Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

भारत-इस्राइल: सम्पूर्ण सम्बन्धों की बुनियाद

NULL

10:52 AM Jul 06, 2017 IST | Desk Team

NULL

किसी ने भी सोचा नहीं होगा कि भारत और इस्राइल इतने करीब आ जाएंगे। जिस तरह से इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रोटोकॉल तोड़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत किया और उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपतियों और पोप जैसा सम्मान दिया, उससे स्पष्ट है कि इस्राइल को भारतीय प्रधानमंत्री का कितना बेसब्री से इंतजार था। आखिर 70 वर्ष लग गए भारतीय प्रधानमंत्री को इस्राइल की यात्रा करने में। नरेन्द्र मोदी की यात्रा के साथ ही इस्राइल के साथ भारत के आंशिक कूटनीतिक दौत्य सम्बन्धों की शुरूआत के बाद अब सम्पूर्ण सम्बन्धों की बुनियाद रख दी गई है। इस्राइल संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित प्रस्ताव के तहत बना हुआ ऐसा जायज मुल्क है जिसके अस्तित्व पर मुस्लिम देश सवालिया निशान लगाते रहे हैं। इस्राइल भी तभी अस्तित्व में आया था जब पाकिस्तान आया था मगर पाकिस्तान नाजायज तरीके से अंग्रेजों ने हमसे अलग किया था क्योंकि वह हजारों वर्ष पुरानी ‘भारत भूमि’ को तोड़कर सिर्फ इसलिए अलग किया गया था कि भारत पर आक्रमणकारियों के रूप में आये सुल्तानों ने हमारी ही धरती पर बसने वाले लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराकर उनका राष्ट्रबोध बदल दिया था जबकि इस्राइल यहूदी नस्ल के लोगों का ऐसा पैतृक स्थान था जहां से वे दुनियाभर में फैले थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें हिटलरी फौजों की यातनाएं सहनी पड़ी थीं। अत: इस्राइल के बारे में भारत का रुख वह कदापि नहीं हो सकता जो चन्द मुस्लिम राष्ट्रों का रहा है। भारतीय राजनीति में इस्राइल से रिश्तों को लेकर बहुत विरोध रहा है।

प्राय: यह कहा जाता रहा कि इस्राइल तो अमेरिका का दुमछल्ला है, उसके साथ भारत को रिश्ते रखने की कोई जरूरत नहीं। बार-बार यह कहा गया कि इस्राइल से सम्बन्ध कायम करने से 25 अरबी देश भारत से नाराज हो जाएंगे। कांग्रेस और वामदलों ने हमेशा फलस्तीनी और अरब इस्लामी संवेदनशीलता का मुद्दा उठाया और यही कहा कि भारत-इस्राइल सम्बन्धों से भारतीय मुस्लिम समुदाय व्यथित हो सकता है। मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में भारत-इस्राइल सम्बन्धों को लेकर एक गलत धारणा पैदा कर दी गई। यद्यपि भारत ने इस्राइल को 1950 में ही मान्यता दे दी थी लेकिन सम्बन्धों में खुलापन अब आया। कोई भारतीय प्रधानमंत्री अब तक इस्राइल क्यों नहीं गया, इसकी कई वजहें भी रहीं। दरअसल इस्राइली और फलस्तीनी क्षेत्र का विवाद भारत की आजादी से भी पुराना है और भारत हमेशा अरब देशों का हिमायती रहा है।इस्राइल से सम्बन्ध जब शुरू हुए जो उसके बाद भारत में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हो गया था और कोई भी दल मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहता था। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भी इस्राइल भारत की मदद के लिए सामने आया था। इस्राइल उस वक्त हथियार देने की स्थिति में नहीं था लेकिन इस्राइल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने भारत को हथियारों का जहाज भेजा था। बदले में गोल्डा मायर भारत के साथ राजनीतिक रिश्ते चाहती थीं। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी इस्राइल ने भारत को हथियार दिए और उसके बाद भी भारतीय सैन्य साजो-सामान के कुछ हिस्सों के आधुनिकीकरण के रूप में मदद की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सऊदी अरब का दौरा भी करते हैं, यूएई के सुल्तान को गणतंत्र दिवस पर मुख्यातिथि बनाते हैं। मोदी की परम्परागत सोच में बदलाव आ चुका है। आज की दुनिया में सम्बन्धों के आयाम बदल चुके हैं। आज की दुनिया में सम्बन्धों को लेकर कोई आपत्ति नहीं करता, न ही इससे भारतीय मुस्लिमों को कोई आपत्ति है। भारत इस्राइल से हथियार खरीदता रहा है। भारत हर साल करीब एक अरब डालर से भी ज्यादा का सैन्य सामान आयात करता है। कुछ वर्ष पहले तक इन रक्षा सौदों को गुप्त रखा जाता था लेकिन हाल ही के वर्षों में इस्राइल भारत को हथियार सप्लाई करने वाला दूसरा देश बन गया है। प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले बीते अप्रैल में भारत और इस्राइल की एयरो स्पेस इंडस्ट्रीज के बीच डेढ़ अरब डालर का सौदा हुआ था। भारत को इस समय अपनी सेना को आधुनिकतम बनाने, सीमाओं और सीमाओं के भीतर रक्षा के लिए उपकरणों की जरूरत है। भारत को आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए रक्षा निर्माण क्षमता बढ़ाने की अत्यन्त जरूरत है। इस्राइल से निवेश, रक्षा प्रौद्योगिकी, कृषि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा डिजाइन सहयोग की जरूरत है। इसलिए भारत-इस्राइल के बीच हुआ समझौता स्वागत योग्य है। इस्राइल में पानी की कमी है लेकिन वह ड्रिप सिंचाई में विशेषज्ञ है। प्रधानमंत्री फलस्तीन नहीं गए, यह बदली हुई विदेश नीति का संकेत है। इस्राइल से सम्बन्धों की मजबूती फलस्तीन का विरोध नहीं है। इस्राइल ने हमारी बहुत मदद की है, देश की सुरक्षा के लिए भारत जो ठीक समझेगा, करेगा ही। प्रधानमंत्री का यह दौरा वास्तव में दोनों देशों के रिश्तों में एक ‘पाथ ब्रेकिंग’ यात्रा है। भारत को चुनौतियों पर पार पाने के लिए इस्राइली प्रौद्योगिकी की जरूरत है। भारत को अपना रास्ता खुद तय करना है।

Advertisement
Advertisement
Next Article