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ईदगाह मैदान और वक्फ बोर्ड

कर्नाटक में दो स्थानों बेंगलुरु व हुबली के ईदगाह मैदानों के सार्वजनिक उपयोग के बारे में दो अलग-अलग फैसले आये हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हुबली के ईदगाह मैदान कहे जाने वाली भूमि का उपयोग गणेश पूजा उत्सव मनाने के ​लिए करने की इजाजत इस आधार पर दी

02:40 AM Sep 01, 2022 IST | Aditya Chopra

कर्नाटक में दो स्थानों बेंगलुरु व हुबली के ईदगाह मैदानों के सार्वजनिक उपयोग के बारे में दो अलग-अलग फैसले आये हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हुबली के ईदगाह मैदान कहे जाने वाली भूमि का उपयोग गणेश पूजा उत्सव मनाने के ​लिए करने की इजाजत इस आधार पर दी

ईदगाह मैदान और वक्फ बोर्ड
कर्नाटक में दो स्थानों बेंगलुरु व हुबली के ईदगाह मैदानों के सार्वजनिक उपयोग के बारे में दो अलग-अलग फैसले आये हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हुबली के ईदगाह मैदान कहे जाने वाली भूमि का उपयोग गणेश पूजा उत्सव मनाने के ​िलए करने की इजाजत इस आधार पर दी कि यह भूमि मूलतः धारवाड़- हुबली नगर परिषद की है अतः इस परिषद के महापौर द्वारा गणेश पूजा की इजाजत दिये जाने के आदेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। बेशक भूमि को अंजुमनेः इस्लाम को पट्टे पर दिया गया था जिससे वह साल के दो दिन ईद के मौके पर इसका उपयोग कर सके मगर इसके मालिकाना हक परिषद के पास ही हैं अतः वह इसके उपयोग करने पर फैसला कर सकती है। इस मामले में मालिकाना हक को लेकर किसी प्रकार का कोई संशय नहीं है। परन्तु बेंगलुरु के चमराजपुर पेट ईदगाह मैदान के बारे में मालिकाना हक पर विवाद होने की वजह से सर्वोच्च न्यायालय ने यथा स्थिति बनाये रखने के आदेश जारी किये और दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अंतिम रूप से अपना-अपना पक्ष कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष ही रखने की सलाह दी। बेंगलुरु के ईदगाह मैदान के मामले में एक बहुत रोचक तथ्य उभर कर सामने आया कि भारत में मुस्लिम वक्फ बोर्ड के अख्तियार इतने ‘बेइख्तियार’ कर दिये गये हैं कि सरकारें भी इनके सामने लाचार नजर आये।  स्वतन्त्र भारत वक्फ बोर्ड कानून में कई बार संशोधन किये गये हैं और हर संशोधन के द्वारा बोर्ड को अधिकाधिक शक्ति सम्पन्न बनाया गया है।
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यह हकीकत है कि भारत में रेलवे व रक्षा मन्त्रालय के बाद सर्वाधिक सम्पत्ति वक्फ बोर्ड की ही है और यह एेसी सम्पत्ति है जिस पर सिर्फ मुस्लिम समाज का ही हक है हालांकि सारी सम्पत्ति भारत की है। बहुत गंभीर सवाल पैदा होता है कि एक पंथ धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सार्वजनिक सम्पत्ति का मजहब के नाम पर बंटवारा कैसे हो सकता है जबकि उस सम्पत्ति पर आवश्यक रूप से कोई मजहबी काम भी नहीं किया जाता है। मुगल बादशाहों के जमाने से चली आ रही इस परिपाठी को अंग्रेजों ने केवल इस​िलए पुख्ता किया था जिससे मुसलमान भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन से अलग रह सकें और हिन्दुओं से खुद को हर स्तर पर अलग समझें। आजाद हिन्दुस्तान में भी उनके बनाये हुए कानूनों पर अमल करके हमने इसी हिन्दू-मुस्लिम अलगाव को मजबूत बनाने का काम केवल पंथ निरपेक्षता के नाम पर किया और भारत की जमीन को भी हिन्दू-मुस्लिम बना दिया। बड़े अदब से यह सवाल क्या पूछा जा सकता है कि आठवी सदी में जब इस्लाम भारत में आया तो क्या वह अफने साथ जमीन-जायदाद लेकर भी आया था?
