मोदी-शाह की आंतरिक सुरक्षा नीति से भारत सुदृढ़
2014 तक भारत लगातार आतंकी और नक्सली हमलों, सीमा पार हिंसा और एक अक्षम आपराधिक न्याय ढांचे से जूझ रहा था। आज 11 साल बाद भारत आंतरिक रूप से सुरक्षित, मुखर और आत्मनिर्भर हुआ है जिसका श्रेय वोटबैंक नीति के ऊपर राष्ट्र नीति को प्राथमिकता देने वाली "मोदी-शाह डॉक्ट्रिन” को जाना चाहिए। आंतरिक सुरक्षा में आए अभूतपूर्व सुधार कोई संयोग नहीं, बल्कि यह निरंतर, साहसिक और मज़बूत नेतृत्व का परिणाम है, जिसमें कठिन फैसले लेने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, वामपंथी उग्रवाद (LWE), पूर्वोत्तर की मिलिटेंसी-मोदी-शाह की ज़ीरो टॉलरेंस नीति ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा पिछले 11 सालों में बदल दी। भारत की आंतरिक सुरक्षा सफलता का सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण जम्मू और कश्मीर का परिवर्तन रहा है। लगातार पत्थरबाज़ी, अलगावादी आंदोलनों और आतंकी हमलों से त्रस्त जम्मू-कश्मीर आज अभूतपूर्व शांति और लोकतांत्रिक भागीदारी का गवाह बन चुका है। आज का नया जम्मू-कश्मीर “पीपीपी-पाकिस्तान परस्त पत्थरबाजी” से “डीडीडी- डेमोक्रेसी, डेवलपमेंट और देश भक्ति” तक पहुंच गया है। आज दिल्ली के लालकिले से लेकर श्रीनगर के लाल चौक तक भारतीय तिरंगा हर मोड़ पर नज़र आता है। अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने के बाद कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत में अंबेडकर जी का बनाया संविधान लागू है।
घाटी में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 69 फीसदी की गिरावट आई है। 7200 से भी अधिक मामले 2004-14 से घटकर 2014-24 में सिर्फ 2,242 रह गए हैं। नागरिकों की हत्याओं में 68% की गिरावट आई और पथराव की घटनाएं 2010 में 2,654 से घटकर 2023 में शून्य हो गईं। हाल में हुए पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने सीमा पार और पाकिस्तान के अंदर 9 आतंकी शिविरों और 11 सैन्य ठिकानों को बेअसर कर दिया। ऑपरेशन सिंदूर के तहत लश्कर और जैश कमांड केंद्रों को भी नष्ट किया गया। भारत के सबसे लंबे समय से चले आ रहे आंतरिक खतरे (लेफ्ट विंग इक्स्ट्रीमिजम) को मोदी सरकार ने व्यवस्थित तरीके से कुचलने का काम किया है। वामपंथी उग्रवाद की घटनाएं वर्ष 2010 में 1,936 से 81% घटकर वर्ष 2024 में 374 हो गईं और मृत्यु दर 85% घटकर 1,005 से लगभग 150 हो गई। प्रभावित ज़िलों की संख्या 126 (वर्ष 2014) से घटकर केवल 38 (वर्ष 2024) हो गई। यह गृहमंत्री अमित शाह का 2026 तक नक्सलवाद खात्मे का संकल्प ही है कि छत्तीसगढ़ में ब्लैक फॉरेस्ट जैसे अभियानों के कारण शीर्ष माओवादी नेताओं को बेअसर कर दिया गया, जिसमें बसवराजू भी शामिल था जो 30 वर्षों से सबसे ज्यादा ख़तरनाक माओवादी माना जाता था। भारत की सरकार द्वारा अकेले 2024 में 290 नक्सलियों को मार गिराया गया, 1,090 गिरफ्तार किए गए और 881 ने आत्मसमर्पण किया।
दशकों तक पूर्वोत्तर भारत संघर्ष क्षेत्र बना रहा। हालांकि, मोदी सरकार की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति ने संवाद, विकास और डी-एस्केलेशन पर ध्यान केंद्रित करके स्थिति को बदल दिया। बोडो, कार्बी और अन्य सहित विद्रोही समूहों के साथ एक दर्जन से अधिक शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। जो असम-मेघालय और असम-अरुणाचल सीमा जैसे मुद्दे कांग्रेस सरकारों के तहत दशकों से लंबित थे, वह अंतर-राज्यीय सीमा विवाद हल किए गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस क्षेत्र के बड़े हिस्से से अफ्सा को हटा लिया गया। जो शांति और सामान्य स्थिति की वापसी का एक प्रमाण था। इससे पहले पूर्वोत्तर में चुनाव - बम, नाकेबंदी और बंद के बारे में थे। आज नॉर्थ ईस्ट का नाम तेजी से बढ़ता टूरिज्म और बिजनेस के कारण बड़ा है।
सरकार की रणनीति सिर्फ रणनीतिक या सैन्य नहीं, बल्कि संस्थागत भी थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आतंक के खिलाफ भारत के अगुआ के रूप में उभरी है। 2019 के बाद से 2024 में एनआईए ने केवल 18 महीनों में 105 मामलों में 100% कन्विक्शन रेट हासिल किया है। अकेले 2024 में खालिस्तानी और इस्लामी जिहादी मॉड्यूल को निशाना बनाते हुए 660 से अधिक आतंकवाद-रोधी फंडिंग्स पर छापे मारे गए जिसमें करोड़ों की नकदी और डिजिटल साक्ष्य की बरामदगी शामिल है। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) में 2019 के संशोधन ने सरकार को व्यक्तियों को भी संगठनों के साथ-साथ आतंकवादी घोषित करने का अधिकार दिया। शायद इस सरकार की सबसे कम बताई गई उपलब्धि शहरी गैर-संघर्ष क्षेत्रों में किसी बड़े आतंकी हमले की अनुपस्थिति है -यूपीए के 10 वर्षों के दौरान हमने दिल्ली से मुंबई, पुणे से जयपुर तक विस्फोटों और हमलों की शृंखला देखी थी पर आज स्थिति बदली है। आज आतंक के प्रति हमारी प्रतिक्रिया का खाका बदल गया है। आज हम "घर में घुस के मारेंगे" संहिता का पालन करते हैं।
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात बढ़कर 23,622 करोड़ रुपए हो गया, जबकि स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरीअर विक्रांत जैसी परियोजनाएं आत्मनिर्भरता बढ़ने का संकेत देती हैं। इस बीच, भारत ने आतंकवाद विरोधी विचार का वैश्वीकरण किया है जिससे यह संयुक्त राष्ट्र, जी 20, एससीओ और ब्रिक्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों के लिए केंद्र बिंदु बन गया है। भारत की आंतरिक सुरक्षा में परिवर्तन केवल सांख्यिकीय नहीं है, यह मनोवैज्ञानिक और वास्तविक है। दुनिया अब जानती है कि भारत आतंक को बर्दाश्त नहीं करता। नागरिक सुरक्षित महसूस करते हैं। माओवाद पीछे हट रहा है। पूर्वोत्तर फिर से जुड़ रहा है और जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय मुख्यधारा में फिर से शामिल हो रहा है। आज का भारत कमजोर और असहाय भारत नहीं है, यह जांची-परखी प्रतिशोध, संस्थागत सुधार और रणनीतिक दूरदर्शिता का भारत है। पिछले 11 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा को बढ़ाया है, बल्कि उन्होंने इसे फिर से परिभाषित किया है।