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इमरान खान के पतन की शुरूआत!

पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि बड़े से बड़े तानाशाह वहां की सत्ता में नहीं टिक पाए तो इमरान खान जैसे अनुभवहीन राजनीतिज्ञ कैसे टिक पाएंगे? सारी दुनिया जानती है ​

12:29 AM Oct 22, 2020 IST | Aditya Chopra

पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि बड़े से बड़े तानाशाह वहां की सत्ता में नहीं टिक पाए तो इमरान खान जैसे अनुभवहीन राजनीतिज्ञ कैसे टिक पाएंगे? सारी दुनिया जानती है ​

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इमरान खान के पतन की शुरूआत
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पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि बड़े से बड़े तानाशाह वहां की सत्ता में नहीं टिक पाए तो इमरान खान जैसे अनुभवहीन राजनीतिज्ञ कैसे टिक पाएंगे? सारी दुनिया जानती है ​कि बतौर क्रिकेटर इमरान खान काफी अनुभवी खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन वह बेहतर राजनीतिज्ञ होने का भ्रम पाल बैठे। सब जानते हैं कि इमरान खान पाकिस्तान सेना की कठपुतली मात्र हैं। जिस तरह से देश में हालात हैं, उससे साफ है कि इमरान खान नहीं जानते कि उनका दायां हाथ क्या कर रहा है और बायां हाथ किधर जा रहा है। पाकिस्तान में भूख है, बेरोजगारी है, पीओके से लेकर सिंध तक में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा है। बाल्टिस्तान को अवैध रूप से पाकिस्तान का पांचवां राज्य बनाने के विरोध में वहां की सड़कों पर लोग उतर आए हैं। फैलते जनाक्रोश के बीच कराची में आयोजित 11 विपक्षी दलों की रैली ने इमरान खान की सरकार की चूलें हिला दी हैं। रैली को अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी और बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टों ने सम्बोधित किया। कराची रैली में जैसा जनता का हुजूम उमड़ा उसने इमरान खान और पाकिस्तान सेना की रुह फना कर दी है। पाकिस्तान की राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों का मानना है कि जिस ढंग से मरियम नवाज और बिलावल भुट्टो ने अन्य ​विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया, उससे इमरान खान के पतन की शुरूआत हो चुकी है।
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इस दौरान 18-19 अक्तूबर की रात को जो कुछ हुआ, उससे पूरे सिंध में आक्रोश भड़क उठा। मरियम नवाज अपने पति मोहम्मद सफदर के साथ रैली को सम्बोधित करने कराची पहुंची हुई थीं। दोनों कराची के होटल में ठहरे हुए थे। रात के समय पाक सेना के जवानाें ने आईजी सिंध का आवास घेर कर उन्हें जबर्दस्ती उठा लिया और उन्हें मोहम्मद सफदर की ​िगरफ्तारी के आदेश पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया, जबकि आईजी ने विरोध दर्ज कराने के लिए अनिश्चितकाल के लिए छुट्टी पर जाने का फैसला किया। मोहम्मद सफदर को गिरफ्तार कर लिया गया। सिंध पुलिस के सभी शीर्ष अधिकारी इस बात को लेकर हैरान थे कि ऐसा पाकिस्तान सेना ने किसके इशारे पर किया। पाकिस्तान सेना और सिंध पुलिस में फायरिंग भी हुई। इसके बाद ‘गृह युद्ध’ छिड़ने की अफवाहें फैल गईं। तनावपूर्ण हालातों को देखते हुए पाक सेना चीफ केमर जावेद बाजवा ने पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए