भारत और यूरोपीय संघ
भारत और यूरोपीय संघ के बीच संबंध बहुआयामी हैं। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा…
भारत और यूरोपीय संघ के बीच संबंध बहुआयामी हैं। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 1990 के दशक में जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियां शुरू की तभी यूरोपीय संघ ने अपनी सदस्यता का विस्तार किया। 1994 में भारत और यूरोपीय संघ ने समझौता किया जिसने उनकी रणनीतिक साझेदारी के आधार के रूप में कार्य किया। सन् 2000 में भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन संबंधों के विकास में महत्वपूर्ण मोड़ सािबत हुआ। बाद में दोनों पक्षों ने विदेश नीति, रक्षा और सुरक्षा पर वार्ता शुरू की जिससे उनके सहयोग को और गहरा करने में मदद मिली। यूरोपीय संघ यूरोप में स्थित 27 देशों का एक राजनीतिक और आर्थिक संघ है और इसका मुख्य लक्ष्य यूरोप में आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता बढ़ाने के लिए अपने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। इसकी अपनी मुद्रा यूरो है जिसका उपयोग 19 सदस्य देश करते हैं। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने नई दिल्ली दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। दोनों में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को आखिरी रूप देने के लिए प्रतिबद्धता जताई।
दोनों पक्षों के बीच बनी यह सहमति वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े व्यापार समझौते में से एक है। 17 साल से भी ज्यादा समय में भारत-ईयू एफटीए जटिल वार्ताओं का विषय रहा है। बातचीत 2007 में शुरू हुई थी लेकिन इसमें कई चुनौतियां सामने आई। इसमें खासकर टैरिफ मुद्दे, बाजार पहुंच और रेगुलेशन बाधा बने। लेयेन और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात ऐसे वक्त हुई जब भारत और यूूरोपीय संघ दोनों ही अमेरिका से टैरिफ लगाने की धमकियों का सामना करने की तैयारियां कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में दोनों ने ही अपने वार्ताकारों को 2025 के अंत तक भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को पूरा करने का कार्य सौंपा है।
यह ऐसे समय में हुआ है जब विश्व के नेता राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित संभावित अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए निर्यात में विविधता लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ट्रम्प ने टैरिफ पर भारत के लिए कोई राहत नहीं देने का संकेत दिया है लेकिन उन्होंने यूरोपीय संघ पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा की है। यही वह पृष्ठभूमि थी जिसके तहत मोदी और वॉन डेर लेयेन ने भारत-यूरोपीय संघ साझेदारी के महत्व को रेखांकित किया। समझौते को लेकर वॉन डेर लेयेन ने घोषणा की कि यूरोपीय संघ भारत के साथ रक्षा और सुरक्षा समझौता करने पर विचार कर रहा है जो जापान और दक्षिण कोरिया के साथ यूरोपीय संघ के समान समझौतों के समान है। मोदी ने इस डेवलपमेंट का स्वागत किया और इस बात पर जोर दिया कि हाल के वर्षों में रक्षा और सुरक्षा में भारत-यूरोपीय संघ का सहयोग काफी बढ़ा है। यह साझेदारी हमारे आपसी विश्वास का प्रतीक है। उन्होंने साइबर सेफ्टी, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी क्षेत्रों को आगे के सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों के रूप में उजागर किया।
यूरोपीय संघ पहले से ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका दोतरफा व्यापार 2023-24 में 137 बिलियन डॉलर से अधिक है। अकेले पिछले दशक में 2014 से भारत-यूरोपीय संघ व्यापार में 90 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है लेकिन जब भी भारत-यूरोपीय संघ के बीच व्यापक समझौते की कोशिश की गई तो इसमें बाधाएं ही आईं। भारत की ओर से नई दिल्ली कुछ उद्योगों में टैरिफ कम करने के पक्ष में नहीं है, जबकि यूरोपीय संघ के लिए वह यूरोप में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों को रोकने के लिए वर्तमान में लागू वीजा प्रतिबंधों को कम करने के लिए तैयार नहीं है। जहां यूरोप चाहता है कि कारों और बाइकों के साथ-साथ व्हिस्की और वाइन के आयात पर टैरिफ में कटौती की जाए, वहीं भारत चाहता है कि यूरोप भारतीय फार्मा कंपनियों की पूरे यूरोप में लागत प्रभावी दवाओं और रसायनों की आपूर्ति के लिए अधिक पहुंच प्रदान करे। भारत यह भी चाहता है कि यूरोप कपड़ा, परिधान, चमड़े के उत्पादों पर आयात शुल्क कम करे। नई दिल्ली ने सीमेंट, स्टील और एल्युमीनियम जैसे औद्योगिक सामानों पर लगाए गए 20-35 प्रतिशत कार्बन टैक्स को भी खारिज कर दिया है।
लेयेन और प्रधानमंत्री मोदी में भारत-मध्यपूर्व यूरोप गलियारे पर भी चर्चा हुई। इस परियोजना के माध्यम से भारत समुद्र, रेल और सड़क के जरिए पश्चिम एशिया के माध्यम से पूरे यूरोप से जुड़ जाएगा। भारत और यूरोपीय संघ में एफटीए होता है तो यह सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा। इससे व्यापार बढ़ेगा तब डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ की कोई टैंशन नहीं रहेगी। भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा योजना एक स्वर्णिम मार्ग हो सकता है। इससे भारत और यूरोप के बीच व्यापार 40 फीसदी बढ़ेगा। यूरोपीय संघ के कई देश भारत में निवेश करने को तैयार हैं। उम्मीद है कि दोनों के वार्ताकार टैरिफ मुद्दों को सुलझा लेंगे और मुक्त व्यापार समझौता हो जाएगा। व्यापार के अलावा दोनों ही सैमी कंडक्टर, एआई, हाई परफॉर्मेंस कम्यूटिंग और 6जी में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। जिस तरह से भू-राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं, नए समीकरण बन रहे हैं। उसे देखते हुए भी भारत और यूरोपीय संघ में सहयोग समय की जरूरत है।