सितम तो यह हुआ कि भारत के लोगों को ही धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाया गया और फिर उनकी जमीनों को भी हिन्दू-मुसलमान में बांट दिया गया। क्या मुगल बादशाहों को भारतीयों ने खैरात बांटी थी कि वे आयें और यहां की जमीन-जायदाद के मालिक बन बैठें।  पूरा भारत और इसकी जमीन का जर्रा-जर्रा भारत के रहने वाले निवासियों का था मगर पहले उनका धर्म परिवर्तन किया गया और बाद में उनकी निष्ठाएं भी हिन्द की सरजमीं से अलग कर दी गईं। अगर एेसा नहीं था तो फिर पाकिस्तान का निर्माण क्यों हुआ ?नरसिम्हा राव सरकार के समय 1995 में वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन किया गया था। यह संशोधन केवल मुसलमानों को खुश करने की दृष्टि से किया गया था क्योंकि 1992 में अयोध्या का विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया गया था। नरसिम्हा राव मुस्लिम सम्प्रदाय की सहानुभूति चाहते थे। अतः इस कानून में यह बदलाव किया गया कि अगर एक बार वक्फ बोर्ड किसी सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति घोषित कर दे तो फिर कोई सरकार कुछ नहीं कर सकती और पूरे जिला प्रशासन को उसकी बात पर ही अमल करना होता था। बेंगलुरु के ईदगाह के मैदान के सिलसिले में यही कानून बीच में आ रहा है। हालांकि इसके बाद मनमोहन सरकार के दौरान भी इस वक्फ कानून में संशोधन हुआ मगर उससे भी बोर्ड को और मजबूती ही मिली।
असली सवाल यह है कि वक्फ बोर्ड क्या किसी सुल्तान या मुगल बादशाह की बनाई गई संस्था है जो अपने हिसाब से किसी भी नजूल जमीन के मालिकाना हक प्राप्त कर ले और आम हिन्दुस्तानी पर उसके इस्तेमाल पर रोक लगा दे।  क्या किसी जमीन का भी कोई मजहब हो सकता है मगर हमने आजाद भारत में भी मुगलिया कानूनों को इज्जत बख्शी और शान से खुद को ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र कहते रहे। हम भारत के लोग इस भारत की धरती के हर हिस्से को हर दिशा से पूजने वाले लोग हैं। इसके कण-कण मे हमारे देवताओं का निवास है। सागर से लेकर नदियों और वृक्षों से लेकर जंगलों तक की हम पूजा करते हैं। इसका धर्म या मजहब हमारी मान्यताओं से अलग कैसे हो सकता है क्योंकि इनकी उत्पत्ति तो इसी धरती की माटी में हुई है। मगर विदेशी आक्रान्ताओं के प्रभाव में हम यहां तक आ गये कि हमने अपनी इस जमीन को ही हिन्दू-मुसलमान में बांटने की परंपरा को अपना लिया। भारत की कोई जमीन एेसी नहीं हो सकती जहां गणेश पूजा न की जा सके या भगवान शंकर की अर्चना न की जा सके। इसलिए मौजूदा सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह इस भारत विरोधी वक्फ कानून को निरस्त करके समूची धरती को भारत की धरती घोषित करे न कि इसे हिन्दू-मुसलमान में बांटे। जिन्हें एेसी धरती चाहिए थी उन्होंने 1947 में पाकिस्तान ले लिया था। भला कोई पूछे जिस मुल्क के लोगों ने पूरा ‘पाकिस्तान’ ही वक्फ कर दिया हो उस मुल्क में क्या अब भी वक्फ बोर्ड की जरूरत है।
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