भारत एक आवाज में बोले
रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर भारत सरकार के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जो रुख अख्तियार किया है, उसका समर्थन प्रत्येक देशवासी राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च मानते हुए कर रहा है अतः इस मुद्दे पर भारत के सभी राजनीतिक दलों को भी एक मत से भारत की सरकार के समर्थन में अपनी आवाज मिलानी चाहिए
02:12 AM Mar 05, 2022 IST | Aditya Chopra
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रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर भारत सरकार के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जो रुख अख्तियार किया है, उसका समर्थन प्रत्येक देशवासी राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च मानते हुए कर रहा है अतः इस मुद्दे पर भारत के सभी राजनीतिक दलों को भी एक मत से भारत की सरकार के समर्थन में अपनी आवाज मिलानी चाहिए जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सन्देश जा सके कि भारतीय राजनीति का अन्तिम लक्ष्य राष्ट्र का कल्याण ही है। इसकी मूल वजह यह है कि अमेरिका रूस के विरुद्ध जिस तरह की अन्तर्राष्ट्रीय चौसर बिछा कर भारत को फंसाना चाहता है उससे भारत को सावधान रहना होगा और अपने राष्ट्रीय हितों की हर कीमत पर रक्षा करनी होगी। प्रधानमन्त्री श्री मोदी ने हाल ही में हुई क्वैड (भारत, आस्ट्रेलिया, जापान व अमेरिका) देशों के शासन प्रमुखों की बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि रूस- यूक्रेन संघर्ष का हल कूटनीति व वार्तालाप के माध्यम से ही होना चाहिए। भारत का यह रवैया विश्व में सह-अस्तित्व के माध्यम से प्रेम व भाईचारे के माहौल में जीने का मन्त्र है जो भारत की विदेशनीति का प्रमुख अंग है। इससे यही सन्देश जाता है कि भारत जहां एशिया प्रशान्त व हिन्द महासागर क्षेत्र में पूरी शान्ति चाहता है वहीं क्वाड के सदस्य चारों देशों द्वारा रूस- उक्रेन युद्ध का वार्ता के माध्यम से निपटाये जाने का पक्षधर है जिससे किसी भी पक्ष को हानि न हो सके। परन्तु पश्चिम यूरोपीय देश व अमेरिका तथा इनके प्रभाव वाले अन्य अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठन जिस प्रकार रुस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबन्धों की घोषणा कर रहे हैं उससे माहौल सिर्फ तल्ख ही बनेगा जिससे अंत में विश्व शान्ति ही प्रभावित होगी।
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भारत ने आज भी राष्ट्रसंघ मानवाधिकार संगठन की बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध की जांच कराये जाने के प्रस्ताव पर मतदान के समय अनुपस्थित रह कर अपना पक्ष स्पष्ट करने की कोशिश की है क्योंकि इस जांच का लक्ष्य रूस को निशाना बनाये जाने के अलावा दूसरा नहीं हो सकता। इसकी असल वजह यह है कि युद्ध शुरू होने के समय से ही पश्चिमी देशों व अमेरिका का पलड़ा यूक्रेन की तरफ झुका हुआ है और ये सब रूस को ही इकतरफा दोषी मान रहे हैं। अतः एेसे पूर्वाग्रह ग्रस्त वातावरण में निष्पक्ष जांच किस तरह हो सकती है। दूसरे हमें पुराने इतिहास की कुछ घटनाओं को भी देखना होगा। जब 2001 से अमेरिका ने इराक के खिलाफ जन संहार के हथियार रखने के आरोप में युद्ध शुरू किया था तो किस राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद या अन्तर्राष्ट्रीय कानून अथवा राष्ट्रसंघ की नियमावली का ध्यान रखा गया था? उस समय तो अमेरिका ने इराक में जन संहार के हथियारों की बाबत चल रही किसी जांच या पड़ताल को स्वीकार तक नहीं किया था और इकतरफा सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी थी। बल्कि इससे भी ऊपर जाते हुए अमेरिका ने इराक को पूरी तरह तबाह करके वहां के शासक सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटका दिया था। आज जो पश्चिमी देशों का मीडिया यूक्रेन में हो रही छिट- पुट नागरिक हानि का ढिंढोरा पीट रहा है और मानवीय अधिकारों की दुहाई दे रहा है, वह इराक पर हमले के समय कहां था जबकि उस समय तो अमेरिकी फौजों ने इराक के हर शहर को खंडहरों में बदल डाला था और हजारों नागरिकों की मृत्यु हुई थी तथा उनके सामने भोजन तक का भारी संकट पैदा हो गया था। याद कीजिये किस तरह उस समय इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को बंकरों में छिपना पड़ा था। इसी प्रकार अमेरिका व पश्चिम यूरोपीय देशों ने लीबिया में किया था और उसे भी तहस-नहस किया था। परन्तु रूस ने यूक्रेन के मामले में 2014 से सब्र का परिचय देते हुए वार्तालाप के जरिये आपसी समस्याएं निपटाने का प्रयास किया और बदले में यूक्रेन ने नाटो देशों की सदस्यता चाही जिससे वह रूस की सीमाओं पर नाटो देशों के प्रक्षेपास्त्र तैनात करा सके। इन सब तथ्यों का भी जायजा तो हमें लेना होगा । इसके साथ यह भी देखना होगा कि यूक्रेन वहां फंसे भारतीयों के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहा है और उन्हें यूक्रेनी
सैनिक ही भारत लौटने के प्रयासों से हतोत्साहित कर रहे हैं और उन पर बल प्रयोग तक कर रहे हैं तथा उन्हें सीमा तक जाने वाली रेलगाड़ियों तक में बैठने से रोक रहे हैं। इसके बावजूद मोदी सरकार वहां से भारतीयों को निकालने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास कर रही है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के इस बयान को भारत किस
प्रकार हल्के में ले सकता है कि यूक्रेन ने तीन हजार भारतीयों को बन्धक बनाया हुआ है।
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