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भारत-मालदीव : सुधरते रिश्ते

03:43 AM Oct 09, 2024 IST | Aditya Chopra
भारत मालदीव   सुधरते रिश्ते

भारत और मालदीव के रिश्ते पिछले कई महीनों से तल्खी भरे रहे हैं लेकिन अब दोनों देशों के रिश्ते एक बार फिर सुधरते दिखाई दे रहे हैं। मोहम्मद मुइज्जू पिछले साल नवम्बर में मालदीव के राष्ट्रपति बने थे और उन्होंने अपने चुनावी अभियान में इंडिया आऊट का नारा बुुलंद किया था। सत्ता में अाते ही मुइज्जू ने भारत के सैनिकों को मालदीव छोड़ने का आदेश दे ​िदया था। मुइज्जूू को चीन समर्थक माना जाता है, इसलिए भारत की ​िचंताएं काफी बढ़ गई थीं। सामान्य तौर पर मालदीव के नए राष्ट्रपति ने शपथ लेने के बाद सबसे पहले तुर्की आैर चीन की यात्रा की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मालदीव के मंत्रियों द्वारा की गई टिप्पणियों और इसके बाद भारत में बाॅयकाट मालदीव अभियान की शुरूआत के बाद संबंधों में काफी तनाव पैदा हो गया था लेकिन अब राष्ट्रपति मुइज्जू भारत के दौरे पर हैं। वे अब भारत की जमकर सराहना कर रहे हैं और भारत को अपना घनिष्ट मित्र बता रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या मुइज्जू का हृदय परिवर्तन हो गया है या इसके पीछे कुछ कारण हैं। मुइज्जू चार महीने में दूसरी बार भारत आए हैं। मुइज्जू के नरम रुख के पीछे मालदीव की अपनी मजबूरियां भी हैं। व्यवहारिकता के धरातल पर मालदीव भारत से अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकता। इस समय मालदीव का खजाना खाली है। उसकी अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खराब है। उसका पर्यटन क्षेत्र बेहद घाटे में है। पर्यटन क्षेत्र को मालदीव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है लेकिन मुइज्जू के भारत विरोधी बयानों की वजह से उसका टूरिज्म सैक्टर बहुत प्रभावित हुआ है। ऐसे में पहले से ही कर्ज की मार झेल रहे मालदीव पर और दबाव बढ़ा है। ऐसी स्थिति में भारत ने मालदीव के लिए अपना खजाना खोल दिया है। भारत ने 36 करोड़ डॉलर की तत्काल मदद का ऐलान किया है और 40 करोड़ डॉलर की करैंसी की अदला-बदली का समझौता किया है।
"भारत सरकार के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मालदीव से 10 करोड़ डॉलर का बॉन्ड भी ख़रीदेगा। कुछ लोग कह रहे हैं कि इस्लामिक लाइन वाले राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का भारत को लेकर हृदय परिवर्तन हो गया है। मालदीव कर्ज नहीं चुका पाने के कारण डिफॉल्ट होने की ओर बढ़ रहा था और मुइज्जू भारत से आग्रह कर रहे थे कि वह इस संकट से निकाले। चीन और आईएमएफ़ की तरह भारत की मदद बिना कठोर शर्तों की होती है।" मालदीव को अब लग रहा है कि उसने भारत को लेकर गलत आकलन किया था। मालदीव ने 180 डिग्री का टर्न लिया है।" हालांकि कई लोग पहले से ही मानकर चल रहे थे कि मुइज्जू चुनाव जीतने के लिए भारत विरोधी कैंपेन की अगुवाई कर रहे थे। ध्रुवीकरण वाले मुद्दे अक्सर चुनाव के बाद अप्रासंगिक हो जाते हैं। मालदीव में भी इंडिया आउट कैंपेन चुनाव के बाद से नरम पड़ता गया।
अन्य भी कई क्षेत्र हैं जिन पर मालदीव भारत पर निर्भर है। मालदीव जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या हर साल काफी ज्यादा होती है। आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद भारतीयों ने मालदीव का बहिष्कार कर दिया जिससे पर्यटन उद्योग डगमगा गया लेकिन इसके अलावा डिफेंस और सिक्योरिटी सैक्टर में भी 1988 से भारत, मालदीव को सहयोग दे रहा है। अप्रैल 2016 में इस संबंध में एक एग्रीमेंट भी हुआ था जिससे इसे और बढ़ावा मिला है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स की डिफेंस ट्रेनिंग जरूरतों के लिए 70 फीसदी सामान भारत मुहैया कराता है। बीते एक दशक में भारत ने एमएनडीएफ के 1500 से ज्यादा सैनिकों को प्रशिक्षित किया है।
मालदीव के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में भारत की बड़ी भूमिका है। मालदीव के कई बड़े एयरपोर्ट्स को तैयार करने में भारत की भूमिका रही है। मालदीव का ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट इसका सबसे बड़ा उदहरण है। इस प्रोजेक्ट के तहत 6.74 किलोमीटर लंबा ब्रिज मालदीव की राजधानी माले को उससे जुड़े द्वीपों विलिंगली, गुलीफाल्हू और तिलाफुंशी से जोड़ेगा। भारत ने इस प्रोजेक्ट के लिए 50 करोड़ डॉलर की राशि भी दी है।
हैल्थ केयर और शिक्षा के मामले में भी भारत उसे काफी सहयोग दे रहा है। मालदीव में इंदिरा गांधी मैमोरियल अस्पताल के अलावा एक कैंसर अस्पताल तैयार करने में भी भारत का अहम योगदान है। भारत मालदीव के शिक्षकों और युवाओं को ट्रेनिंग देने के ​लिए विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि मालदीव के विरोध और भारत में राष्ट्रवादी आह्वान के बावजूद नई दिल्ली ने मालदीव से सम्पर्क साधना बंद नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ​िदसम्बर में मुइज्जू से मुलाकात की थी आैर पेचीदा मुद्दों पर द्विपक्षीय बातचीत के ​लिए हाईलेवल ग्रुप का गठन भी किया था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी लगातार सम्पर्क बनाए रखा। कूटनीति भी यही कहती है कि सम्पर्क बनाए रखा जाना चाहिए। भारत की पड़ोस प्रथम नी​ति अपने पड़ोसी की मदद और उसकी प्राथमिकताओं के हिसाब से काम करने पर केन्द्रित है। भारत ने कभी भी खुद काे दूसरे देशों पर थोपने की को​िशश नहीं की है। अब जबकि मुइज्जू को समझ आ गया है कि भारत उसके लिए काफी अहमियत रखता है और उनकी पार्टी के नेता ही उनकी चीन समर्थक नीतियों का विरोध कर रहे हैं तो उन्होंने यू टर्न ले ​िलया। उम्मीद है कि भविष्य में दोनों देशों का सहयोग बना रहेगा और राष्ट्रपति मुइज्जू भी चीन और भारत में संतुलन बनाकर काम करेंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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