और सफदर को जमानत भी दे दी गई। पूरे घटनाक्रम से साफ है कि सत्ता पर इमरान खान का कोई प्रभाव नहीं, बल्कि सारा खेल सेना ही कर रही है। बाजवा को याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया उल हक (जालंधरी) के विमान को आम बम से उड़ा दिया गया था, सत्ता में अमेरिका का पालू बने रहे परवेज मुशर्रफ जिन्होंने संविधान बदल कर दोनों शीर्ष पदों पर कब्जा कर लिया था, उसे भी पाकिस्तान की जनता ने धूल चटा दी थी। पाकिस्तान के हुक्मरानों ने ब्लोचिस्तान और सिंध पर लगातार अत्याचार किए। ब्लोचिस्तान के लोगों पर अत्याचारों की दास्तान बहुत लम्बी है। ऐसे लगता है कि इस बार इमरान खान को सत्ता से उखाड़ने की मुहिम की शुरूआत सिंध से हो चुकी है। ‘सिंधू’ से भारत का भावनात्मक संबंध है। सिंधु नदी के कारण ही भारत को हिन्दुस्तान कहा गया। जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ तो उसमें सबसे बड़ी भूमिका पंजाब, सिंध या पख्तूनों ने नहीं निभाई थी, जो बिहार और उत्तर प्रदेश में रहने वाले मुस्लिम वर्ग के थे, उन्हीं का खून ज्यादा उबाल मार रहा था। उन्होंने सोचा था कि शायद वहां यानी पाकिस्तान जाकर उन्हें जन्नत मिल जाएगी। जो लोग यहां से गए उन्हें मोहाजिर का दर्जा मिला। सिंध में शिया और सुन्नी जमात की भी समस्या उभर आई। वातावरण विद्वेष और घृणा का बन गया। जो सिंधी वहां पहले से ही रहते थे प्रतिद्वंद्विता के चलते वे एकजुट होने लगे और मोहाजिदों को बाहर निकालने की मांग करने लगे। सिंध में ही सिंधियों का अपमान किया जाने लगा। 1959 तक कराची पाकिस्तान की राजधानी थी लेकिन अयूब खां इसे इस्लामाबाद ले गए। इसके परिणामस्वरूप मोहाजिद एकजुट हो गए।
1971 में जब तक जुल्फिकार अली भुट्टो सत्ता में आए तो सिंधियों ने चैन की सांस ली थी। भुट्टो मूलतः सिंधी थे। उन्होंने शहरी क्षेत्रों में 40 फीसदी नौकरियां और गांवों में 60 फीसदी नौकरियां सिंधियों के लिए आरक्षित कर दी थीं, लेकिन मोहाजिदों को कुछ नहीं मिला। तब अल्ताफ हुसैन के नेतृत्व में मोहाजिर कौमी मूवमैंट अस्तित्व में आया। अल्ताफ हुसैन लंदन में निर्वासित जीवन बिताकर मोहाजिदों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। 1986 में सिंध में मोहाजिदों और बिहारियों का कत्लेआम शुरू किया गया। यह काम पख्तून फौजियों को सौंपा गया। पाकिस्तान दुनिया की नजर में एक देश हो बलोचा, पख्तून और ​सिंध कानूनी रूप से उसके हिस्से हों परन्तु वास्तविक रूप से वह पाकिस्तान से दूर हो चुके हैं। यह टूट कोई अचानक नहीं हुई, यह ​तिलतिल करके टूटे हैं, इनका तिनका-तिनका बिखरा है। इनकी रग-रग में दर्द का अहसास है। अब जबकि पाकिस्तान विफल राष्ट्र बन चुका है। कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान चीन की गोद में बैठ चुका है। उसने अपनी संप्रभुता गिरवी रख दी है। पाकिस्तानी अवाम बुरी तरह से आहत है। आतंकवाद की खेती करने वाला पाकिस्तान पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका है। इमरान खान सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। जान बचानी है तो उन्हें खुद इस्तीफा देकर फिर से आईपीएल क्रिकेट की कमेंटरी शुरू करनी चाहिए। अन्यथा सेना का क्या पता, कब तख्ता पलट कर उन्हें जेल में डाल दे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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