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भारत, पाक और अमेरिका

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने फिर कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार कड़ी…

10:51 AM May 03, 2025 IST | Aditya Chopra

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने फिर कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार कड़ी…

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने फिर कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार कड़ी व पुख्ता कार्रवाई करेगी और आतंकवाद को समर्थन देने वालों के खिलाफ भी सख्त निर्णायक कदम उठाये जायेंगे। विगत 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में जिस तरह 27 भारतीय पर्यटक नागरिकों की पाकिस्तान से आये दहशतगर्दों ने उनका धर्म पूछ-पूछकर हत्या की उससे न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा पैदा हुआ। यही वजह है कि आज विश्व के अधिकतम विकसित व विकासशील देश इस मुद्दे पर भारत का समर्थन कर रहे हैं। पहलगाम की घटना के बाद पहला फोन अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड का ही श्री नरेन्द्र मोदी के पास आया और बाद में रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन ने भी श्री मोदी से बात की। संयोग यह रहा कि जब पहलगाम में यह घटना हुई तो अमेरिका के उपराष्ट्रपति श्री जे.डी. वेंस अपने परिवार सहित भारत की यात्रा पर थे। उनके भारत में रहते ही पहलगाम में आतंकवादी वारदात हुई थी। जाहिर तौर पर यह कहा जा सकता है कि पहलगाम के जवाब में भारत पाकिस्तान को जो सबक सिखाना चाहता है उससे अमेरिका असहमत नहीं है।

पिछले कुछ दिनों में अमेरिका के विदेश मन्त्री व रक्षामन्त्री ने भी भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर व रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह से टेलीफोन पर वार्ता की। अमेरिकी रक्षामन्त्री ने तो श्री राजनाथ सिंह से साफ कहा कि भारत को अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को जो विश्व शक्तियों का समर्थन मिल रहा है उससे पाकिस्तान पूरे विश्व में अकेला पड़ता जा रहा है और घबरा रहा है। मैं शुरू से ही कहता रहा हूं कि पाकिस्तान एक नाजायज मुल्क है जिसकी बुनियाद हिन्दू-मुस्लिम का द्वि-राष्ट्रवाद का सिद्धान्त है। भारत ने अपने स्वतन्त्र होने और बंटवारा होने के बाद भी इस सिद्धान्त को कभी स्वीकार नहीं किया। यह बेवजह नहीं है कि भारत में आज भी पाकिस्तान के 24 करोड़ मुसलमानों के मुकाबले ज्यादा मुस्लिम रहते हैं और ये पक्के राष्ट्र भक्त हैं। मगर भारत 1947 में हुए बंटवारे की त्रासदी को भी नहीं भूला है। भारत की हिन्दू-मुस्लिम एकता कितनी मजबूत है इसका उदाहरण भी हमें कश्मीर में ही मिलता है। 1947 में जब देश का बंटवारा हो रहा था और मुहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनवा रहे थे तो मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर राज्य में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ था जबकि पूरे भारत में एेसी वारदातें हो रही थीं। जिसे देखकर ही महात्मा गांधी ने कहा था कि जब पूरे देश में अंधियारा छाया हुआ है तो कश्मीर से एक आशा की किरण फूटी है।

राष्ट्रपिता की कश्मीर के बारे में यह टिप्पणी ऐतिहासिक धरोहर की है जिससे कश्मीर हमेशा जगमगाता रहता है परन्तु 1990 में पाकिस्तान परस्त कुछ आतंकवाद समर्थक लोगों ने कश्मीर घाटी से हिन्दू पंडितों का पलायन कराया। ये कश्मीरी हिन्दू आज भी वापस लौटने की तैयारी में ही हैं। मगर 5 अगस्त, 2019 को जब देश के गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया तो उसके बाद कश्मीर फिर जगमगाने की तरफ आगे बढ़ने लगा। मगर पाकिस्तान की ना-मुराद फौज से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वह जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकवादी कार्रवाइयों में मशगूल रही। भारत के सशस्त्र बलों ने इसका जमकर मुकाबला किया परन्तु विगत 22 अप्रैल को पाकिस्तान के आतंकवादियों ने सारी सीमाओं को लांघ डाला और पहलगाम में 27 लोगों की निर्मम हत्या कर डाली। इसका जवाब तो भारत को देना ही होगा। अतः अमेरिका के उपराष्ट्रपति श्री वेंस का यह कहना यथार्थ से परे नहीं है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ एेसा कदम न उठाये जिससे पूरे क्षेत्र में ही युद्ध का संकट खड़ा हो जाये क्योंकि भारत व पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं। मगर पाकिस्तान की परमाणु शक्ति अवैध है जबकि भारत की परमाणु शक्ति को पूरी दुनिया की वैधता प्राप्त है और भारत की यह घोषित नीति है कि वह कभी परमाणु बम का उपयोग पहले नहीं करेगा। ये हथियार उसकी आत्मरक्षार्थ ही हैं और आत्मरक्षा करने का जायज अधिकार भारत को है। अतः विश्व को यदि समझाना है तो पाकिस्तान को ही समझाना है कि वह आतंकवाद की तरफ न बढे़। हालांकि जिस तरह के प्रमाण भारत ने पाकिस्तान के बारे में दुनिया के मुल्कों को दिये हुए हैं उनसे तो यह पूरा मुल्क ही आतंकवादी देश है। अतः अमेरिका को ही यह सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान किसी भी सूरत में उसके द्वारा दिये गये हथियारों का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध न करे।

जहां तक चीन का सवाल है तो वह आजकल पाकिस्तान को अपने कन्धे पर बैठा कर जरूर घूम रहा है मगर वह भी पाकिस्तान की हकीकत जानता है। भारत ने सिन्धु नदी जल समझौते को ठंडे बस्ते में डाल कर साफ कर दिया है कि वह पाकिस्तान को करारा सबक सिखाना चाहता है क्योंकि आज भी इसका सेना प्रमुख उस द्वि-राष्ट्रवाद के सिद्धान्त का ढोल बजाता है जिसे 1971 में इसी की जनता ने कब्र में गाड़ कर बंगलादेश का निर्माण किया था। बेशक 1971 में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था मगर आज परिस्थितियां आधारभूत ढंग से पूरी तरह बदली हुई हैं और अमेरिकी नेताओं व प्रशासन को इन्हीं के अनुसार अपना रुख तय करना होगा।

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