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कांवड़िये और क्यूआर कोड

04:30 AM Jul 17, 2025 IST | Aditya Chopra
कांवड़िये और क्यूआर कोड
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

भारत में जितने भी धर्म हैं उन सबमें केवल हिन्दू धर्म ही एेसा धर्म है जिसमें विशाल विविधता समाई हुई है। एक तरफ जहां यह विश्व बंधुत्व को मानता है और समूची सृष्टि के कल्याण की बात करता है तो वहीं दूसरी तरफ अन्य धर्मों का भी बराबर सम्मान करता है। हिन्दुओं में सनातन धर्मावलम्बी साकार ब्रह्म की उपासना करते हैं तो दूसरे निराकार ब्रह्म के उपासक भी पाये जाते हैं। इनमें भी अलग-अलग पूजा पद्धतियां होती हैं मगर सबमें एक सिद्धान्त साझा है कि सभी भारत भूमि को पूजनीय मानते हैं। इसका मूल कारण यह है कि हिन्दू धर्म के प्रतीक व देव स्थल केवल भारतीय उप महाद्वीप के भीतर ही हैं। लगभग यही स्थिति भारत में जन्म लेने वाले अन्य धर्मों जैसे सिख, बौद्ध, जैन आदि की भी है। अपनी जन्मभूमि भारत को ही इन सभी धर्मों के निवासी स्वर्ग के समान मानते हैं। विशेषकर हिन्दू धर्म तो कहता है कि
‘‘जननी जन्म भूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी।’’
हिन्दुओं के सभी तीर्थ और वेद-पुराणों से जुड़ें पूजनीय स्थल भारतीय उपमहाद्वीप में ही हैं। हिन्दू धर्म में समय को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार साल के सभी 12 महीने कोई न कोई विशेष सन्देश देते हैं जिनका वर्णन हमें लोकोक्तियों में मिलता है और हर महीने में पड़ने वाले त्यौहारों से इसका पता चलता है। इनमें सावन के महीने की महत्ता अलग से व्याख्यायित है। हिन्दू धर्म प्रकृति के साथ किस प्रकार का सामंजस्य बैठाता है, इसका अन्दाज भी हमें सावन महीने में होने वाले उत्सवों से आसानी से होता है। सावन के महीने में ही भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करना बहुत पुण्य कमाने का काम समझा जाता है। इस महीने में पड़ने वाले त्यौहारों का वर्षा से सीधा सम्बन्ध रहता है। इस दौरान हिन्दू मतावलम्बियों का न केवल पूजा-पाठ से विशेष तारतम्य रहता है बल्कि इसका असर उनके खान-पान व पहनावे पर भी रहता है। यहां तक कि उनके काम करने के तरीके पर भी । सावन मास पूरी तरह भगवान शंकर को समर्पित रहता है। शंकर या शिव समूचे ब्रह्मांड के संहारकर्ता माने गये हैं और प्रकृति के सन्तुलक भी कहे जाते हैं।
प्रकृति को जश्न के रूप में लेने का सावन मास एक उदाहरण है। इस महीने में पड़ने वाले सारे सोमवार शंकर जी को ही समर्पित रहते हैं। इसमें वैज्ञानिकता का पुट यह है कि सावन मास मनुष्य को केवल सात्विक भोजन करने की व्यवस्था देता है। अतः इस महीने में तामसी भोजन जैसे मांस, मच्छी खाने की मनाही होती है। शाकाहारी लोगों के लिए प्रकृति अमृतफल आम जैसी वस्तुएं प्रदान करती है। सावन मास में पवित्र गंगाजल शिव जी को चढ़ाने की प्रथा हिन्दुओं में है। वर्तमान समय में हिन्दू श्रद्धालु हरिद्वार से कांवड़ भरते हैं और गंगाजल लेकर आते हैं। जिसे वह अपने-अपने स्थान के शिव मन्दिरों में चढ़ाते हैं। जाहिर है कि कांवडि़ये कहे जाने वाले शिवभक्त अपनी यात्रा के मार्ग में पूर्ण रूप से सात्विक या शाकाहारी भोजन ही लेना पसन्द करेंगे। अतः मार्ग में यदि कोई मांस-मच्छी की दुकान पड़ती है तो उसे थोड़े समय के लिए स्वयं ही बन्द रहना चाहिए। यहीं पर भारत की मूल विश्व बन्धुत्व की संस्कृति