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भारत-यूरोप कॉरिडोर

दिल्ली में सम्पन्न हुए जी-20 सम्मेलन ने दुनिया में भारत की भागीदारी के कई द्वार खोल दिए। सम्मेलन में इंडिया-मीडिल ईस्ट, यूरोप, इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की गई।

01:00 AM Sep 14, 2023 IST | Aditya Chopra

दिल्ली में सम्पन्न हुए जी-20 सम्मेलन ने दुनिया में भारत की भागीदारी के कई द्वार खोल दिए। सम्मेलन में इंडिया-मीडिल ईस्ट, यूरोप, इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की गई।

दिल्ली में सम्पन्न हुए जी-20 सम्मेलन ने दुनिया में भारत की भागीदारी के कई द्वार खोल दिए। सम्मेलन में इंडिया-मीडिल ईस्ट, यूरोप, इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की गई। भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय यूनियन सहित कुल आठ देशों ने इस पर अपनी सहमति जताई है। यह कॉरिडोर मुम्बई से शुरू होगा और यह 6000 किलोमीटर लम्बा होगा तथा इसमें 3500 किलोमीटर समुद्री मार्ग शामिल है। भारत और अमेरिका इस संबंध में पहले भारत प्रशांत क्षेत्र में काम कर रहे थे लेकिन पहली बार दो मिडिल ईस्ट देश इस प्रोजैक्ट में भागीदार बने हैं। कॉरिडोर बनाने का विचार बेहतर है। अगर कॉरिडोर बन जाता है तो भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40 प्रतिशत समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं। इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा।
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इतिहास में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो अपने अस्तित्व और महत्व के कारण ख्याति अर्जित कर लेती हैं। इनमें से एक है सिल्क रूट या रेेशम मार्ग। सिल्क रूट एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाले प्राचीन व्यापार मार्गों का एक नेटवर्क था। सिल्क रूट के जरिये ही प्राचीन रोमन काल में चीन पश्चिमी देशों के साथ व्यापार करता था और इसी मार्ग के जरिये पहली बार रेशम यूरोप पहुंचा था। व्यापार की अहमियत प्राचीन काल में भी थी और आज के दौर में भी है।
ऐसा कहा जाता है कि जो क्षेत्र वर्तमान में केरल है, उसका तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से अन्य प्राचीन सभ्यताओं के साथ व्यापारिक संबंध रहा है। इनमें प्रमुख रूप से अरब, रोमन जो मिस्र से व्यापार करते थे, यूनानी और यहां तक कि चीनी भी शामिल थे। मालाबार बंदरगाहों से आने वाली वस्तुएं केवल मसालों तक ही सीमित नहीं थीं । हाथी दांत, मोती, सागौन और शीशम कुछ अन्य उत्पाद थे जिनका व्यापार किया जाता था। चंदन एक और अच्छा व्यापार था। लेखक आर. बोसवर्थ स्मिथ ने अपनी पुस्तक रोम एंड कार्थेज, द प्यूनिक वॉर्स में विचार व्यक्त किया है कि मालाबार तटों से प्राप्त चंदन का उपयोग कार्थेज शहर के द्वार बनाने के लिए किया गया था। बेबीलोन के राजा नबूकदनाजर का छठी शताब्दी ईसा पूर्व का महल और मुघिएर का चंद्रमा मंदिर दो ऐसे स्थान थे जहां यह दावा किया जाता है कि मालाबार सागोन का उपयोग किया गया था। ऐसे शोधकर्ता भी हैं जो बाइबिल के राजा सोलोमन को भारत के पश्चिमी तट, विशेषकर मालाबार के साथ व्यापक व्यापार से जोड़ते हैं। ध्यान दें कि यहां मालाबार उस क्षेत्र से अधिक दर्शाता है जिसे हम अभी जानते हैं। 
मालाबार शब्द अधिकतर यात्रियों द्वारा केरल को सूचित करने के लिए प्रयोग किया जाता था।
अब भारत-यूरोप कॉरिडोर बनाने के समझौते को जी-20 के नेता ऐतिहासिक बता रहे हैं। इस परियोजना के तहत मध्य पूर्व में स्थित देशों को एक रेल नेटवर्क से जोड़ा जाएगा, जिसके बाद उन्हें भारत से एक शिपिंग रूट के माध्यम से जोड़ा जाएगा। इसके बाद इस नेटवर्क को यूरोप से जोड़ा जाएगा। यह परियोजना वैश्विक व्यापार के लिए एक नया शिपिंग रूट उपलब्ध करा सकता है क्योंकि फिलहाल भारत या इसके आसपास मौजूद देशों से निकलने वाला माल स्वेज नहर से होते हुए भूमध्य सागर पहुंचता है। इसके बाद वह यूरोपीय देशों तक पहुंचता है। इसके साथ ही अमेरिकी महाद्वीप में स्थित देशों तक जाने वाला माल भूमध्य सागर से होते हुए अटलांटिक महासागर में प्रवेश करता है जिसके बाद वह अमेरिका, कनाडा या लैटिन अमेरिकी देशों तक पहुंचता है। यूरोशिया ग्रुप के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ प्रमीत पाल चौधरी कहते हैं, “फिलहाल, मुंबई से जो कंटेनर यूरोप के लिए निकलते हैं, वे स्वेज़ नहर से होते हुए यूरोप पहुंचते हैं। भविष्य में ये कंटेनर दुबई से इस्राइल में स्थित हाइफ़ा बंदरगाह तक ट्रेन से जा सकते हैं। इसके बाद काफी समय और पैसा बचाते हुए यूरोप पहुंच सकते हैं। इस नए मार्ग से भारत को मध्य एशिया से जमीनी सम्पर्क की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। नए कॉरिडोर को चीन की बेल्ट एंड रोड प्रोजैक्ट का जवाब माना जा रहा है। चीन कई वर्षों से छोटे-छोटे देेेशों को कर्जजाल में फंसा कर बी एंड आर परियोजना पर काम कर रहा है लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली। भारत पहले ही चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के ​लिए मसाला रूट पर काम कर रहा था। इस मसाला रूट के चलते भारत, इस्राइल, दुबई और अबुधाबी से सहयोग बढ़ा रहा था। इसी मसाला मार्ग के जरिये भारत के केरल के मसाले ओमान के मस्कट तक जाते थे। भारत-यूरोप कॉरिडोर का मकसद किसी एक देश या सरकार का प्रभाव दुनिया भर में फैलाना नहीं है, जैसा कि चीन कर रहा है। भारत- यूरोप कॉरिडोर अभी एक स्वप्न है, ​​विचार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस दिन यह रूट तैयार हो गया तो भारत के व्यापार पर सकारात्मक असर होगा और यह परियोजना भारत के लिए गेम चेंजर साबित होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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