Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

भारत-पाक: खिड़कियां तो खोलनी होंगी

भारत व पाक के बीच लम्बी खामोशी के बाद एक खिड़की थोड़ी सी खुली है। संभावना है कि इस छोटी सी ​खिड़की के माध्यम से ताजा हवा के कुछ झोंके आ सकते हैं।

09:26 AM Oct 20, 2024 IST | Editorial

भारत व पाक के बीच लम्बी खामोशी के बाद एक खिड़की थोड़ी सी खुली है। संभावना है कि इस छोटी सी ​खिड़की के माध्यम से ताजा हवा के कुछ झोंके आ सकते हैं।

भारत व पाक के बीच लम्बी खामोशी के बाद एक खिड़की थोड़ी सी खुली है। संभावना है कि इस छोटी सी ​खिड़की के माध्यम से ताजा हवा के कुछ झोंके आ सकते हैं। भारतीय विदेश मंत्री और पाक प्रधानमंत्री के मध्य बातचीत के समय वहां के क्रिकेट बोर्ड के एक उच्चाधिकारी का चले आना महज कोई संयोग नहीं था। ‘सिंगल-रन’ की मशक्कत हुई है तो चौके-छक्के भी जड़े जा सकते हैं। वैसे भी आगामी फरवरी में चैम्पियन-ट्राफी में दोनों देशों की टीमों के आमने-सामने होने की संभावनाएं कायम हैं।

दरअसल यह भी एक हकीकत है कि जब से दोनों देशों के बीच व्यापार ठप्प हुआ है, तब से हमारा यह पड़ौसी भी संकट में है और मजा हमें भी नहीं आ रहा। श्रीकरतारपुर साहब-गलियारे के बाद उम्मीद थी कि कटासराज, श्री ननकाना साहब और सिंध वाली हिंगलाज माता के गलियारे भी खुल जाएंगे। मगर बात सिर्फ कुछ अरदासों तक सीमित रह गई।

दोनों देशों के सामान्य जन तो सहमत हैं कि 77 वर्ष पूर्व वाले विभाजन का बेताल अब तक हमारे कंधों से नहीं उतर पाया। कभी लाहौर की दरगाहों, गुरुद्वारों के बहाने तो कभी पुरानी दिल्ली की चंद संकरी हवेलियों के हवाले से या अज़मेर शरीफ की दरगाह के बहाने पुरानी यादें चहकने लगती हैं। लाहौर का अलहमरा थियेटर अब भी उसी तर्ज पर चलता है, जिस तर्ज पर चंडीगढ़ टैगोर थियेटर या दिल्ली का ‘त्रिवेणी’ या ‘कमानी’ ओडिटोरियम चलते हैं। कभी अमृता के बहाने, कभी मंटो के बहाने तो कभी इकबाल, फैज़, गालिब के बहानों से बातें चल निकलती हैं। सरायकी व ठुमरी भी अक्सर कहरवा बजाने लगती हैं।

इन ताज़ा हवाओं के रास्ते में बांधा है तो सिर्फ चंद आतंकी संगठन, जिन्हें भारत बर्दाश्त नहीं करता और पाकिस्तानी आवाम भी उन्हें निरा सरदर्द मानते हैं। उनसे मुक्ति पाना पाकिस्तानी शासकों के लिए आसान न होने के बावजूद बेहद ज़रूरी है।

यह भी एक हकीकत है कि खिड़कियां जब भी खुलेंगी, किताबों व क्रिकेट के बहाने खुलेंगी। जयपुर का ‘लिट फैस्ट’, कसौली का ‘खुशवंत सिंह फेस्टिवल’ या चंडीगढ़ का ‘लिट फैस्ट’ ऐसे खूबसूरत बहाने हैं जिनके माध्यम से ‘बंद अलमारी के शीशों से झांकने वाली किताबों’ को भी ‘सुकून’ मिलेगा। इन किताबों का ब्यौरा जानने के लिए आपके ‘गुलज़ार साहब’ के घर तक दस्तक देनी होगी। उनकी एक लोकप्रिय नज़्म है-

‘किताबें, झांकती हैं/

बंद अलमारी के शीशों से/’

