Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

भारत-चीन-रूस त्रिकोण

भारत और चीन के संबंध इस समय पूूरी दुनिया के लिए चर्चा का गर्मागर्म विषय है। दोनों देशों में पूूर्वी लद्दाख में लम्बे समय से गतिरोध बना हुआ है।

04:19 AM Aug 20, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत और चीन के संबंध इस समय पूूरी दुनिया के लिए चर्चा का गर्मागर्म विषय है। दोनों देशों में पूूर्वी लद्दाख में लम्बे समय से गतिरोध बना हुआ है।

भारत और चीन के संबंध इस समय पूूरी दुनिया के लिए चर्चा का गर्मागर्म विषय है। दोनों देशों में पूूर्वी लद्दाख में लम्बे समय से गतिरोध बना हुआ है। दोनों पक्षों ने 5 मई, 2020 को उपजी गतिरोध की स्थिति के समाधान के लिए अब तक 16 दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता हो चुकी है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा है कि चीन ने सीमा पर जो किया है, उसके बाद भारत और उसके संबंध अत्यंत मुश्किल दौर में हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर दोनों पड़ोसी देश हाथ नहीं मिलाते तो एशियाई शताब्दी नहीं आएगी। विदेश मंत्री ने साफ कहा कि अगर भारत-चीन को साथ आना है तो इसके कई कारण है। दोनों का हाथ मिलाना हम दोनों के हित में है। भारत ने लगातार कोशिश की है कि दोनों देश ‘बीती ताहि बिसार दें’ और संबंधों को मजबूत बनाएं लेकिन चीन हर बार अड़गा डाल देता है। सकारात्मक बात यह रही कि दोनों देश सीमा पर गतिरोध को लेकर वार्ता जारी रखने पर सहमत हैं। तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। भारत अभी भी चीन से सबसे अधिक चीजें आयात करता है। वर्ष 2021-22 में भारत ने चीन से 94.2 अरब डालर का आयात किया, जो कि भारत के कुल वार्षिक आयात का 5 फीसदी रहा है। जबकि भारत से चीन को होने वाला निर्यात तुलनात्मक रूप से काफी कम है।
Advertisement
गतिरोध के बीच भारत और चीन की सेनाएं एक साथ युद्धाभ्यास में शामिल होने वाली हैं। वोस्तोक नाम का यह युद्धाभ्यास रूस में आयोजित किया जा रहा है। इसमें बेलारूस, मंगोलिया, ताजिकिस्तान की सेनाएं भी भाग ले रही हैं। चीन के रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि इस संयुक्त अभ्यास में चीन की भागीदारी रूस के साथ चल रहे द्विपक्षीय सहयोग समझौते का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भाग लेने वाले देशों की सेनाओं के साथ व्यावहारिक और मैत्रीपूर्ण सहयोग को गहरा करना है। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद चीन के रूस से संबंध काफी मजबूत हुए हैं।
इसी वर्ष फरवरी में चीन और रूस ने ‘नोलिमिट’ पार्टनरशिप की घोषणा की है। यह भी सर्वविदित है कि रूस भारत का अभिन्न मित्र है। यूक्रेन पर हमले के बाद अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत ने रूस के खिलाफ बयान देने से दूरी बनाई है। अब सवाल यह है कि क्या भारत और चीन कोई नई राह पकड़ सकते हैं। दुनिया की नजर में जहां तक हार्डवेयर का प्रश्न है चीन ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। जहां तक साफ्टवेयर की बात है भारत की प्रगति से दुनिया का कोई देश मुकाबला नहीं कर सकता। भारत-चीन संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर दोनों देश करीब आ जाएं तो दोनों देश मिलकर काम करें तो दुनिया की कोई ताकत इनका मुकाबला नहीं कर सकती। अगर भारत, चीन और रूस का त्रिकोण बन जाए और तीनों देश आपसी सहयोग को आर्थिक से लेकर सामरिक क्षेत्र में मजबूत कर लें तो फिर कोई भी इनका सानी नहीं होगा। 
आज जिस प्रकार आर्थिक वैश्वीकरण ने दुनिया का स्वरूप बदल दिया है उसमें इन तीन देशों की भूमिका सबसे ऊपर हो गई है, क्योंकि दुनिया की आधी से अधिक आबादी इन तीन देशों में रहती है और आर्थिक सम्पन्नता के लिए इनके बाजार शेष दुनिया की सम्पन्नता के लिए आवश्यक शर्त बन चुके हैं। मगर अपने आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए सामरिक सहयोग की जरूरत को झुठलाया नहीं जा सकता। यही वजह थी कि भारत ने बंगलादेश युद्ध के बाद रूस से सामरिक संधि की थी और भारत का सर्वाधिक कारोबार भी रूस से ही होता था। भारत और चीन में कटुता का कारण 1962 का युद्ध ही है। वैसे गौर से देखा जाए तो दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक हित आपस में जुड़े हुए हैं। संबंधों के पुख्ता होने की पहली शर्त यही होती है कि उनकी सीमाएं गोलियों की दनदनाहट की जगह मिलिट्री बैंड की धुनों से गूंजे। चीन को भी संबंधों को पुख्ता बनाने के लिए पूर्वी  लद्दाख में गतिरोध को दूर करना होगा और अपनी सेनाओं को पीछे हटाना होगा। भारत चीन से गतिरोध दूर करने के लिए अपने मित्र रूस की मदद ले सकता है। समस्या यह है कि चीन की​ विस्तारवादी नीतियां संबंधों में आड़े आ जाती हैं। 
यह बात सच है कि किसी भी संवेदनशील मुल्क को अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए परन्तु यह बात भी उतनी ही सत्य है कि युग के साथ-साथ युग का धर्म भी बदल जाता है। भारत हमेशा 1962 के युद्ध के प्रेत से ग्रस्त रहा है। भारत अब 1962 वाला भारत नहीं रहा। अब वह काफी शक्तिशाली देश बन चुका है। गलवान से लेरपैगोंग घाटी तक चीन को पहली बार भारत के जिस कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है उसकी तो उसने कल्पना भी नहीं की होगी। कूटनीति के मर्मज्ञ विद्वान मानते हैं कि ​विश्व में अमेरिका की सामरिक भूमिका दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत, चीन और रूस का एक साथ आना विश्व शांति के हित में है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article