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भारत-अमेरिका में डिफैंस डील

03:18 AM Aug 26, 2024 IST | Aditya Chopra
भारत अमेरिका में डिफैंस डील

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अमेरिका दौरे के दौरान भारत और अमेरिका में महत्वपूर्ण डिफैंस डील पर हस्ताक्षर किए गए हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने को लेकर सिक्योरिटी ऑफ सप्लाई अरेंजमैंट समझौता हुआ है। यह समझौता भारतीय रक्षा विभाग को अमेरिका की कम्पनियों के साथ अनुबंध करने की अनुमति देता है। इस समझौते के तहत दोनों देश एक-दूसरे को जरूरत पड़ने पर महत्वपूर्ण समान, खनिज और टैक्नॉलोजी दे सकते हैं। भारत अमेरिका के साथ ऐसा समझाैता करने वाला 18वां देश है। इसके अलावा दोनों देश संयुक्त रूप से लड़ाकू जेट इंजन के उत्पादन पर आगे बढ़ने को सहमत हुए हैं। अनमैन्ड प्लेटफार्म, आधुनिक हथियार, ग्राउंड मोबिलिटी सिस्टम आदि के सह उत्पादन को लेकर भी बातचीत आगे बढ़ी है। अमेरिका भारत को एंटी सबमरीन हथियार सोनोवॉय और उससे सम्बन्धित उपकरण की बिक्री करेगा। यह सौदा करीब 5.28 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का है।
चीन ने हाल में अपनी सबसे आधुनिक सबमरीन को सेना में शामिल किया है। चीन के पास 48 डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं। चीन पर इनकी मदद से हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में जासूसी करने का आरोप है। भारत अमरीका के बीच हुए इस एंटी सबमरीन समझौते से चीन पर नकेल कसी जा सकेगी। सोनोबॉय एक बहुत ही अत्याधुनिक पोर्टेबल सोनार सिस्टम है। इसे दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए विमान, हेलिकॉप्टर या युद्धपोत से पानी में डाला जाता है। यह एक्टिव, पैसिव और स्पेशल पर्पस सोनोबॉय होते हैं। यह पनडुब्बी की ताकत को कई गुना बढ़ा देता है। दुश्मन की पनडुब्बी इससे छिप नहीं पाती है।
जहां तक जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन का सवाल है उसमें देरी हो रही थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस संबंध में अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ बातचीत की। रक्षा मंत्री ने ​​हिन्दोस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड को जीई-एफ 404 टर्बो फैन इंजन की सप्लाई में देरी का मुद्दा उठाया, ​िजसकी वजह से भारतीय वायुसेना को दिए जाने वाले 83 तेजस मार्क-1ए जैट की डिलीवरी में देरी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष अमेरिका की यात्रा के दौरान एक बड़ी डील की थी। इसके तहत अमेरिकी कम्पनी जीई एयरोस्पेस और भारतीय कम्पनी एचएएल में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत जीई भारत में लड़ाकू जेट इंजन बनाएगी और भारत में अत्याधुनिक एफ-414 इंजन बनाए जाएंगे। जीई-414 इंजन में टर्बो फैन इंजन सैन्य विमान इंजनों का हिस्सा है। अमेरिकी नौसेना 30 से ज्यादा सालों से इसे इस्तेमाल करती आई है।
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे कुछ ही देशों ने लड़ाकू विमानों में इस तरह के इंजन के इस्तेमाल में महारत हासिल की है। भारत हमेशा क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन सहित कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता पर जोर देता आया है, लेकिन अभी तक देश के फाइटर जेट में इस तरह के इंजन लगाए नहीं गए थे। इस डील के बाद भारत की जनरल इलेक्ट्रिक एचएएल में न केवल सिंगल-क्रिस्टल टर्बाइन ब्लेड बनाने के लिए जरूरी निर्माण प्रक्रियाएं शुरू होंगी, साथ ही दहन के लिए लेजर ड्रिलिंग, पाउडर मेटलर्जी विज्ञान की मशीनिंग और कई प्रमुख काम भारत में ही होंगे। साथ ही कंप्रेशन डिस्क और ब्लेड का निर्माण भी भारत में होगा। डील के बाद भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पास विश्वसनीय और लंबे समय तक चलने वाले जेट इंजन होंगे। इन जेट इंजनों को कई हजार घंटे तक ओवरहाल किया जा सकता है। भारत अभी रूस से जो जेट या इंजन लेता है उन्हें अक्सर कुछ सौ घंटों में ओवरहाल की जरूरत होती थी। विशेषज्ञों का कहना है कि जीई इंजन हल्के, अधिक शक्तिशाली, अधिक ईंधन कुशल हैं और भविष्य में इस्तेमाल के लिए उन्नत किए जाने की क्षमता रखते हैं।
भारत और अमेरिका के बीच सैन्य संबंधों में 2014 के बाद काफी तेजी आई है। भारत अब समूचे एशिया में सबसे ताकतवर देश बनने की ओर अग्रसर है। दोनों देशों के रक्षा संबंधों का असर चीन और पाकिस्तान पर भी पड़ना तय है। अमेरिका सरकार का एक नीतिगत उद्देश्य चीन विरोधी प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भारतीय सेना की क्षमता को मजबूत करना है। यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि अमेरिका रक्षा मामलों में रूस पर निर्भरता कम करने के​ लिए भारत पर हमेशा दबाव डालता आया है लेकिन भारत और रूस पहले की तरह ही अपने संबंध मजबूत बनाए हुए हैं। एक उभरती हुई विश्व व्यवस्था के रूप में भारत ने कई वर्षों के भीतर हेलिकॉप्टर निर्माण, ​िमसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रम में कई मुकाम हासिल किए हैं। भारत ने एक लड़ाकू जेट भी डिजाइन और निर्माण किया लेकिन जेट को ताकतवर बनाने के ​िलए इंजन निर्माण में बहुत ज्यादा सफलता हासिल नहीं की। भारत-अमेरिका में हुए समझौतों से दोनों देशों को ​िडफैंस सैक्टर में फायदा होगा। दोनों देशों के डिफैंस इको सिस्टम भी आपस में जुड़ जाएंगे। भारतीय कम्पनियों के ​िलए भी महत्वपूर्ण व्यवसायिक अवसर खुलने की सम्भावना है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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