वैसे भी यह सुकून भरी बात है कि पहली बार इस बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एससीओ शिखर सम्मेलन के अपने भाषण में कश्मीर का राग नहीं अलापा। इस बात को लेकर उनके देश में हाय तौबा तो मची है, मगर उसका लाभ यह हुआ कि उसी मंच पर मौजूद भारतीय विदेश मंत्री को भी कश्मीर के बारे में भारतीय स्टेंड दोहराने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई फिर भी श्री जयशंकर ने यह तो स्पष्ट कर ही दिया ‘घात’ और ‘बात’ या छुरे-छर्रे और संवाद साथ-साथ नहीं चल सकते।

इधर, एक नया सुखद बहाना भी उभरा है। पंजाब विश्वविद्यालय इन दिनों अपना 142वां स्थापना दिवस मना रहा है। इसका मूल लाहौर में है, जबकि 1947 में वहां से उखड़ने, उजड़ने के बाद एक विश्वविद्यालय (उसी नाम से) पहले सोलन व बाद में चंडीगढ़ में स्थापित हो गया।

पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर की स्थापना वर्ष 142 वर्ष पूर्व हुई थी। भारत-विभाजन के बाद भारतीय क्षेत्र में इसकी स्थापना ‘ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी’ के नाम से सोलन (हिमाचल) के छावनी क्षेत्र में की गई थी। बाद में इसे चंडीगढ़ लाया गया और वही पुराना नाम ‘पंजाब यूनिवर्सिटी’ ही बहाल कर दिया गया। इसके वर्तमान स्वरूप का परिसर सेक्टर-14 व सेक्टर-25 में स्थापित किया गया है और पूरा परिसर लगभग 550 एकड़ भूमि में फैला है। इसमें 75 विषयों के अध्ययन-विभाग हैं और पंजाब के आठ जिलों के लगभग 201 महाविद्यालय इससे जुड़े हुए रहे। इन विषयों में शोध के भी प्रावधान हैं। यह बात भी कम दिलचस्प नहीं है कि शुरुआती दौर में विभाजन के लिए गठित परिषद (पार्टीशन काउंसिल) ने विभाजन की अनुमति देने से इन्कार कर दिया था। दलील यह दी गई कि जब तक संस्थान के लिए अपना निजी विशाल परिसर भी नहीं हो, तब तक यह संभव नहीं हो सकता। उसके लिए विश्वविद्यालय-प्रशासन ने विकल्प के रूप में होशियारपुर, जालंधर, अमृतसर और दिल्ली में सभी विषयों के क्षेत्रीय शिक्षण विभाग खोले गए। वर्ष 1950 में यह विश्वविद्यालय, ला-कार्बूजिए और पियरे जैनरे के बनाए डिजाइन पर नवनिर्मित परिसर में स्थापित हो गया। इसका मुख्य परिसर 550 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इसमें अत्याधुनिक केन्द्रीय पुस्तकालय, 19 छात्रावास (8 छात्रों के लिए और 11 छात्राओं के लिए) और साथ ही सेक्टर-25 में दक्षिणी परिसर भी है। इसका पूरा ढांचा ही अद्भुत है और इसकी अपनी डिस्पेंसरी व स्टाफ के लिए आवास भी बने हुए हैं। उत्तर भारत का यह एक विलक्षण शिक्षक संस्थान माना जाता है। इसका गांधी-भवन निर्माण कला का अद्भुत नमूना है। इधर, लाहौर स्थित पंजाब विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्टाफ में नियमित रूप में 1006 प्राध्यापक हैं और 300 अंशकालीन हैं। यूनिवर्सिटी कैम्पस में 45678 छात्र प्रात:कालीन व 16552 छात्र-छात्राएं सांध्यकालीन कक्षाओं में शिक्षारत हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न कॉलेजों के तीन लाख 63 हज़ार 416 छात्र भी इसी विश्वविद्यालय से जुड़े हुए हैं। इसका वर्तमान कैम्पस, जिसे कायदे आज़म-कैम्पस भी कहा जाता है, कैनाल रोड़ पर स्थित है। ब्रिटिश काल में इसके गुजरांवाला, जेहलम व खानपुर में भी कैम्पस थे। शिमला में इसी विश्वविद्यालय का उच्चशिक्षा केंद्र अक्तूबर 1882में स्थापित किया गया। लेकिन अब स्थितियां और भी बदल चुकी हैं। नए-नए केंद्र खुल गए हैं। अल्लामा इकबाल के नाम से भी 1800 एकड़ में एक कैम्पस स्थापित हो चुका है।

Advertisement
Advertisement
Next Article