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भारत और नार्डिक देश

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में नार्डिक देशों के साथ दूसरे भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

05:36 AM May 06, 2022 IST | Aditya Chopra

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में नार्डिक देशों के साथ दूसरे भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में नार्डिक देशों के साथ दूसरे भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री ने डेनमार्क,  आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन और नार्वे के प्रधानमंत्रियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की। नरेन्द्र मोदी 2018 में भी स्वीडन में आयोजित नार्डिक सम्मेलन में भाग ले चुके हैं। नार्डिक देश दुनिया के सबसे समृद्ध देश माने जाते हैं। इन देशों में जीवन की गुणवत्ता सबसे ज्यादा है और यहां की परिवहन और स्वास्थ्य सेवाएं सर्वश्रेष्ठ हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत का ध्यान इन देशों की तरफ गया है। इस बार का नार्डिक सम्मेलन मुख्य रूप से महामारी के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा और वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य पर केन्द्रित रहा। भारत का उद्देश्य नार्डिक क्षेत्र के साथ उभरती प्रौद्योगिकियों, निवेश, स्वच्छ ऊर्जा, आर्कटिक अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में बहुआयामी सहयोग को बढ़ावा देना है। यह सभी देश भारत में नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटलाइजेशन और इनोवेशन में महत्वपूर्ण भागीदार हैं। स्वीडिश प्रधानमंत्री के साथ बातचीत में फोक्स क्लीन टैक्नोलोजी और जलवायु परिवर्तन पर रहा। नार्डिक क्षेत्र उत्तरी यूरोप और उत्तरी अटलांटिक में एक भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। इसमें डेनमार्क, फिनलैंड, नार्वे, आइलैंड और स्वीडन संप्रभु राज्य हैं। फरो आइलैंड्स और ग्रीनलैंड के स्वायत क्षेत्र हैं। नार्डिक देशों में उनके जीवन, इतिहास, धर्म और सामाजिक संरचना के तरीके में बहुत सफलता है। उनके पास राजनीतिक संघों और अन्य घनिष्ठ संबंधों का एक लम्बा इतिहास है।
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स्कैंडिनेविस्ट आंदोलन ने 19वीं शताब्दी में डेनमार्क, नार्वे और स्वीडन को एकजुट करने की मांग की थी। नार्वे और स्वीडन के बीच संघ के विघटन के साथ 20वीं शताब्दी की शुरूआत में फिनलैंड की स्वतंत्रता और 1944 में आइसलैंडिक संवैधानिक जरूरत संग्रह हुआ। इस आंदोलन का विस्तार आधुनिक संगठित नोर्डिक सहयोग से हुआ। 
1962 से यह सहयोग हेलसिंकी संधि पर आधारित है। नार्डिक देशों में अपार व्यापार क्षमता है और भारत के समान मूल्य भी हैं जैसे कि अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता, मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था और  लैंगिंग समानता को बढ़ावा देना। भारत स्वच्छ ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी, शिक्षा और नई प्रौद्योगिकी को लेकर इन देशों से बहुत कुछ सीख सकता है। नार्डिक देशों की कुल मिलाकर 1.6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था है। भारत और नार्डिक देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब डालर का है। भारत अब तीसरी बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था है और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था भी इसे नार्डिक निवेश के लिए एक आकर्षक गन्तव्य बनाती है। 
नार्डिक देशों का भारत के साथ व्यापार भी बढ़ा है और साथ ही इन देशों में भारतीय प्रवासी भी बढ़े हैं। फिनलैंड और नार्वे रूस के साथ बार्डर साझा करते हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी इन दोनों देशों का मास्कों से तनाव बना हुआ है। यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि भारत को नार्डिक देशों से क्या हासिल होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नार्डिक देशों के प्रधानमंत्रियों के साथ हरित अर्थव्यवस्था, हरित ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों को विकसित करना और आपसी व्यापार को बढ़ाने तथा पर्यावरण सुरक्षित रखने पर बातचीत हुई। इसके अलावा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, मछली पालन, जल प्रबंधन, अंतरिक्ष में सहयोग और वैक्सीन के विकास के लिए साझा रिसर्च कार्यक्रम पर बात हुई। प्रधानमंत्री की बैठकों का सारांश यह रहा कि प्रधानमंत्री मोदी का यूरोप दौरा आर्थिक नजरिये से जितना महत्वपूर्ण है पर्यावरण और जलवायु को लेकर भी बेहद अहम रहा है।
हमारे देश की राजधानी दिल्ली और अधिकतर बड़े शहर प्रदूषण की चपेट में हैं और इससे सीधे तौर पर करोड़ों लोग प्रभावित हैं। हमें इन देशों के सहयोग से प्रदूषण नियंत्रण के उपाय करने हैं। डेनमार्क हैप्पी इंडैक्स में दूसरे नम्बर पर है।  यहां के लोग बहुत खुश रहते हैं। आज जबकि दुनिया के ज्यादातर देशों के लोग तमाम तरह की तकलीफों और परेशानियों का सामना कर रहे हैं। वहीं डेनमार्क के लोगों के जीवन में दुखों के बादल नहीं के बराबर हैं। वर्ल्ड हैप्पीनैस इंडैक्स में भारत का स्थान 36वें नम्बर पर है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डेनमार्क ने खुद को कितना बदला है। हमें इन देशों से बहुत कुछ हासिल करना है। ऊर्जा के क्षेत्र में हमें क्रांति लाने के लिए बहुत लम्बा सफर तय करना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे से भारत और  नार्डिक देश काफी करीब आए हैं और भविष्य में यह दोस्ती और प्रवान चढ़ेगी। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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