को जागृत किया जाना चाहिए। भारत का संविधान कहता है कि इसके लोगों के बीच बंधुत्व बढ़ाना सरकारों का लक्ष्य होना चाहिए। मगर बन्धुत्व केवल हिन्दुओं के त्यौहारों पर ही नहीं दिखना चाहिए, बल्कि अन्य धर्मावलम्बियों विशेषकर इस्लाम को मानने वाले मुसलमान नागरिकों के बीच भी दिखना चाहिए। बेशक भारत एक धर्म या पंथ निरपेक्ष राष्ट्र है मगर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिन्दुओं के त्यौहारों को हम साम्प्रदायिक कहने लगे और मुसलमानों के त्यौहारों को धर्म निरपेक्ष। हिन्दू धर्म किसी भी स्तर पर संकीर्णता का परिचय नहीं देता है बल्कि वह दूसरे धर्मों के साथ सहयोग करके चलने की हिदायत देता है। इसके लिए इतना कहना ही काफी है कि जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ और मुसलमानों के लिए अलग से पाकिस्तान का निर्माण हुआ तो भारत ने स्वयं को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया जबकि भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या 80 प्रतिशत से भी ज्यादा थी। इसका सीधा-सादा निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि हिन्दू स्वयं में ही धर्मनिरपेक्ष हैं। हिन्दू धर्म की धर्मनिरपेक्षता का असर इसके अनुयायियों पर न पड़े यह कैसे संभव है? सत्य तो यही रहेगा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र इसलिए है क्योंकि इसमें हिन्दुओं की बहुसंख्या है। मगर भारत संविधान से चलने वाला देश है और संविधान कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति या नागरिक को अपनी आस्था और धर्म के अनुसार जीने का हक है। चुंकि भारत का समाज बहुधर्मी है अतः सभी लोगों को आपस में बंधुता या भाईचारा बढ़ाने के सद्प्रयास करने चाहिए। इस सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के रास्ते पर पड़ने वाले खाने-पीने के ढाबों के मालिकों के लिए यह अनिवार्य किया है कि वे डि​िजटल भुगतान करने हेतु अपना क्यूआर कोड या चिन्ह दुकान के बाहर लगायें जिससे यात्रियों को उसके असली मालिक का पता लग सके। मगर कुछ लोग इसमें साम्प्रदायिकता ढूंढ रहे हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। उनकी क्यूआर कोड के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर अपना जवाब अगले मंगलवार तक दाखिल करने का आदेश दिया है।
पिछले वर्ष भी योगी सरकार ने दुकान मालिक का नाम दुकान के बाहर टांगने का निर्देश दिया था जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने रोक दिया था। मगर इस बार मामला क्यूआर कोड का है। याचिका दायर करने वाले कह रहे हैं कि योगी सरकार एेसा इसलिए कर रही है जिससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो सके। यह कहना इसलिए गलत है क्योंकि योगी सरकार कानून के अनुसार केवल यही कह रही है कि क्यूआर कोड को दुकान पर दिखाया जाये जिससे उपभोक्ता बने कांवड़ियों द्वारा नाम जानने के अधिकार का पालन हो सके क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कोई भी चीज बाजार से खरीदने वाले को यह हक देता है कि वह दुकान मालिक की पहचान करे। कांवड़िये को यह जानने का पूरा हक है कि वह जिस दुकान पर भोजन या अल्पाहार कर रहा है, वह उसके पवित्रता के मानदंडों पर खरा उतरता है कि नहीं। अतः क्यूआर कोड का प्रदर्शन करना किसी कानून के खिलाफ जाता दिखाई नहीं पड़ता।

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