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'छात्राओं को मिले चुनने की आजादी', मुंबई के कॉलेज में हिजाब बैन के फैसले पर SC ने लगाई रोक

08:34 AM Aug 10, 2024 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए मुंबई के एक कॉलेज द्वारा शैक्षणिक परिसर में हिजाब, स्टोल, टोपी आदि पहनने पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि क्या आप बिंदी या तिलक लगाने वाली लड़कियों पर प्रतिबंध लगाएंगे? कोर्ट ने आगे कहा कि छात्राओं को यह चुनने की आजादी होनी चाहिए कि वे क्या पहनें, कॉलेज उन्हें मजबूर नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अंतरिम रोक का आदेश देते हुए कहा कि हम उम्‍मीद करते हैं कि अंतरिम आदेश का किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। मामले को 18 नवंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया गया है।

याचिका पर हुई तत्काल सुनवाई



हालांकि न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कॉलेज परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और कक्षाओं के अंदर लड़कियां बुर्का नहीं पहन सकतीं। गुरुवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को मुस्लिम छात्राओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अवगत कराया कि उन्हें कॉलेज परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा था कि शीर्ष अदालत 9 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगी।

हिजाब पर प्रतिबंध आर्टिकल 14 का उल्लंघन- याचिका



इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति AS चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 26 जून को मुस्लिम छात्राओं की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वे चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एन.जी. आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। पिछले दो वर्षों से SYBSc और TYBSc कार्यक्रमों की छात्राओं ने अपनी याचिका में CTES प्रबंधन के फैसले को मनमाना, अनुचित, कानूनी रूप से गलत बताया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कॉलेज द्वारा लागू किया गया नया ड्रेस कोड उनकी निजता, सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अधिवक्ता अबीहा जैदी के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है, "हिजाब पहनने पर प्रतिबंध मुस्लिम छात्राओं के खिलाफ भेदभाव है, भले ही इसके पीछे कोई भी उद्देश्य हो। यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।"

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