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भारत-ब्रिटेन : नया युग शुरू

06:00 AM Oct 11, 2025 IST | Aditya Chopra

अंग्रेजों ने भारत पर 200 वर्षों तक शासन किया और भारत की सम्पदा को लूटा। औपनिवेशिक अतीत का दबाव, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी शासन के अत्याचारों और गुलामी के दर्दनाक अनुभवों के चलते भारत-ब्रिटेन संबंध वर्षों तक संवेदनशील बने रहे। दोनों देशों के रिश्तों की जटिलता की कहानी बहुत लम्बी है। अब जबकि वैश्विक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं तो दोनों देश संबंधों की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। यह परिभाषा न केवल कू​टनीतिक बल्कि रणनीतिक और आर्थिक पहलुओं के दृष्टिगत निर्णायक है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ व्यापार युद्ध बढ़ा रहा है तो दूसरी तरफ ब्रिटेन अपनी अर्थव्यवस्था को खस्ता हालत से बाहर निकालने के लिए नए कदम उठा रहा है। भारत भी ट्रंप के टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए नए बाजारों की तलाश कर रहा है। इन परिस्थितियों के बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की भारत यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों को नया मोड़ दे दिया है।

इस दौरे का उद्देश्य भारत-ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को अंतिम रूप देना और जुलाई 2026 तक इसे लागू करने की दिशा में ठोस प्रगति करना था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कीर स्टार्मर की बातचीत में दोनों नेताओं में व्यापार, टैक्नोलाॅजी, डिफेंस और शिक्षा भागीदारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनी। भारत को ब्रिटेन से 350 मिलियन पाउंड यानि 468 मिलियन डालर कीमत की मिसाइलों की सप्लाई के समझौते पर मुहर लगाई गई जो दोनों देशों की रक्षा साझेदारी को नई दिशा देगा। ब्रिटेन के 9 विश्वविद्यालय भारत के विश्वविद्यालयों में अपने कैम्पस खोलेंगे, जिससे भारत के छात्रों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर ​मिलेगा। जुलाई से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लागू होने से दोनों को बहुत फायदा होगा। ब्रिटेन से भारत आने वाले सामानों पर आयात टैरिफ 15 फीसदी से घटकर 3 फीसदी रह जाएगा। वहीं भारत से ब्रिटेन जाने वाले 99 फीसदी उत्पादों पर टैरिफ पूरी तरह खत्म हो जाएगा। ब्रेक्सिट के बाद यूरोपीय संघ से बाहर आने के बाद ब्रिटेन में अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर चला। महंगाई, कमजोर उत्पादकता और वैश्विक आर्थिक झटकों जैसे महामारी और युद्धों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रही है।

जब​कि भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन से आगे निकल चुकी है। एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप अपने देश के दरवाजे बंद करते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ ब्रिटेन कह रहा है-हमारे देश में आइए, हम प्रतिभाओं का स्वागत करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि भारत किसके साथ चलेगा? दुनिया के बदलते ट्रेड समीकरणों में भारत अब सिर्फ खेल का हिस्सा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खिलाड़ी बनता दिख रहा है। यूएस के टैरिफ हमलों के बीच भारत-यूके ट्रेड डील एक स्मार्ट चाल साबित हो सकती है। अमेरिका ने बेतहाशा टैरिफ बढ़ाए हैं, लेकिन क्या ब्रिटेन का नया व्यापार समझौता भारत के लिए सेफ्टी नेट बन सकता है? जब एक तरफ वॉशिंगटन से व्यापार युद्ध के बादल उठ रहे हैं, तो वहीं लंदन भारत को नया आर्थिक रास्ता दे रहा है। क्या यूके से हो रही ये डील भारत की एक्सपोर्ट इकोनॉमी को संभाले रखेगी? भारत के निर्यात क्षेत्र पर अमेरिकी टैरिफ का झटका साफ दिख रहा है। ट्रंप प्रशासन के नए टैरिफ स्ट्रक्चर ने भारत के लेबर इंटेंसिव सैक्टर्स जैसे टेक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, इंजीनियरिंग गुड्स को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। अमेरिका के बढ़े टैरिफ शुल्क की वजह से भारत को हर साल करीब 40 अरब डॉलर के एक्सपोर्ट लॉस का सामना करना पड़ सकता है। इधर, वियतनाम, बंगलादेश और यहां तक कि चीन को फिलहाल कम टैरिफ मिल रहा है, यानी भारत की प्रतिस्पर्धा और कठिन हो गई है।

ब्रिटेन हर साल करीब 27 अरब डॉलर के टेक्सटाइल उत्पाद आयात करता है, और 2024 में भारत का ब्रिटेन को निर्यात 13.5 अरब डॉलर था। यानि अब यह अंतर घट सकता है। इसके अलावा, भारत को यूके से लगभग 90% वस्तुओं पर टैरिफ-फ्री एक्सेस मिलेगा-जिनमें ज्वेलरी, फार्मा, इंजीनियरिंग और मशीनरी जैसे सेक्टर शामिल हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (एफआईईआे) के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने एक बयान में इस समझौते को इंडियन एक्सपोर्टर्स के लिए एक "परिवर्तनकारी क्षण" बताते हुए कहा था कि यह समझौता प्रमुख क्षेत्रों, विशेष रूप से एमएसएमई सेक्टर और लेबर से जुड़े उद्योगों के लिए अभूतपूर्व अवसर प्रदान करता है। भारत-यूके डील का सबसे बड़ा फायदा सर्विस सेक्टर को होगा। ब्रिटिश बैंकिंग और इंश्योरेंस फर्म्स को भारत में निवेश का आसान रास्ता मिलेगा, वहीं भारतीय आईटी कंपनियों और कंसल्टिंग सर्विसेज को ब्रिटिश मार्केट में प्रवेश आसान होगा। इसके साथ-साथ, वीजा व्यवस्था भी इस डील का हिस्सा है। एक प्रस्तावित प्रावधान के तहत, भारत के स्किल्ड प्रोफेशनल्स को बिना किसी लंबी इमिग्रेशन प्रक्रिया के ब्रिटेन में शॉर्ट टर्म प्रोजेक्ट्स और टेक असाइनमेंट्स पर काम करने की इजाजत होगी।

ब्रिटिश हायरिंग एजेंसी ग्लोबल टैलेंट ग्रुप के सीईओ साइमन हैरोल्ड ने कहा- "भारत के पास स्किल है, हमारे पास स्कोप है। यह साझेदारी दोनों को फायदा पहुंचाएगी। तो क्या ब्रिटेन के साथ यह समझौता भारत को अमेरिकी आर्थिक अस्थिरता से बचा सकेगा? या फिर यह भी सिर्फ एक सीमित राहत साबित होगी? साफ है कि भारत अब एक ही बाजार पर निर्भर नहीं रहना चाहता और शायद यही रणनीति भारत को आने वाले दशक की आर्थिक कहानी में सबसे अलग बनाएगी। ब्रिटेन में लगभग 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं। राजनीति से लेकर व्यवसाय और ​शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक भारतीय ब्रिटेन की जीवनधारा से गहराई से जुड़े हैं। भारत अब ब्रिटेन के लिए स्वाभाविक विकल्प बन चुका है। वहीं भारत का ब्रिटेन ऐसा मित्र देश है जिसके माध्यम से वह यूरोप ही नहीं बल्कि पूरे अटलांटिक विश्व तक पहुंच बना सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप तो देखते ही रह गए और ब्रिटेन-भारत की दोस्ती परवान चढ़ गई। भविष्य में दोनों देशों की साझेदारी और मजबूत होगी और दोनों चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर सकेंगे।

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