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Increasing Suicidal Tendency Among Youth: युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति

06:09 AM Jun 12, 2024 IST | Shivam Kumar Jha
increasing suicidal tendency among youth  युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति

Increasing Suicidal Tendency Among Youth: भारत की नई पीढ़ी को ऐसे संसाधन मिले हैं जो पहले की पीढ़ियों को उपलब्ध नहीं थे। वर्तमान पीढ़ी को उम्मीद है कि भारत का आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य अब पहले से कहीं ​अधिक बेहतर होगा। युवा पीढ़ी पूर्ववर्ती पीढ़ियों की तरह रोजगार को केवल आमदनी का जरिया नहीं मानती है बल्कि उसके ​लिए अपने काम में संतोष मिलना और रोजगार का उद्देश्यपरक होना भी जरूरी है। ऐसा भी नहीं है कि नई पीढ़ी शिक्षा,कौशल, रोजगार आदि की चुनौतियों से ​चिंतित नहीं है लेकिन यह चुनौतियां तो हर पीढ़ी के लिए रही हैं। आज की युवा पीढ़ी तेजी से प्रगति करना चाहती है। उम्मीदों और संभावनाओं के देश में युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति बहुत बड़ा सामाजिक चिंता का विषय है। हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि जिंदगी बहुत खूबसूरत है उसे अवसाद में डुबोकर आत्महत्या तक पहुंचाने से अच्छा जिंदादिली से जीना सीखना चा​हिए। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं की आत्महत्या का सिलसिला रुक नहीं पा रहा। राजस्थान का कोटा शहर छात्रों की आत्महत्याओं के लिए कुख्यात हो चुका है। कभी नंबर कम आने पर छात्र आत्महत्या कर लेते हैं तो कभी परीक्षा में कम अंक आने की आशंका में छात्र-छात्राएं आत्महत्या कर रहे हैं।

युवाओं में विफलता का भय, आत्मविश्वास की कमी आदि को लेकर बहुत बातें होती रही हैं। इसमें अभिभावकों की महत्वाकांक्षा और सफलता के सपने वगैरह को लेकर भी अनेक मनोसामाजिक विश्लेषण हो चुके हैं। मगर फिर भी इस समस्या से पार पाने का कोई व्यावहारिक रास्ता नहीं निकल पा रहा है, तो यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर कमी कहां है। यह ठीक है कि जनसंख्या अधिक और अवसर कम होने के कारण प्रतियोगिता दिन पर दिन कठिन होती जा रही है मगर शिक्षा का ऐसा तरीका क्यों नहीं विकसित किया जा सका है जो विद्यार्थियों को सहज और सामान्य ढंग से पढ़ाई का वातावरण दे सके।कई बार छोटी-छोटी मुश्किलों का सामना करने की बजाय युवा उससे घबराकर आत्महत्या कर रहे हैं। वैसे तो हर उम्र के व्यक्तियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है परंतु 15 से 35 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में इसकी संख्या अधिक सामने आती है। आत्महत्या करने के कई कारण हैं परंतु भारत में इसके मुख्य कारणों में नौकरी का नहीं मिलना या नौकरी का छूट जाना, सामाजिक तौर पर मानसिक तनाव, बच्चों में पढ़ाई का तनाव, किसानों द्वारा बैंकों से लिए गए ऋण का समय पर नहीं चुका पाना, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के चलते स्त्रियों पर मानसिक तनाव अथवा छेड़छाड़ या दुष्कर्म के बाद समाज के तानों से घबराकर भी आत्महत्या कर लेना एक मुख्य कारण है।

पिछले कुछ सालों में भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में खुदकुशी की घटनाओं में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। इन सब में चौंकाने वाली बात तो यह है कि महिलाओं की तुलना में आत्महत्या करने की दर पुरुषों की ज़्यादा है और अब बच्चे भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 4 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज़्यादा लोग अवसाद यानी डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेते हैं, जिसमें अकेले 17 प्रतिशत की संख्या भारत की है जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं।युवाओं के बीच इंटरनेट के उपयोग में होने वाली उल्लेखनीय वृद्धि भी आत्महत्या में प्रमुख भूमिका अदा कर रही है। इसके लिए सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों को मिलकर कदम उठाने होंगे। युवाओं को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि वे जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका वैकल्पिक और उचित समाधान मौजूद है। अगर इस प्रकार समस्याओं से परेशान युवाओं से लगातार बातचीत की जाए और उन्हें अच्छी प्रकार समझाया जाए तो आत्महत्या जैसे बड़े संकट से उन्हें बचाया जा सकता है।

युवाओं को आत्महत्या से बचाने के लिए उनकी मानसिक परेशानियों की शीघ्र पहचान करनी होगी और अनुकूल वातावरण में उनकी देखभाल के समुचित प्रावधान होने चाहिए। इस प्रवृत्ति को रोकने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाना और उन्हें सस्ती दर पर उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाकर परीक्षाओं में सफलता के दबाव को कम करना और विद्यार्थियों में आत्मविश्वास बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। नशे से ग्रस्त युवाओं के लिए नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए और उन्हें उपचार प्रदान करना चाहिए। युवाओं का जीवन अमूल्य है और उनके पास देश को देने के ​ लिए बहुत कुछ है। युवाओं को आत्महत्या से रोकने को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाई जानी चाहिए। सरकार और सामाजिक प्रयासों से ही युवाओं में नई उम्मीदें जगाई जा सकती हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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