भारत-जर्मनी दोस्ती
भारत और जर्मनी के बीच कूटनीतिक संबंधों की शुरूआत 73 वर्ष पहले हुई थी लेकिन सामाजिक, सांस्कृतिक स्तर पर दोनों के संबंध सदियों पुराने हैं
भारत और जर्मनी के बीच कूटनीतिक संबंधों की शुरूआत 73 वर्ष पहले हुई थी लेकिन सामाजिक, सांस्कृतिक स्तर पर दोनों के संबंध सदियों पुराने हैं। भारत में जब अंग्रेजों का शासन था तब प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के इरादे से जंगलों के वैज्ञानिक प्रबंधन की शुरूआत हुई थी और इस काम की शुरूआती जमीन तैयार करने के लिए जिस व्यक्ति को पहला भारतीय वन महानिरीक्षक नियुक्त किया गया था वो थे जर्मन के वनस्पति शास्त्री डिट्रिच ब्रैंडिस, जिन्होंने भारत के देहरादून शहर में इम्पीरियल फॉरेस्ट स्कूल की नींव रखी थी। अब यही स्कूल वन अनुसंधान संस्थान कहलाता है। लम्बे समय तक भारत और जर्मनी के संबंध ठंडे पड़े रहे लेकिन पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों ने संबंधों को लेकर अच्छा खासा ध्यान दिया। धीरे-धीरे मैत्री की मजबूत नींब पड़ती गई और दोनों देशों की सरकारों के मध्य बातचीत के माध्यम से दोनों देश ऊर्जा, दक्षता, आपसी व्यापार आैर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार सहित बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर सहमत हुए। 2019 में भारत जर्मनी की बहुपक्षवाद की गठबंधन की पहल में शािमल हो गया। भारत के साथ आर्थिक संबंध तेज हुए और भारतीय बाजार के खुलने से जर्मन निर्यात आैर विदेशी निवेश में लगातार बढ़ौतरी हुई।
अब जर्मनी यूरोप में भारत का प्राथमिक व्यापारिक भागीदार बन गया है। जर्मनी के चांसलर आेलाफ शोल्ज भारत दौरे पर हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वार्ता के दौरान कई मोर्चों पर सहयोग का ऐलान किया। वार्ता से पहले व्यवसायियों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए शोल्ज ने बहुत सारी साकारात्मक बातें कहीं। कई संधियों पर हस्ताक्षर भी हुए। जर्मनी ने भारत के कुशल प्रोफैशनल्स के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। अब जर्मनी हर साल बीस हजार की बजाय 90 हजार कुशल वर्क फोर्स को वीजा देगा। इससे आईटी, इंजीनियरिंग, हैल्थकेयर जैसे कई क्षेत्रों के भारतीय पेशेवरों को जर्मनी में काम करने का मौका मिलेगा। भारतीय कुुशल पेशेवरों काे लम्बे समय से प्रौद्योिगकी मैडिसिन और इंजीनियरिंग के सैक्टर्स में एक्सपर्ट होने के लिए जाना जाता रहा है। ये वो सैक्टर्स हैं जो जर्मनी के हाईटेक इंडस्ट्री के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जर्मनी को अब अपनी वर्क फोर्स में हायली क्वालिफाइड प्रोफेशनल्स को शामिल करने का मौका मिलेगा जिससे उसकी आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ स्किल वर्कर्स की कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी। दरअसल, जर्मन इन दिनों बूढ़ी होती आबादी की वजह से कई सारे सैक्टर्स में कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। भारत से आने वाले स्किल वर्कर्स के लिए वीजा की संख्या बढ़ाने से जर्मनी के पास अब इस कमी से निपटने का मौका है ताकि उसकी इंडस्ट्री तेजी से आगे बढ़ती रहे। भारतीय प्रोफेशनल्स के जर्मनी पहुंचने से आईटी, इंजीनियरिंग और हैल्थकेयर सैक्टर को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा जो देश को ग्लोबल इकोनॉमी में टॉप पॉजिशन पर पहुंचा सकते हैं।
जर्मन कम्पनियां लम्बे समय से चीनी बाजार पर ध्यान केन्द्रित करती आई हैं लेकिन भू-राजनीतिक तनाव के बीच अब उनके लिए भारत का महत्व बढ़ चुका है। जर्मन कम्पनियां ऑटोमोटिव, मशीनरी, कैमिकल आदि क्षेत्रों में चीन के आर्डर पर निर्भर रही हैं। हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था में आई मंदी ने इन कारोबारों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस वजह से उन्हें अपने काम करने के तरीके बदलने पड़ रहे हैं और लागत में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस बीच, चीन और पश्चिमी देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव भी बढ़ा है। इस वजह से जर्मन कम्पनियां चीन से दूरी बनाने की मांग कर रही हैं। वे चीन पर अपनी निर्भरता और तथाकथित जोखिम कम करने के साथ-साथ दूसरे देशों के साथ व्यापार बढ़ाना चाहती हैं। यही वजह है कि कई जर्मन कंपनियां एशिया-प्रशांत क्षेत्र के नए बाजारों में प्रवेश करने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि, उनका कहना है कि अलग-अलग देशों में पैठ बनाना अभी भी एक चुनौती है।
भारत को लेकर जर्मन की कम्पनियों की उम्मीदें बढ़ी हैं। जर्मन के कारोबारी अब भारत में चीन की जगह लेने के इच्छुक हैं। यद्यपि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध को लेकर भारत और जर्मन में मतभेद कायम हैं। वर्तमान भू-राजनीतिक जटिलताओं का उल्लेख करते हुए शोल्ज ने कहा कि इस युद्ध के परिणाम यूरोप की सीमाओं से बहुत दूर तक महसूस किए जाएंगे और इससे वैश्विक सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी युद्ध को लेकर चिंता व्यक्त की है। जर्मनी यह भी चाहता है िक भारत रूसी हथियारों पर बहुत ज्यादा िनर्भर न रहे। भारत ने जर्मनी से पनडुब्बियां खरीदने का सौदा िकया था। भारत आैर जर्मनी कई क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं। भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार संधि कराने के लिए जर्मनी काफी प्रयास कर रहा है आैर उम्मीद है िक कुछ ही महीनों में मुक्त व्यापार समझौता अंतिम रूप ले लेगा। दोनों देशों की दोस्ती नए मुकाम पर पहुंच गई है और वह भी ऐसे समय पर जब दुनिया तनाव आैर संघर्ष के दौर से गुजर रही है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में परिवहन की स्वतंत्रता को लेकर गम्भीर िचंताएं हैं।