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भारत और आस-पड़ोस

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09:13 AM Nov 20, 2018 IST | Desk Team

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मालदीव के नए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होकर दक्षिण एशिया में समीकरण बदलने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री मोदी का केवल चार घण्टे का दौरा इसलिए भी अहम है, क्योंकि मालदीव पिछले पांच वर्षों से चीन के प्रभाव में ज्यादा रहा है। इसका असर भारत-मालदीव के सम्बन्धों पर भी पड़ा था। सितम्बर 2018 के चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन को हरा दिया था। मालदीव में हालिया चुनाव लोकतंत्र, कानून व्यवस्था आैर समृद्ध भविष्य के लिए लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि हम एक स्थिर लोकतांत्रिक, समृद्ध और शांतिपूर्ण गणतंत्र देखना चाहते हैं। भारत ने मालदीव के साथ काम करने की इच्छा को दोहरा दिया है। मालदीव के नए राष्ट्रपति ने भी ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति अपनाने की मंशा स्पष्ट कर दी है। भारत ने हमेशा पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते को प्राथमिकता दी है। भारत के पड़ोसी देशों में लोकतंत्र हो, यह अच्छी बात है।

इब्राहिम सोलिह ने शपथ लेने के बाद साफ कहा कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र में चीन से मिले भारी-भरकम कर्ज के बाद सरकारी खजाने की जमकर लूट हुई है। इससे देश के सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया है। महज 4 लाख की आबादी वाला देश भारी कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। अब नई सरकार इस बात की जांच करेगी कि पिछली सरकार के समय कामकाज के ठेके चीन की कम्पनियों को कैसे मिले। उन्होंने कर्ज से उबरने के लिए भारत-अमेरिका से मदद मांगी। भारत ने हरसम्भव मदद का आश्वासन भी दे दिया। कूटनीतिक द​​ृष्टि से देखें तो चीन ने मालदीव की मदद से हिन्द महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी थीं। मालदीव सुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील है और भारत के लिए मालदीव काफी अहम है। पूर्ववर्ती सरकार ने भारतीय कम्पनियों को हतोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब भारत आैर मालदीव के बीच नए आर्थिक सहयोग समझौते होंगे और दोनों देश फिर से घनिष्ठ दोस्त बन जाएंगे।

भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में स्थिति काफी विकट है। मालदीव की ही तरह वह भी चीन के जाल में फंसा हुआ है। वहां राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना का प्रधानमंत्री रानिले विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर म​िहन्दा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा के बाद उनका हर दाव उलटा पड़ा है। श्रीलंका सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ फैसला दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के संसद भंग करने के आदेश पर रोक लगा दी है। संसद ने भी दोबारा मतदान कर म​िहन्दा राजपक्षे को नकार दिया है। अब विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति से अपनी सरकार बहाल करने की मांग की है। सिरीसेना भारी दबाव में हैं। उन्होंने संघर्ष की स्थिति को समाप्त करने तथा संसद को सामान्य रूप से चलने देने के लिए बैठक बुलाई थी लेकिन बैठक विफल हो गई। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते सिरीसेना ने जिस तरह चीन समर्थक म​िहन्दा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने की साजिश रची, उससे श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो चुकी है। श्रीलंका की मौजूदा संसद का कार्यकाल पूरा होने में अभी 20 माह बाकी हैं। देखना है कि श्रीलंका में किसकी सरकार बनती है। भारत के दुश्मन पड़ोसी पाकिस्तान की हालत पर भी नजर डालें तो वह भी विकट आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। अमेरिकी सहायता बन्द होने से पाकिस्तान कंगाली के कगार पर है और चीन के आगे झोली फैलाकर मदद की भीख मांग रहा है। चीन उसे कर्ज देकर अपने जाल में फंसा चुका है।

पाकिस्तान में लोकतंत्र हमेशा आधा-अधूरा रहा है। वहां का लोकतंत्र सेना के जूतों के नीचे दबा हुआ है। इमरान खान केवल कठपुतली प्रधानमंत्री हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो पाकिस्तान एक दिन चीन का गुलाम बन जाएगा। चीन की योजना पाकिस्तान में एक शहर बसाने की है जहां 10 लाख चीनियों को बसाया जाएगा और वहां मुद्रा भी चीन की ही चलेगी। अगर पाकिस्तान का अवाम असली लोकतंत्र में जीता तो हालात कुछ आैर होते। आतंकवाद के प्रसार पर पाकिस्तान इतना धन खर्च करता आया है कि देश में गरीबी आैर रोजगार की तरफ कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। कभी अमेरिका का पालू बनकर काम चलाया और अब वह चीन का पालू बन गया है। भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध तब तक सुधर नहीं सकते जब तक पाकिस्तान में असली लोकतंत्र न आ जाए। वहां ऐसा हाेगा नहीं क्योंकि वहां के हुक्मरानों की मानसिकता ही भारत विरोधी है आैर राजनीति का केन्द्रबिन्दु ही भारत विरोध है।

जिन-जिन देशों में लोकतंत्र है, उनसे भारत के सम्बन्ध काफी मधुर हैं। नेपाल भी काफी हद तक भारत से संतुलन बनाकर चल रहा है। यह अलग बात है कि चीन अपनी चालों से भारत की परेशानियां बढ़ा रहा है। भारत के पड़ोसी देश एक न एक दिन चीन के जाल में मुक्त होना चाहेंगे क्योंकि चीन केवल लाभ के लिए ही निवेश करता है और कर्ज देता है। मलेशिया में महातिर मोहम्मद के फिर से सत्ता में आने के बाद उन्होंने दो बड़ी चीनी परियोजनाओं को रोक दिया है। मलेशिया भी चीन के जाल से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा है। मलेशिया से भी भारत के सम्बन्ध काफी मधुर हैं क्योंकि वहां भी लोकतंत्र है। भारत के लोकतांत्रिक देशों से सम्बन्ध ही सुरक्षा की दृष्टि से अहम हैं। देखना होगा कि अब आगे किस राह पर बढ़ना है।

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