली से यह प्रस्ताव दिया गया था कि ‘वे केंद्र में एक महत्वपूर्ण मंत्रालय के मंत्री बन जाएं’ पर आदित्यनाथ तो ठहरे योगी, कहा जाता है कि उन्होंने हाईकमान से दो टूक कह दिया कि ‘मुझे किसी पद की लालसा नहीं, मैं केंद्र में नहीं जाऊंगा और यदि मुख्यमंत्री पद छोड़ना भी पड़ा तो वापिस गोरखपुर मठ चला जाऊंगा।’ दिल्ली ने भी योगी की बातों के निहितार्थ बखूबी भांप लिए थे सो उन्हें भी अपने कदम फिलवक्त वापिस लेने पड़े हैं।
योगी को हटाना इतना आसान क्यों नहीं
भाजपा का समानांतर केंद्रीय नेतृत्व इन लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के लचर प्रदर्शन का ठीकरा केवल और केवल योगी के सिर फोड़ना चाहता है। तो इसके जवाब में योगी के भी अपने तर्क हैं। सूत्रों की मानें तो दिल्ली शीर्ष के समक्ष योगी ने साफ कर दिया है कि इस बार ‘यूपी में भाजपा शीर्ष अति आत्मविश्वास के घोड़े पर सवार था। उनके सुझाए गए लोगों को टिकट न देकर दिल्ली ने अपनी मनमर्जी के कमजोर प्रत्याशी उतारे।
चुनाव संबंधी सारे निर्णय केंद्रीकृत रहे यहां तक कि चुनावी कार्यक्रम भी दिल्ली द्वारा तय किए गए और पूरा चुनाव ‘मोदी की गारंटी’ पर लड़ा गया तो फिर खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी अकेली उनकी कैसे हो सकती है,’ लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यूपी को लेकर भाजपा में आत्ममंथन का दौर लगातार जारी है। इसी आत्ममंथन से एक विचार रूपी अमृत सामने आया है कि इस दफे के चुनाव में अगड़ा वोट बैंक भाजपा से थोड़ा खिसका है।
संघ का तर्क है कि यदि ऐसे समय में योगी को हटाया जाए तो नुकसान और बड़ा हो सकता है क्योंकि गुजरात से लेकर राजस्थान में राजपूत समुदाय भाजपा से किंचित नाराज़ चल रहा है। भाजपा ने वसुंधरा राजे और वीके सिंह जैसे नेताओं को दरकिनार कर राजपूत समाज को उकसाने का ही काम किया है और यदि ऐन वक्त योगी जाकर गोरखपुर मठ में बैठ जाएं तो यह कदम आग में घी डालने का काम करेगा क्योंकि गोरखनाथ मठ एक शक्तिशाली मठ है जिसका प्रभाव पूरे देश में देखा जा सकता है, चुनांचे ऐसे वक्त में योगी को छेड़ने का रिस्क भाजपा लेना नहीं चाहती।
बुधनी से कौन होगा भाजपा प्रत्याशी?
शिवराज सिंह चौहान इस दफे विदिशा संसदीय सीट से रिकार्ड मतों से जीते हैं। चूंकि वे सांसद बन गए हैं तो उनके द्वारा रिक्त की गई बुधनी विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं। अपनी 20 साल पुरानी विरासत शिवराज किसे सौंपेंगे इसको लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। शिवराज के करीबी दावा करते हैं कि वे अपने पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान को बुधनी सीट से चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं।
कार्तिकेय शिवराज का सारा सियासी कामकाज भी देखते हैं और लंबे समय से उनके क्षेत्र को भी संभाल रहे हैं। पर सवाल बड़ा है कि भाजपा हाईकमान जिसकी आंखों में शिवराज हमेशा खटकते रहे हैं क्या इतनी आसानी से बुधनी सीट उनकी झोली में डाल देगा। भाजपा शीर्ष के पास इसके लिए एक ही अकाट्य तर्क है ‘परिवारवाद’। सो, अगर शिवराज अपने पुत्र कार्तिकेय को टिकट नहीं दिलवा पाते हैं तो वे अपने बेहद भरोसेमंद राजेंद्र सिंह के लिए बैटिंग करेंगे। वे वही राजेंद्र सिंह हैं जो 2003 और 2005 के विधानसभा चुनाव में बुधनी से भाजपा के टिकट पर जीते थे और 2005 में ही उन्होंने शिवराज के लिए अपनी सीट खाली कर दी थी।
क्या जम्मू-कश्मीर का चुनाव आगे खिसकेगा?
मोदी 3-0 सरकार के शपथ लेने के दिन से ही जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों का नया सिलसिला शुरू हो गया है। यहां अकेले जून और जुलाई के महीने में ही 8 आतंकी हमले हो चुके हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जम्मू-कश्मीर में दिसंबर तक चुनाव करवाने को कहा है। पर सवाल उठता है कि अगर यह आतंकी घटनाएं बदस्तूर जारी रहीं तो क्या मोदी सरकार यहां विधानसभा चुनाव आगे की ओर खिसका सकती है?
वैसे भी तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा घाटी में अच्छी स्थिति में नहीं दिख रही। वो यहां छोटे दलों और निर्दलियों के भरोसे है। एक सवाल यह भी उठता है कि जम्मू-कश्मीर की आतंकी घटनाएं क्या हमारी खुफिया एजेंसियों की भी नाकामी हैं। आखिरकार यह किसकी नाकामी है। आप सिर्फ इन्हें किराए के आतंकी कह कर अपना दामन नहीं बचा सकते। यह आतंकी एक साल से ज्यादा वक्त से यहां जमा थे, रेकी कर रहे थे, खुफिया जानकारियां जुटा रहे थे।
...और अंत में
भाजपा और संघ के दरम्यान तल्ख ​िरश्तों की बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है। पिछले दिनों सरसंघ चालक मोहन भागवत कोई 10 दिनों तक झारखंड की राजधानी रांची में जमे रहे। जहां संघ के प्रांत प्रचारकों की 3 दिनों की एक बैठक आहूत थी। मोहन भागवत 18 जुलाई तक रांची में ही बने रहे।
प्रांत प्रचारकों की बैठक के बाद संघ का आधिकारिक बयान सामने आया कि संघ ‘लोकमत परिष्कार’ का काम पहले की तरह करता रहेगा। लोकमत परिष्कार एक खास शब्दावली है जिसका अर्थ है कि मतदाताओं के बीच काम करना, उनके बीच किसी एक दल के लिए धारणा बनवाना और उस दल विशेष के लिए मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करना। आने वाले 3 महीनों में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं सो संघ की यह हालिया सक्रियता इस बात का शर्तिया ऐलान है कि संघ अब पहले की तरह भाजपा के लिए चुनावी मैदान तैयार करने में जुट गया है। इसकी बानगी झारखंड विधानसभा चुनाव में दिख जाएगी।

- त्रिदीब रमण

Advertisement
Advertisement
Next Article