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भारत शांति का पुजारी लेकिन...

इतिहास साक्षी है कि भारत ने युद्ध और हिंसा का कभी समर्थन नहीं किया है। भारत कभी हिंसा और युद्ध का पक्षधर नहीं रहा है।

01:40 AM Dec 05, 2022 IST | Aditya Chopra

इतिहास साक्षी है कि भारत ने युद्ध और हिंसा का कभी समर्थन नहीं किया है। भारत कभी हिंसा और युद्ध का पक्षधर नहीं रहा है।

भारत शांति का पुजारी लेकिन
युद्ध तबाही का पर्याय होता है जिसमें सब कुछ बर्बाद हो जाता है। आशाएं, भावनाएं, खुशियां सब खत्म हो जाती हैं। युद्ध का होना विनाश को जन्म देना है। जब भी दुनिया में युद्ध जैसे संकट आते हैं, तो कोई रास्ता नजर नहीं आता। प्राणों का संकट भुखमरी की चिंता, अन्न के एक-एक दाने को तरसते लोग, अपनों के बिछुड़ जाने के बाद रोते बिलखते लोग, हर आंख का आंसू मानवता को पिघला देने के लिए ही काफी होता है। युद्ध के विनाश को देखकर हर दिल यही कहता है कि युद्ध कभी नहीं होना चाहिए। मानव जीवन बहुत कीमती है। धमाकों की आवाज से जो घबराहट और टूटती सांसों की डोर से जो पीड़ा उठती है वह असहनीय होती है। हंसती खेलती जिंदगियों को मौत के आगोश में पहुंचा देना इंसानियत को खत्म कर देने के लिए काफी है। इतिहास साक्षी है कि भारत ने युद्ध और हिंसा का कभी समर्थन नहीं किया है। भारत कभी हिंसा और युद्ध का पक्षधर नहीं रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बेंगलुरु में आयोजित गीता दान यज्ञ के अवसर पर बोलते हुए कहा कि भारत अन्याय और उत्पीड़न के प्रति तटस्थ नहीं रह सकता।
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भारत किसी को छेड़ता नहीं है और यदि कोई देश शांति भंग करे तो उसे छोड़ता भी नहीं है। उन्होंने महाभारत का उल्लेख करते हुए कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश जीवन में आत्मसात करने का आह्वान करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के उपदेश व्यक्ति को निर्भय बनाते हैं। भारत ने जितने भी युद्ध लड़े वह हम पर थोपे गए युद्ध थे। भारत ने कभी किसी देश की एक इंच भी भूमि कब्जाने की कोशिश नहीं की। दुनिया ने बहुत युद्ध दिए हैं, लेकिन भारत ने विश्व को बुद्ध का संदेश ही दिया है। भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी महान संस्कृति है, जिस की अपनी जीवन परम्पराएं हैं। जो वैश्विक सपनों को अपने में समेटे हुए हैं। जनभागीदारी से जनकल्याण हमारा प्राण तत्व है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह परिपक्व राजनीतिज्ञ हैं। उन के शब्दों का महत्व होता है। उनके वक्तव्य के पीछे पाकिस्तान और चीन को चेतावनी भी है। उन का संदेश यही है कि भारत अहिंसा का पुजारी है लेकिन दुर्बलता का पुजारी नहीं है। इसलिए हर भारतीय को निर्भय होना होगा। जिस दिन श्रीमद्‌भगवद गीता को आत्मसात कर देश का हर नागरिक निर्भय हो जाएगा उस दिन भारत शक्तिशाली देश बन जाएगा।
इस संसार में ऐसा कोई उपाय नहीं है जिस से दुर्जन को सज्जन बनाया जा सके। मल स्थान को हम चाहे कितने भी सुगंधित लेपोें से स्वच्छ रखें, गंदगी ही हमें प्रतिकार में मिलेगी। ऐसा कड़वा अनुभव हमें पाकिस्तान और चीन से मिल चुका है। इन कड़े अनुभवों को देखते हुए ही कुछ दिन पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर पाकिस्तान को चेतावनी भी दी थी। उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि गिलगित-बाल्टिस्तान तक पहुंचने के बाद ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का विकास सुनिश्चित हो पाएगा। पाकिस्तान ने हम पर कई जुल्म किए हैं। उसका परिणाम उसे भुगतना पड़ेगा। राजनाथ सिंह ने गुजरात की धरती पर खड़े होकर एक बार फिर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की मांग दोहराते हुए कहा कि पीओके को वापस लाना संसद का संकल्प है। रक्षामंत्री के इस बयान के बाद सेना के उत्तरी कमान अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा था कि सरकार का जो भी निर्देश रहेगा उसका पालन किया जाएगा। सेना कोई भी कार्रवाई करने को तैयार है। इन बयानाें के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों में हलचल मच गई, क्योंकि पीओके के लोग ही पाकिस्तान के खिलाफ हैं। पीओके के लोग पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं। पाकिस्तान को हम ने हर युद्ध में हराया है। 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। उन चोटियों को पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने के लिए छिड़े युद्ध में भारत ने न सिर्फ बड़ी जीत दर्ज की बल्कि पाकिस्तान को भी एक ऐसा संदेश दिया जो वह कभी नहीं भूल सकता। ​कारगिल के युद्ध ने भारत को भी कई सीख और सबक दे दिए। कारगिल युद्ध की सबसे बड़ी सीख थी, सैन्य आत्मनिर्भरता। अब भारतीय सेना को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। भारत को यह भी सबक मिला कि भविष्य में भारत पर दोतरफा युद्ध लड़ने का दबाव बन सकता है। भारत ने जम्मू-कश्मीर ही नहीं लद्दाख के मोर्चे पर भी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी यानि भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान एक साथ युद्ध का ऐलान करते हैं तो भारत को दोनों मोर्चों पर युद्ध लड़ना होगा। चीन से चल रहे सीमा पर गतिरोध के दौरान भारत पहली बार चीन की आंख में आंख डालकर बात कर पाया तो केवल इसलिए कि अब उसने आत्मनिर्भर होना सीख लिया है।
स्वदेशी हथियार और स्वदेशी तकनीक किसी युद्ध में जीत का सबसे बड़ा आधार बनती है। अमेरिका, फ्रांस, चीन या रूस यह सभी देश महाशक्तियां इसलिए कही जाती हैं क्योंकि वे अपनी सुरक्षा के लिए खुद बनाए हथियारों पर भरोसा करते हैं। अब भारत ने स्वदेशी हथियार बनाने पर जोर दिया है। भारत अब रक्षा क्षेत्र में आयातक ही नहीं निर्यातक भी बन गया है। साल दर साल भारत से हथियार खरीदने वाले देशों की संख्या और भारतीय हथियारों में उनकी दिलचस्पी बढ़ी है। भारत जो भी कर रहा है वह आत्मरक्षा के लिए कर रहा है। लेकिन दुनिया के सामने सब से बड़ा सवाल तो यह है कि जब हर मनुष्य शांति से रहना चाहता है तो युद्ध की आक्रामकता क्यों? वैश्विक शक्तियों को अपने नैतिक कर्त्तव्यों को समझकर शांति की पहल करनी चाहिए और आतंकवाद फैलाने वाले और हमेशा युद्ध उन्माद की बातें करने वाले देशों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत का स्टैंड यही है कि युद्ध खत्म होना चाहिए। जब इंसान ही नहीं रहेंगे तो देश कहां रहेंगे। चीखों, आहों पर बसी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति क्या मन को शांति दे सकती? इसलिए शांति के दीप जलें और मानव जाति का कल्याण हो।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
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