पंजाब में प्रवासियों पर नहीं अपराधियों पर शिकंजा कसें
बीते कुछ दिनों से पंजाब में प्रवासियों को लेकर काफी चर्चा चल रही है। कुछ निहंग जत्थेबंदियों के द्वारा प्रवासियों को पंजाब से बाहर निकालने के लिए मुहिम भी शुरू की गई है। असल में देखने में आ रहा है कि प्रवासियों के रूप में कुछ आपराधिक प्रवृति के लोग आकर लूटपाट, महिलाओं से छेड़छाड़, मारपीट की घटनाओं को अन्जाम दे रहे हैं। अगर देखा जाए तो आज की तारीख में पंजाब की खुशहाली और तरक्की में प्रवासियों का बड़ा योगदान है मगर कुछ एक लोगों के कारण समूचे प्रवासी बदनाम होते दिख रहे हैं जिसके लिए प्रशासन की अहम जिम्मेवारी बनती है कि वह ऐसे प्रवासियों पर शिंकजा कसे और जो भी आपराधिक मामलों में शामिल हो उस पर सख्त कार्रवाई की जाए। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और देश की आजादी से लेकर आज तक हर धर्म, जाति के लोग देश के किसी भी राज्य में बिना किसी रोक- टोक के आपसी भाईचारे और प्रेम भाव के साथ रहते आ रहे हैं, वैसे भी देखा जाए तो पंजाब गुरुओं-पीरों की धरती है और गुरु साहिबान ने तो ‘‘मानस की जात सबै एक पहचानबो’’ की शिक्षा दी है, भाव संसार का हर प्राणी एक सामान है, किसी भी तरह की उंच, नीच, धर्म, जाति के भेदभाव को मिटाकर आपस में मिलजुल कर रहने की बात सिखाई। आज जो लोग दूसरे राज्यों से आकर पंजाब में बसे और यहां आए उन्हें कई साल बीत चुके हैं, पंजाब की तरक्की, खुशहाली में उनका अहम रोल है। उन्हें प्रवासी कहकर एकाएक राज्य से निकालने की बात की जाए, यह किसी भी तरह से उचित नहीं है।
अगर वह प्रवासी हैं तो पंजाब से जो लोग दूसरे राज्यों में बसे हैं वह भी तो वहां के लोगों के लिए प्रवासी ही हुए, इसलिए इसे यहीं रोकना होगा वरना इसके गंभीर परिणाम आने वाले दिनों में निकल सकते हैं। आज हालात ऐसे हैं कि पंजाब का युवा वर्ग या तो विदेशों में पलायन कर चुका है और जो युवा बचा है उनमें से ज्यादातर खेती-बाड़ी या छोटे कारोबार करने में अपनी तौहीन समझते हैं। ऐसे में प्रवासियों के सहारे के बिना एक भी दिन गुजारना मुश्किल है क्योंकि प्रवासियों के द्वारा ही खेती और जो पंजाबी विदेशों में जा बसे हैं उनके घरों की देखभाल की जा रही है। इंग्लैंड में शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी तालमेल सैन्टर का उद्घाटन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा इंग्लैंड में बरबिंघम में खालसा पंथक अकादमी के सहयोग से तालमेल सैंन्टर खोला गया है जिसका लाभ खासकर इंग्लैंड की सिख संगत जो भारत में गुरधामों के दर्शनों के लिए आते हैं को होगा। इस सैन्टर को खुलवाने का पूरा श्रेय सिख पंथ में एक अलग पहचान रखने वाले गुरविन्दर सिंह बावा जो कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी, तख्त पटना साहिब, तख्त सचखंड हजूर साहिब नांदेड़, चीफ खालसा दीवान, खालसा कालेज मुम्बई सहित अनेक धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, उन्हें जाता है। जिन्होंने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी सहित अन्य कमेटी सदस्यों के समक्ष इंग्लैंड की संगत को आने वाली परेशानियों से अवगत करवाया जिसके बाद कमेटी ने इंग्लैंड में तालमेल सैन्टर खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
इस कार्य के लिए इंग्सैड की संगत ने शिरोमणि कमेटी के साथ ही विशेष तौर पर गुरविन्दर सिंह बावा का भी आभार प्रकट किया। इस सिलसिले में शिरोमणि कमेटी द्वारा एक प्रतिनिधि मण्डल जिसमें बीबी हरजिन्दर कौर, राजिन्दर सिंह मेहता सहित अन्य पदाधिकारियों को बरबिंघम उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए भेजा गया। इस मौके पर कीर्तन समागम के पश्चात अरदास करके सैन्टर का रस्मी तौर पर उद्घाटन किया गया। असल में इंग्लैंड से जब सिख संगत भारत आकर तख्त साहिबान पर दर्शनों के लिए जाने पर रिहाईश, ट्रांसपोर्ट आदि की दिक्कत पेश आती थी जो इस सैन्टर के खुलने के बाद दूर होगी और इस सैन्टर में जाकर संगत भारत आने से पूर्व ही अपने सभी तरह के इन्तजाम कर सकेगी। आने वाले दिनों में इस तरह के सैन्टर अन्य देशों में भी खोले जा सकते हैं। पाकिस्तान में दस्तारधारी सिखों पर पुलिस का अत्याचार पाकिस्तान जिसे लहंदा पंजाब कहकर भी सम्बोधन किया जाता है उसके पंजाब, सिन्ध और खैबर क्षेत्र में पाकिस्तानी पुलिस के द्वारा दोपहिया वाहनों पर सवार दस्तार सिखों के चालान किए जा रहे हैं और साथ ही पैट्रोल पंपों को भी बिना हैलमट दोपहिया सवार को पैट्रोल ना देने का आदेश जारी किया है जिसके चलते पाकिस्तान के सिख काफी परेशान हैं। सिख मर्यादा के अनुसार सिख सिर पर किसी भी तरह की टोपी तक नहीं पहन सकता।
सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के राष्ट्रीय सैकेट्री जनरल गुणजीत सिंह बख्शी का कहना है कि इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानियों के भीतर सिखों के प्रति कितनी नफरत भरी है और सिखों पर जो जुल्म इनके पूर्वजों ने किए हैं यह आज भी उन पर कायम है और जानबूझ कर इस तरह के कानून बनाकर सिखों के सिरों से दस्तार उतरवाकर हैलमेट पहनाना चाहते हैं जो सिख कौम कभी होने नहीं देगी। इससे पहले फ्रान्स में भी एक बार ऐसा ही माहौल बना था तब उस समय के नेता बख्शी जगदेव सिंह, जत्थेदार संतोख सिंह के द्वारा अन्य सिख नेताओं के साथ मिलकर दिल्ली में मोर्चा लगाकर फ्रान्स की सरकार को सिखों के लिए दस्तार क्यों जरूरी है बताया जिसके बाद सरकार के द्वारा आदेश वापिस लिया गया था। आज भी सिख कौम को अगर जरुरत पड़ी तो शायद वह मोर्चे लगाने में पीछे नहीं रहेगी। मगर यहां सवाल गुरपतवंत सिंह पन्नू से भी बनता है जो विदेशी धरती पर बैठकर सिखों के सबसे बड़े हमदर्द बनने की नौटंकी करते हैं कि आज जब पाकिस्तान में सिखों की दस्तार पर हमला हो रहा है तो वह चुप्प क्यों बैठे हैं उनकी ओर से अभी तक इस पर कोई बयान क्यों नहीं आया।