चलता-फिरता मौत का सफर..., द बर्निंग बस
भारत में स्लीपर बसें लंबे समय से "आरामदायक सफर" का प्रतीक मानी जाती रही हैं। रात में सोते-सोते मंज़िल तक पहुंच जाने का सपना... लेकिन हकीकत इससे कहीं ज़्यादा डरावनी है। देश में बीते दो सप्ताह में तीन बड़े बस हादसे में करीब 50 यात्रियों की जल जाने से मौत हो गई। इसमें भी अधिकांश यात्री सफर के दौरान नींद में थे। आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही 46 यात्रियों वाली एक "लग्जरी" बस की दुर्घटना ऐसी ही पिछली त्रासदियों की तरह थी। यह दुर्घटना स्पष्ट रूप से ईंधन रिसाव के कारण हुई थी, जब बस ने एक बाइक को टक्कर मार दी थी, जो पहले एक हिट-एंड-रन घटना में ज़मीन पर गिर गई थी। इस दुर्घटना में बाइक सवार सहित 20 लोगों की जान चली गई। बचे लोग बमुश्किल टूटी खिड़कियों से बच पाए। लगभग 10 दिन पहले, जैसलमेर से जोधपुर जा रही 57 यात्रियों वाली एक वातानुकूलित बस में आग लगने से 20 लोग ज़िंदा जल गए थे। वहीं मध्य प्रदेश के अशोक नगर में रात सवारियों को लेकर इंदौर जा रही एक स्लीपर बस में आग लग गई, हालांकि सभी यात्री बच गए। इतना ही नहीं कुछ बड़े देश स्लीपर बसों को अपने यहां बैन कर चुके हैं, वे बसें भारत में लग्जरी सफर की पहचान बन गई हैं लेकिन एक बार बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर क्या स्लीपर बस सुरक्षित हैं या नहीं। जर्मनी में कई बड़ी दुर्घटनाओं की वजह से 2006 में स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बताया जाता है कि 2000 के दशक में जर्मनी में यह बसें काफी लोकप्रिय हो गईं थीं। इन बसों की ऊंची बनावट के कारण इनके पलटने का खतरा भी अधिक था। साथ ही सोते समय यात्रियों के बेल्ट नहीं बांधने से हादसा होने पर उछलकर गिरने से उनकी मौत हो जाती थी।
चीन ने 2012 में कई भीषण आग और सड़क हादसों के बाद 2012 में जाकर नई स्लीपर बसों के निर्माण और रजिस्ट्रेशन पर प्रतिबंध लगा दिया था और 2018 में सभी पुरानी स्लीपर बसें हटा दीं। चीन में रेल नेटवर्क की कमी के कारण 1990 के दशक के दौरान स्लीपर बसों की शुरूआत हुई। चीन में 2009 से 2012 के दौरान 13 हादसों में 252 लोगों की मौत ने हिलाकर रख दिया। इसके बाद गाइडलाइन कड़ी की गईं लेकिन उसका लाभ नहीं मिला। फलस्वरूप डिजाइन की कमी, लंबे सफर में ड्राइवर को आराम न मिलने, ओवरलोडिंग और सीटों के बीच कम जगह के कारण इसे प्रतिबंधित कर दिया गया।
वियतनाम में सुरक्षा कारणों से स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगाया है। इंग्लैंड में सुरक्षा मानकों और आपातकालीन निकासी की चुनौतियों के कारण इन पर प्रतिबंध है।
भारत हर हादसे के बाद पोस्टमॉर्टम करता है-रोकथाम नहीं। सिस्टम की कमज़ोरी: 78% बसें प्राइवेट हाथों में है। भारत में करीब 16 लाख बसें चलती हैं, जिनमें से 78% छोटे प्राइवेट ऑपरेटर चलाते हैं, कई के पास पांच से भी कम बसें हैं। ऐसे में सुरक्षा की मॉनिटरिंग लगभग असंभव है। कम पब्लिक ट्रांसपोर्ट और बढ़ते मुनाफाखोर ऑपरेटरों ने हालात को और खतरनाक बना दिया है। यात्रियों की जान दांव पर लगाकर अवैध वायरिंग, ओवरलोडिंग और बिना सर्टिफिकेशन वाली बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं। आमतौर पर इनमें से ज़्यादातर बसों पर जाने-माने ब्रांड के नाम होते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इन ओईएम से केवल इंजन और चेसिस ही खरीदे जाते हैं। फिर चेसिस को बॉडी-बिल्डिंग की दुकानों में एक पूरी बस में बदल दिया जाता है। हालांकि, अक्सर उन्नत होते इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल और एयर-कंडीशनिंग सिस्टम में बिजली से आग लगने का खतरा होता है, फिर भी इन प्रणालियों को डिज़ाइन और इंस्टॉल करते समय आमतौर पर कड़े सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है लेकिन बॉडी की स्थापना और बॉडी शॉप में किए गए संशोधनों में जो सख्ती नहीं बरती जाती, वह है। सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा विकसित ऑटोमोटिव उद्योग मानक (एआईएस) बॉडी के लिए संरचनात्मक और अग्नि सुरक्षा आवश्यकताओं को भी निर्धारित करते हैं लेकिन इनका पालन शायद ही कभी किया जाता है। अक्सर, बॉडी घटिया गुणवत्ता वाली मिश्रित सामग्री से बनी होती है जो अत्यधिक ज्वलनशील होती है। क्रैश टेस्टिंग शायद ही कभी होती है। बॉडी शॉप में कभी-कभी अतिरिक्त ईंधन टैंक लगाने जैसे असुरक्षित संशोधन किए जाते हैं। बस में स्लीपर की व्यवस्था यात्रियों की आवाजाही को बाधित करती है। पर्दे और अन्य बैरिकेट्स के लिए नरम, अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग किया जाता है। हाल के नियमों में निर्दिष्ट किया गया है कि ऐसी बसों में चार निकास होने चाहिए (दो मुख्य द्वार और दो सिमटने वाली खिड़कियां) जिनमें कोई सीट या स्लीपर बाधा न बने लेकिन ये मौजूदा बसों के बेड़े पर लागू नहीं होते। ड्राइवरों को अक्सर आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। यह अनिवार्य करने से सुरक्षा बढ़ेगी कि आपातकालीन निकास व्यवस्था यात्रियों को समझा दी जाए क्योंकि वे उड़ान में हैं। टक्करों के दौरान सुरक्षा बढ़ाने के लिए पूरी बस असेंबली का क्रैश परीक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए। हालांकि वर्तमान मानक अग्नि पहचान और सुरक्षा प्रणालियों को अनिवार्य करते हैं जो आग लगने पर चेतावनियां देंगी और उसके बाद अग्निशमन उपकरणों को सक्रिय करेंगी, इनका बॉडी शॉप में शायद ही कभी पालन किया जाता है। जरूरत एक अधिक व्यापक एआईएस की है जो स्लीपर बसों में जोखिमों को ध्यान में रखे अगर चीन और वियतनाम जैसे देश ऐसे डिज़ाइन को बैन कर सकते हैं तो भारत क्यों नहीं?जरूरत है कि अब इस पूरे सिस्टम को झकझोरा जाए। केवल हादसों पर दुख जताने या जांच बिठाने से काम नहीं चलेगा। स्लीपर बसों की सुरक्षा के लिए अब ठोस कदम उठाने होंगे ।
 
 